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केदारनाथ में क्यों बार टूट रहे ग्लेशियर? शोधकर्ताओं ने इसके पीछे की बड़ी वजह, चिंता भी जताई


किरनकांत शर्मा की रिपोर्ट

देहरादून: बीते गुरुवार को केदारनाथ में मंदिर से ठीक ऊपर ग्लेशियर टूटने की एक घटना सामने आई. जिसने सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं. ग्लेशियर टूटने की घटना चौराबाड़ी ग्लेशियर के पास हुई. ये वही ग्लेशियर है जिसकी वजह से साल 2013 में केदारनाथ आपदा आई थी. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं तापमान बढ़ने और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रही हैं. जिससे अन्य ग्लेशियर को बनने में मदद मिलती है. ऐसी घटनाएं पूरे हिमालय में होती रहती हैं. केदारनाथ में ग्लेशियर टूटने की घटना सामने आने के बाद प्रशासन ने यात्रियों से सतर्क रहने की अपील की है. साथ ही मंदिर के आसपास सुरक्षा बल तैनात कर दिए हैं.

केदारनाथ में साल 2013 में आई आपदा को शायद ही कोई भूला होगा. इसमें सैकड़ो की संख्या में लोगों की मौत हुई. हजारों करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान भी हुआ. बताया जाता है कि केदारनाथ में यह आपदा मंदिर के ठीक ऊपर की तरफ बनी चौराबाड़ी ग्लेशियर के टूटने से आई थी. इस आपदा के बाद हिमालय में ग्लेशियर टूटने की कई घटनाएं भी सामने आईं.

उच्च हिमालय में ग्लेशियर्स (ETV BHARAT)

गुरुवार को उत्तराखंड के केदारनाथ में एक बार फिर चौराबाड़ी ग्लेशियर के पास एक ग्लेशियर टूटने की घटना हुई. जिसने प्रशासन और सरकार दोनों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. ग्लेशियर टूटने की घटना मंदिर से चार से पांच किलोमीटर की दूरी पर हुई. जिसमें किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ. इसके बाद प्रशासन ने एहतियात के तौर पर मंदिर के आस पास सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी है.

UTTARAKHAND GLACIER

ग्लेशियर्स झीलों के प्रकार (ETV BHARAT)

केदारघाटी में गुरुवार को श्रद्धालुओं के सामने हुई ग्लेशियर टूटने की घटना ने सरकार की चिंताएं बढ़ाने के साथ-साथ वहां मौजूद श्रद्धालुओं को भी डरा दिया. विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं हिमालय में होती रहती हैं. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व शोधकर्ता ग्लेशियर एक्सपर्ट डीपी डोभाल का मानना है कि-

इस तरह की घटनाएं हिमालय रेंज में ग्लेशियर टूटना सामान्य घटना हैं. इन घटनाओं की वजह से कम ऊंचाई वाले ग्लेशियर को भरने में मदद मिलती है जो सर्दियों में बर्फ गिरने के समय एक जगह ग्लेशियर बनता है.

डीपी डोभाल कहते हैं कि केदार घाटी में चौराबाड़ी ग्लेशियर के साथ कैंपेनियन ग्लेशियर भी है. जिसका आकर पहले की तरह है. यानी यह ग्लेशियर अपनी जगह से शिफ्ट नहीं हुए हैं. समय आने पर इन ग्लेशियर के आसपास कई हैंगिंग ग्लेशियर बन जाते हैं. जिनके टूटने की घटनाएं सामने आती रहती हैं.

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देश के सभी हिमालयी राज्यों में सर्दियों के मौसम में बर्फबारी होने के साथ ग्लेशियर के बनने का सिलसिला चलता रहता है. गर्मियों के दिनों में इन ग्लेशियरों के टूटने की घटनाएं भी सामने आती रहती हैं. हाल ही के दिलों में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इन घटनाओं में काफी इज़ाफ़ा भी हुआ है. तापमान का बढ़ना इसकी बड़ी वजह है. जिसके कारण ग्लेशियर अपनी जगह से खिसक रहे हैं. डीपी डोभाल मानते हैं कि आज इंसानों की वजह से प्रकृति डिस्टर्ब हुई है. इसका असर यह है कि पर्वतीय क्षेत्रों में गर्मियों का सीजन बढ़ गया है. सर्दियों का सीजन सिकुड़ गया है. जिसका असर ग्लेशियर्स पर पड़ रहा है.

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उच्च हिमालय में ग्लेशियर झीलें (ETV BHARAT)

अपना आकार खो चुके ग्लेशियर: हिमालय क्षेत्र में कुल 9,575 ग्लेशियर हैं. जिसमें से उत्तराखंड में 968 ग्लेशियर मौजूद हैं. खास बात यह है कि इसमें से अधिकतर ग्लेशियर अपने आकार को खो चुके हैं. मुख्य तौर पर देखा जाए तो गंगोत्री ग्लेशियर के तेजी से पिघलकर पीछे हटने के रिकॉर्ड वैज्ञानिकों को मिले हैं. इसी तरह सतोपंथ ग्लेशियर और गंगोत्री ग्लेशियर से जुड़ा भागीरथी ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहा है. साल 2023 को सबसे गर्म वर्षों में रिकॉर्ड किया गया है. यह स्थिति बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को भी बयां करती है. उत्तराखंड में भी इसका असर प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दे रहा है.

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