कैलाश सुयाल की रिपोर्ट
रामनगर: कहते हैं अगर मन में लगन और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो असंभव भी संभव हो जाता है.नैनीताल जिले के सात शिक्षकों ने ऐसा ही कुछ साबित कर दिखाया है. इन शिक्षकों ने बीते चार वर्षों में शिक्षा से वंचित 300 से ज्यादा बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है. मजदूरी करने वाले परिवारों के वे बच्चे जो कभी रेता-बजरी ढोने, कूड़ा बीनने या दिहाड़ी मजदूरी में अपने माता-पिता का हाथ बंटाते थे आज स्कूल जाकर पढ़ाई कर रहे हैं.
शुरुआत एक घटना से जब कोसी नदी बनी वजह: साल 2020 में जब कोसी नदी रौद्र रूप में आई थी, तब रामनगर के कई शिक्षक नदी का मंजर देखने पहुंचे. उस दौरान उन्होंने देखा कि नदी किनारे रहने वाले मजदूर परिवारों की झोपड़ियां पानी में डूबने की कगार पर थीं. वहीं उनके छोटे-छोटे बच्चे अपने माता-पिता के साथ मजदूरी करते हुए रेता-बजरी का काम कर रहे थे. उस दृश्य ने शिक्षकों को भीतर तक झकझोर दिया. तभी इन सात शिक्षकों ने संकल्प लिया कि वे इन बच्चों की किस्मत बदलेंगे. उन्होंने तय किया कि दिन में अपने-अपने विद्यालयों और महाविद्यालयों में पढ़ाएंगे. शाम को मजदूर तबके के बच्चों के लिए सायंकालीन विद्यालय चलाएंगे.
उत्तराखंड के 7 टीचर्स का कमाल (ETV BHARAT)
शुरुआत आसान नहीं थी, जब शिक्षकों ने बच्चों को पढ़ाने की बात कही तो मजदूर माता-पिता को यह नागवार गुज़रा. उनका कहना था कि बच्चे जितना समय मजदूरी में लगाएंगे उतनी आय बढ़ेगी, लेकिन शिक्षकों ने हार नहीं मानी. उन्होंने लगातार परिवारों को शिक्षा का मोल समझाया. शिक्षकों ने अभिभावकों को बताया कि शिक्षा ही उनके बच्चों की जिंदगी बदल सकती है. धीरे-धीरे अभिभावक तैयार हुए. जिसके बाद ज्योतिबा फुले सायंकालीन विद्यालय की नींव रखी गई. शुरुआती दौर में रामनगर के पुछड़ी, पटरानी और हल्द्वानी नगला पंतनगर में तीन केंद्रों पर कक्षाएं शुरू की गईं.
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुहिम को सराहा (ETV BHARAT)
इस मिशन को शुरू करने वाले शिक्षकों ने समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले से प्रेरणा ली. 150 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र में फुले दंपति ने भी वंचित और दलित समुदाय के बच्चों के लिए शिक्षा अभियान चलाया था. सावित्रीबाई फुले को देश की पहली महिला शिक्षिका तक कहा जाता है. इन्हीं के नाम पर इन शिक्षकों ने अपने सायंकालीन विद्यालय का नाम रखा.

स्कूल में 300 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. (ETV BHARAT)
कौन हैं इस मुहिम के नायक?: रचनात्मक शिक्षण मंडल के सात शिक्षक इस अभियान को चला रहे हैं. जिसमें नवेंदु मठपाल, प्रोफेसर गिरीश चंद्र पंत, प्रोफेसर डीएन जोशी, नंदराम आर्य, सुभाष गोला, बालकृष्ण चंद्र, जीतपाल कठैत शामिल हैं. मुख्य नायक नवेंदु मठपाल बताते हैं कि शुरू के तीन महीने बेहद कठिन रहे. अभिभावक बच्चों को भेजने के लिए राजी नहीं होते थे,लेकिन आज नतीजा यह है कि 300 से ज्यादा बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़े हैं. इनमें से करीब 200 बच्चों ने आसपास के सरकारी विद्यालयों में प्रवेश ले लिया है.

ज्योतिबा फुले सायंकालीन विद्यालय के बच्चे (ETV BHARAT)
इन शिक्षकों ने विद्यालय को सरकारी सहयोग के बिना पूरी तरह अपने खर्चे और जनसहयोग से चलाना शुरू किया. किताबें, ड्रेस, कॉपी-पेंसिल से लेकर अन्य जरूरी सामान तक का खर्च उन्होंने स्वयं उठाया. साथ ही कुछ शुभचिंतक भी आगे आए . नवेंदु मठपाल बताते हैं हम केवल पढ़ाई ही नहीं कराते, बल्कि बच्चों को सांस्कृतिक और रचनात्मक गतिविधियों से भी जोड़ते हैं. थिएटर, फिल्म, बर्ड वॉचिंग जैसी गतिविधियां कराई जाती हैं. जिससे बच्चे जीवन के अलग-अलग पहलुओं से भी परिचित हो सके.

ज्योतिबा फुले सायंकालीन विद्यालय (ETV BHARAT)
अभिभावकों के अनुभव: गौरा देवी जिनके बच्चे इस विद्यालय में पढ़ रहे हैं कहती हैं हम पहले पढ़ाई का महत्व नहीं समझते थे, इसलिए बच्चों को मजदूरी में लगा देते थे, लेकिन शिक्षकों ने हमें जागरूक किया,अब हमारे बच्चे लिखना-पढ़ना सीख गए हैं. भूप सिंह जो खुद मजदूरी करते हैं बताते हैं हम पढ़े-लिखे नहीं हैं. हमें पढ़ाई की अहमियत समझ नहीं थी,लेकिन इन शिक्षकों ने हमें समझाया, आज हमारे बच्चे स्कूल जाते हैं, ये शिक्षक हमारे लिए देवदूत की तरह हैं.रिंकी जो पहले अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजती थीं, कहती हैं हम पैसे देकर पढ़ा नहीं सकते थे, लेकिन शाम का यह स्कूल हमारे लिए वरदान है. अब बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. विभिन्न कार्यक्रमों में भी भाग लेते हैं.

उत्तराखंड के 7 टीचर्स का कमाल (ETV BHARAT)
युवा भी हो रहे शामिल: सायंकालीन विद्यालय में एमएससी लास्ट ईयर के छात्र सुमित भी पढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा यहां ज्यादातर मजदूर तबके और कूड़ा बीनने वाले परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं. पहले ये बच्चे शिक्षा से वंचित थे, लेकिन अब स्कूल आने लगे हैं.
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी सराहा: सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा कहते हैं शिक्षक दिवस पर इन शिक्षकों का प्रयास वास्तविक शिक्षक धर्म को चरितार्थ करता है. इन्होंने न सिर्फ बच्चों को पढ़ने के लिए तैयार किया बल्कि अभिभावकों को भी समझाया. कई बार तो इन्हें अभिभावकों से कहना पड़ा कि आपके बच्चे जितना कूड़ा बीनकर कमाते हैं उतना पैसा हम देंगे. बस आप बच्चों को स्कूल भेजिए. इन शिक्षकों के समर्पण को सलाम है.

उत्तराखंड के 7 टीचर्स का कमाल (ETV BHARAT)
चार साल में आया बड़ा बदलाव: आज ज्योतिबा फुले सायंकालीन विद्यालय में 300 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. इनमें से 200 बच्चे अब रेगुलर स्कूलों में एडमिशन ले चुके हैं. शिक्षकों की मेहनत ने न केवल बच्चों का जीवन बदला बल्कि उनके परिवारों की सोच भी बदली है.
शिक्षक दिवस पर मिली नई प्रेरणा: शिक्षक दिवस जैसे अवसर पर इन शिक्षकों की यह पहल प्रेरणा देती है कि कैसे एक संकल्प, समाज की तस्वीर बदल सकता है. पूरे उत्तराखंड में ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां गरीबी और अभाव के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पाते. रामनगर के इन सात शिक्षकों ने दिखा दिया है कि यदि समय और समर्पण दिया जाए तो कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रह सकता. रामनगर के सात शिक्षकों की यह मुहिम केवल बच्चों को पढ़ाना भर नहीं है, बल्कि यह समाज में शिक्षा का दीप जलाने का काम है. मजदूरी, गरीबी और अभाव के अंधेरे में डूबे बच्चों की जिंदगी को रोशन करने का काम इन शिक्षकों ने किया है. आज सैकड़ों बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. बड़े सपने देख रहे हैं. उनका भविष्य संवर रहा है. यह केवल एक स्कूल की कहानी नहीं बल्कि यह शिक्षा के जरिये समाज को बदलने का संदेश है.
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