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उत्तराखंड विधानसभा विशेष सत्र, चर्चा पर भारी पड़ी सिसायत, मुद्दों से भटके नजर आए सदस्य!


उत्तराखंड विधानसभा विशेष सत्र (PHOTO- ETV Bharat)

किरणकांत शर्मा…

देहरादून: उत्तराखंड के 25 वर्ष पूरे होने पर देहरादून में विधानसभा का विशेष सत्र आयोजित किया गया. सत्र का मकसद राज्य की अब तक की यात्रा का मूल्यांकन और अगले 25 वर्षों के लिए दिशा तय करना था. तीन दिन तक चली सदन की कार्यवाही में शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और पलायन जैसे अहम मुद्दों पर गहन चर्चा की उम्मीद थी. मगर सदन का बड़ा हिस्सा धार्मिक, क्षेत्रीय और राजनीतिक बयानबाजी में उलझा रहा. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने एक-दूसरे पर जमकर निशाना साधा, जिससे विकास का एजेंडा हाशिए पर चला गया.

सत्र की शुरुआत और मकसद: राज्य के गठन की 25वीं वर्षगांठ पर आयोजित इस विशेष सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संबोधन से हुई. उन्होंने उत्तराखंड में 25 सालों में गढ़ा विकास और शौर्य के अध्याय पर प्रकाश डाला. इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सदन को संबोधित किया और कहा कि उत्तराखंड ने 25 सालों में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं और अब अगला पड़ाव विकसित उत्तराखंड का होना चाहिए.

UTTARAKHAND ASSEMBLY SESSION

3 नवंबर से 5 नवंबर तक चला उत्तराखंड विधानसभा का विशेष सत्र. (PHOTO- PIB)

उन्होंने बताया कि राज्य ने इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और पर्यटन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है. लेकिन जैसे-जैसे चर्चा आगे बढ़ी, विपक्ष ने सरकार के दावों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए और माहौल गर्माने लगा.

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सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति मुर्मू ने सदन को किया संबोधित. (PHOTO- PIB)

भ्रष्टाचार के आरोपों से भड़की बहस: उत्तराखंड विधानसभा के उपनेता प्रतिपक्ष कांग्रेस विधायक भुवन कापड़ी ने सदन में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य में विधायक निधि से जारी कार्यों में 15 प्रतिशत तक कमीशनखोरी हो रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तराखंड, भ्रष्टाचार मुक्त राज्य नहीं रहा. 25 साल पूरे हो गए, लेकिन भ्रष्टाचार जवान हो गया है.

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सदन में मुख्यमंत्री धामी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान किया. (PHOTO- उत्तराखंड विधानसभा)

उनके इस बयान से सत्ता पक्ष के सदस्य भड़क उठे और सदन में शोरगुल मच गया. भाजपा विधायकों ने इसे राजनीति से प्रेरित बयान बताया, जबकि कांग्रेस ने मांग की कि इस पर सरकार स्पष्ट जवाब दे.

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सदन में सत्ता पक्ष के विधायकों ने कई बार विपक्ष पर आरोप लगाए. (PHOTO- उत्तराखंड विधानसभा)

‘मैं उत्तराखंडी हूं’ वाले बयान पर बढ़ा विवाद: सत्ताधारी भाजपा विधायक विनोद चमोली ने चर्चा के दौरान कहा, ‘मैं उत्तराखंडी हूं, आप लोग हैं?’ इस बयान पर विपक्ष भड़क गया. कांग्रेस विधायक रवि बहादुर, अनुपमा रावत, तिलकराज बेहड़ और वीरेंद्र जाती ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि सदन में ऐसी भाषा अनुचित है. विपक्ष ने सवाल उठाया कि जब सत्र का विषय विकास था, तब पहाड़ी या मैदान की पहचान पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण को बीच-बचाव करना पड़ा.

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विपक्ष के ओर से भी कई बार सरकार की योजनाओं पर सवाल खड़े किए गए. (PHOTO- उत्तराखंड विधानसभा)

मूल मुद्दों पर चर्चा अधूरी रह गई: सत्र के एजेंडे में शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और पलायन जैसे विषय प्रमुख थे, लेकिन तीन दिनों तक इनमें से किसी पर ठोस बहस नहीं हो सकी. विपक्ष के विधायकों ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में राज्य के पहाड़ी इलाकों से पलायन लगातार बढ़ा है. स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है और अस्पतालों में डॉक्टर नहीं मिलते. कांग्रेस विधायकों ने आरोप लगाया कि सरकार की सारी योजनाएं सिर्फ कागजों में हैं, जमीन पर नहीं.

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सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ती बहस के बीच विधानसभा अध्यक्ष को कई बार बीच बचाव करना पड़ा. (PHOTO- उत्तराखंड विधानसभा)

वहीं भाजपा विधायकों ने पलटवार करते हुए कहा कि विपक्ष सिर्फ आरोप लगा रहा है, लेकिन राज्य के विकास के लिए कोई ठोस सुझाव नहीं दे रहा.

पहाड़ बनाम मैदान की बहस ने बिगाड़ा माहौल: तीन दिन के इस सत्र में कई बार बहस का रुख विकास से हटकर पहाड़ी बनाम मैदानी और मूल उत्तराखंडी जैसे विषयों की ओर मुड़ गया. भाजपा और कांग्रेस दोनों के विधायक इस पर बयान देते रहे. विपक्ष का आरोप था कि भाजपा इस तरह की भाषा से समाज को बांटने की कोशिश कर रही है, जबकि सत्ता पक्ष का कहना था कि यह राज्य की पहचान की चर्चा है, राजनीति नहीं. इन तकरारों के बीच सत्र का मूल उद्देश्य राज्य की 25 साल की उपलब्धियों और कमियों पर समीक्षा लगभग गौण हो गया.

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चर्चा से ज्यादा सिसायत भरा रहा विधानसभा विशेष सत्र (PHOTO- ETV Bharat)

विधानसभा अध्यक्ष की सख्ती: तीसरे दिन जैसे ही सदन में फिर से गरमा-गरमी बढ़ी, विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने सख्त रुख अपनाया. उन्होंने कहा यह विशेष सत्र विकास की चर्चा के लिए बुलाया गया है न कि धर्म या जाति के मुद्दों पर बयानबाजी के लिए. सदन की मर्यादा हर सदस्य की जिम्मेदारी है. अध्यक्ष ने कई बार सदन में व्यवस्था बहाल करने के निर्देश दिए और सदस्यों से आग्रह किया कि वे मुद्दे पर केंद्रित रहें.

जनता से जुड़े सवालों पर जवाब अधूरा: सत्र के दौरान बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बिंदुओं पर पूछे गए कई सवालों के जवाब अधूरे रहे. रोजगार सृजन पर सरकार ने केवल यह कहा कि राज्य में निवेश आकर्षित करने के लिए नीति बनाई जा रही है. लेकिन आंकड़े या समय सीमा स्पष्ट नहीं की गई.

स्वास्थ्य सेवाओं पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने कहा कि दुर्गम इलाकों में एंबुलेंस सेवा बंद है. डॉक्टरों की पोस्टिंग सिर्फ कागजों में है. इस पर स्वास्थ्य मंत्री ने जवाब दिया कि राज्य में टेलीमेडिसिन और मोबाइल हेल्थ यूनिट्स पर काम हो रहा है.

सत्र का सार: तीन दिन की कार्रवाई के बाद यह साफ दिखा कि सत्र में विकास के बजाय राजनीति ज्यादा हावी रही. विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाए लेकिन जनता से जुड़े सवालों पर कोई ठोस रोडमैप सामने नहीं आया. राज्य के 25 वर्षों की यात्रा के इस पड़ाव पर उम्मीद थी कि भविष्य की दिशा तय होगी, परंतु सत्र में मिली राजनीतिक गर्मी ने इस मंशा को ठंडा कर दिया.

उत्तराखंड का यह विशेष सत्र उस सोच के विपरीत चला गया जिसके लिए इसे बुलाया गया था. जहां चर्चा होनी थी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और पलायन पर, वहीं बहस भटक गई हिंदू-मुस्लिम, पहाड़-मैदान और उत्तराखंडी पहचान के सवालों में.

जनता अब उम्मीद कर रही है कि 26वें वर्ष में सरकार और विपक्ष दोनों सियासी तकरार छोड़कर विकास की असली बहस शुरू करें क्योंकि यही विकसित उत्तराखंड की पहली शर्त है.

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