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ED ने अनिल अंबानी से जुड़े छह ठिकानों पर की छापेमारी, क्या है मामला


मुंबई: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मंगलवार 30 सितंबर को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी के खिलाफ चल रही जांच के सिलसिले में मुंबई और मध्य प्रदेश के इंदौर के पास महू में छह स्थानों पर छापे मारे.

छापेमारी में पाथ इंडिया समूह का मुख्यालय और उस कंपनी के निदेशकों के आवास शामिल हैं. ये छापे अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनियों रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और रिलायंस पावर से संबंधित हैं और विदेशों में अवैध धन प्रेषण के आरोपों पर आधारित हैं.

छापेमारी की वजह क्या हैः रिलायंस समूह और पाथ इंडिया समूह के बीच विभिन्न निर्माण परियोजनाओं से जुड़े समझौते थे. जांच एजेंसियों को संदेह है कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने अवैध रूप से विदेश में धन भेजा. इसके अलावा, ईडी भी ‘धन शोधन निवारण अधिनियम’ (पीएमएलए) के तहत रिलायंस समूह की कंपनियों के खिलाफ 17,000 करोड़ रुपये से अधिक के ऋणों के ‘डायवर्जन’ और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जांच कर रहा है.

ईडी ने इस जांच में 39 बैंकों से पूछताछ की है और उनसे पूछा है कि संदिग्ध ऋणों और चूकों की अनदेखी के लिए उन्हें जिम्मेदार क्यों न ठहराया जाए. रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने सीएलई नामक एक कंपनी के माध्यम से अंतर-कॉर्पोरेट जमा (आईसीडी) के रूप में रिलायंस समूह की अन्य कंपनियों को अवैध रूप से धन हस्तांतरित किया. आरोप है कि शेयरधारकों और लेखा परीक्षा समिति की मंजूरी से बचने के लिए सीएलई को ‘संबंधित पक्ष’ घोषित नहीं किया गया था.

इस मामले में सेबी की रिपोर्ट ने विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें सीएलई के जरिए हुए वित्तीय लेन-देन की जांच की गई है. इसके अलावा, अगस्त 2025 में ईडी ने बिस्वाल ट्रेडलिंक प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक पार्थ सारथी बिस्वाल को पीएमएलए के तहत गिरफ़्तार किया था. उन पर रिलायंस पावर को 68.2 करोड़ रुपये की फर्ज़ी बैंक गारंटी देने का आरोप है. अनिल अंबानी को भी ‘लुक आउट सर्कुलर’ जारी किया गया है, जिससे उनके विदेश यात्रा पर रोक लगा दी गई है.

सेबी की रिपोर्ट में क्या हैः सेबी की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने CLE नामक कंपनी के ज़रिए रिलायंस समूह की अन्य कंपनियों को ICD के रूप में अवैध रूप से धन हस्तांतरित किया. सेबी का कहना है कि CLE कंपनी को ‘संबंधित पक्ष’ घोषित न करके नियामकीय आवश्यकताओं का उल्लंघन किया गया. इस रिपोर्ट ने रिलायंस समूह के वित्तीय लेन-देन पर सवाल खड़े कर दिए हैं और ईडी की जांच को गति दी है.

रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर का स्पष्टीकरण: रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने इस छापेमारी पर तुरंत स्पष्टीकरण जारी किया. कंपनी ने कहा कि यह कार्रवाई 2010 में जयपुर-रींगस हाईवे परियोजना से संबंधित है, जिसके लिए प्रकाश एस्फाल्टिंग एंड टोल हाईवेज को ईपीसी ठेका दिया गया था.

यह पूरी तरह से घरेलू ठेका था और इसमें कोई विदेशी मुद्रा लेनदेन नहीं हुआ था. कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि परियोजना पूरी हो चुकी है और टोल रोड पिछले चार वर्षों से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के पास है.

कंपनी ने कहा, “कंपनी और उसके अधिकारी ईडी के साथ पूरा सहयोग कर रहे हैं और इस कार्रवाई का कंपनी के कारोबार, वित्तीय प्रदर्शन, शेयरधारकों, कर्मचारियों या अन्य हितधारकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.”

अनिल अंबानी बोर्ड में नहीं हैंः इससे पहले, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने उन आरोपों का खंडन किया था कि उसने 10,000 करोड़ रुपये किसी अज्ञात खाते में ट्रांसफर किए थे. कंपनी ने कहा कि उसका कुल कर्ज केवल 6,500 करोड़ रुपये है और इस बारे में सारी जानकारी उसके वित्तीय विवरणों में दर्ज है.

कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों की निगरानी में मध्यस्थता प्रक्रिया और बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर एक याचिका के जरिए 6,500 करोड़ रुपये के कर्ज की 100 फीसदी वसूली के लिए एक समझौता किया है. कंपनी ने स्पष्ट किया है कि अनिल अंबानी मार्च 2022 से रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के निदेशक मंडल में नहीं हैं.

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