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उत्तरकाशी: इको-सेंसेटिव जोन में गंगोत्री तक हटाए जाएंगे हजारों पेड़, आधे होंगे ट्रांसलोकेट, ये है बड़ी वजह


उत्तराखंड वन भवन (Photo- ETV Bharat)

नवीन उनियाल

देहरादून (उत्तराखंड): उत्तरकाशी जिले के इको-सेंसेटिव जोन क्षेत्र में हजारों पेड़ों को हटाए जाने की तैयारी हो रही है. वैसे तो इस क्षेत्र में बड़े निर्माण और पेड़ कटान जैसे कामों पर काफी हद तक पूरी तरह रोक है, लेकिन इसके बावजूद उत्तरकाशी से गंगोत्री तक सड़क चौड़ीकरण के लिए पेड़ों को काटे और ट्रांसलोकेट किए जाने की अनुमति दे दी गई है.

सड़क चौड़ीकरण में हजारों पेड़ आ रहे आड़े: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री तक सड़क चौड़ीकरण का बहुप्रतीक्षित प्रस्ताव अब धरातल पर उतरने की दिशा में बढ़ता नजर आ रहा है. सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे इस प्रोजेक्ट को विभिन्न स्तरों से मंजूरी मिल चुकी है. लेकिन इस विकास परियोजना के साथ ही एक बड़ा पर्यावरणीय संकट भी जुड़ गया है. इको-सेंसेटिव जोन में आने वाले इस क्षेत्र में कुल 6822 पेड़ों को या तो काटा जाएगा या फिर उनका ट्रांसलोकेशन किया जाएगा, जिसको लेकर पर्यावरण प्रेमियों में गहरी नाराजगी देखी जा रही है.

वन अधिकारियों ने दिया अनुमोदन: उत्तरकाशी से गंगोत्री तक सड़क चौड़ीकरण को लेकर भेजे गए प्रस्ताव पर तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक हॉफ समीर सिन्हा अनुमोदन दे चुके हैं, जिसको लेकर उनके द्वारा नोडल अधिकारी वन संरक्षण को पत्र भेजा गया था. PCCF लैंड ट्रांसफर एसपी सुबुद्धि ने भी इस प्रोजेक्ट को बेहद अहम बताते हुए इसके लिए उनके स्तर से भी अनुमोदन किया जाने की पुष्टि की है.

अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा जिला: गौरतलब है कि उत्तरकाशी जिला अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा हुआ है और सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन के लिहाज से यहां सड़कों का मजबूत होना बेहद जरूरी माना जाता है. इसी कारण उत्तरकाशी से गंगोत्री तक सड़क चौड़ीकरण को सामरिक महत्व का प्रोजेक्ट बताया जा रहा है. सरकार का तर्क है कि बेहतर सड़क कनेक्टिविटी से सेना की आवाजाही, तीर्थयात्रा और आपातकालीन सेवाओं को मजबूती मिलेगी.

मार्ग को लेकर ये है खास जानकारी:

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 34 पर भैरोघाटी से झाला 20.600 किमी और क्षेत्रफल 41.9240 हेक्टेयर के लिए गैर वानकी का कार्य करने की मंजूरी मिली है. जिसके बदले 76.924 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण प्रतिपूर्ति के रूप में किया जाएगा. हालांकि, सड़क चौड़ीकरण को लेकर अभी धरातल पर काम करने में 1 साल तक का वक्त लग सकता है.

परियोजना को मिली हरी झंडी: हालांकि, यह पूरी सड़क इको-सेंसेटिव जोन के अंतर्गत आती है, जहां बड़े निर्माण कार्य और पेड़ कटान पर सामान्यतः प्रतिबंध रहता है. इसके बावजूद भागीरथी इको-सेंसेटिव जोन समिति से लेकर शासन स्तर तक सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं और अब परियोजना को हरी झंडी मिल चुकी है.

वन विभाग को दी जाएगी लागत: परियोजना के तहत चिन्हित किए गए 6822 पेड़ों में से 4366 पेड़ों का ट्रांसलोकेशन किया जाएगा, इनमें 0 से 10-20 व्यास वर्ग के 3263 पेड़ और 20 से 30 व्यास वर्ग के 1103 पेड़ शामिल हैं. इन पेड़ों को दूसरी जगह प्रत्यारोपित करने के लिए 324.44 लाख रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई है. वहीं 2456 पेड़ों को पूरी तरह काटा जाएगा, जिसकी लागत वन विभाग को दी जाएगी.

पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक संगठन मुखर: इधर, बड़ी संख्या में पेड़ों को हटाए जाने की खबर सामने आने के बाद पर्यावरण प्रेमियों और सामाजिक संगठनों की ओर से विरोध के सुर तेज हो गए हैं. मामला राज्यसभा तक भी पहुंच चुका है, जहां छत्तीसगढ़ की एक सांसद ने इस मुद्दे को उठाकर केंद्र सरकार को पर्यावरण संरक्षण के सवाल पर घेरने की कोशिश की है.

जानिए क्या होता है इको सेंसिटिव जोन:

  • इको सेंसिटिव जोन, इन्हें पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र कहा जाता है.
  • यह ऐसे क्षेत्र होते हैं जो राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य या अन्य संरक्षित क्षेत्रों के आसपास बनाए जाते हैं, ताकि वहां के जंगलों, वन्य जीवों और पर्यावरण की सुरक्षा की जा सके.
  • आम भाषा में समझें तो इको सेंसिटिव जोन वो इलाका होता है, जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर रोक या कड़ी पाबंदी होती है.
  • किसी भी संरक्षित वन क्षेत्र के चारों ओर 0 से 10 किमी तक क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया जा सकता है. यह सीमा राज्य सरकार और केंद्र सरकार तय करती है.

पर्यावरणविदों में नाराजगी: इसके अलावा पर्यावरण के क्षेत्र में लगातार काम कर रहे युवा पर्यावरण प्रेमी राम कपूर भी उत्तरकाशी से गंगोत्री सड़क चौड़ीकरण के नाम पर वृक्षों को काटे जाने पर नाराजगी जाहिर करते हैं.

पर्यावरण को लेकर लगातार संतुलन की स्थिति बनी हुई है और इसके बावजूद यदि राज्य और केंद्र सरकार किस तरह पेड़ों को काटने में भी गुरेज नहीं कर रही है तो यह बेहद चिंताजनक विषय है.
– राम कपूर, पर्यावरण प्रेमी –

गंभीर पर्यावरणीय खतरा: अब बड़ा सवाल यह है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कैसे साधा जाएगा? एक ओर जहां सामरिक जरूरतें इस परियोजना को जरूरी बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर हजारों पेड़ों की कटाई भविष्य के लिए गंभीर पर्यावरणीय खतरा भी पैदा कर सकती है.

बता दें कि, हाल ही में उत्तरकाशी का आपदाग्रस्त धराली क्षेत्र भी भागीरथी पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (Bhagirathi Eco Sensitive Zone) के अंतर्गत आता है.

ये क्षेत्र इको सेंसिटिव जोन में आते हैं: गंगोत्री, ग्वाना, जादुंग, मनेरी, अगोड़ा, भटवाड़ी, धराली, मुखबा, नलांग, पाला मनेरी, सारी, जोशियाड़ा, कुरोली, सुख्खी, उत्तरकाशी और हर्षिल समेत 89 गांव शामिल हैं.

जानें पूरा मामला: धराली आपदा के बाद इस विषय पर ईटीवी भारत से बात करते हुए भागीरथी पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के निगरानी समिति की सदस्य मल्लिका भनोट ने बताया था कि, पहले 2006 में भागीरथी और गंगा नदी के तट पर तीन जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी. लेकिन बड़े विरोध के कारण ये तीनों परियोजनाएं रद्द कर दी गई थीं और इसके बाद केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र को पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने का फैसला लिया था. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में दिए गए प्रावधानों के तहत 18 दिसंबर 2012 को गोमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथी इको सेंसिटिव जोन (BESZ) घोषित किए जाने का नोटिफिकेशन जारी किया था. ये क्षेत्र करीब 4179.59 वर्ग किलोमीटर का है.

हालांकि, साल 2018 में इसमें संशोधन किया गया था. संशोधन में भूमि उपयोग परिवर्तन को मंजूरी दी गई. इस संशोधन में ये जिक्र किया गया था कि इन ESZ में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही विकास को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों को अनुमति देने की मांग की गई है. स्थानीय लोगों को सुविधा देने के लिए भागीरथी इको सेंसिटिव क्षेत्रों में पहाड़ियों के काटने और असाधारण मामलों में खड़ी ढलानों पर भी निर्माण की अनुमति भी दी गई.

हालांकि, 2012 के नोटिफिकेशन में संशोधन करने की एक मुख्य वजह चारधाम ऑलवेदर रोड का निर्माण भी था. 17 जुलाई 2020 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने गोमुख से उत्तरकाशी तक करीब 135 किलोमीटर क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए क्षेत्रीय मास्टर प्लान को भी मंजूरी दी. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना को मंजूरी दे दी.

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