25 नवंबर को बंद होंगे बदरीनाथ धाम के कपाट. (PHOTO- ETV Bharat)
देहरादून : उत्तराखंड की चारधाम यात्रा समाप्ति की ओर है. चारों धामों में से गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट अक्टूबर माह में बंद हो चुके हैं. जबकि बैकुंठ धाम बदरीनाथ धाम के कपाट 25 नवंबर को बंद होंगे. हालांकि, कपाट बंद होने की प्रक्रिया 4 दिन पहले ही शुरू हो जाएगी. लेकिन खास बात है कि इन परंपराओं के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.
बदरीनाथ धाम में 21 नवंबर से पंच पूजा की धार्मिक रस्में: बदरीनाथ धाम के कपाट के लिए 25 नवंबर दोपहर 2:56 बजे बंद करने की परंपरा शुरू की जाएगी. यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि भक्तों में गहराई और आस्था का प्रतीक भी है. कपाट बंद होने की प्रक्रिया 21 नवंबर को विधिवत पूजा के साथ शुरू होगी. 21 नवंबर को भगवान गणेश की विशेष पूजा के साथ पहला चरण शुरू होगा. पूजा प्रक्रिया की शुरुआत के साथ बदरीनाथ धाम में ही स्थित प्राचीन गणेश के मंदिर के सबसे पहले कपाट बंद किए जाएंगे, जो इस अनूठी परंपरा का पहला चरण होता है. इस दिन का महत्व इसलिए भी खास है क्योंकि गणेश जी को आरंभकर्ता कहा जाता है. पूजा क्रम की शुरुआत इन्हीं से होती है. यानी भगवान बदरीनाथ तभी बैकुंठ या कहे विश्राम में जाएगे, जब गणेश जी की पूजा अर्चना होगी.

4 दिन की लंबी प्रक्रिया के बाद बंद होते हैं बैकुंठ धाम के कपाट (PHOTO- ETV Bharat)
बदरीनाथ पुजारी समाज के अध्यक्ष आशुतोष डिमरी ने बदरीनाथ कपाट बंद होने की प्रक्रिया के बारे में कहा कि,
22 नवंबर को दूसरा चरण होगा. जिसमें आदि केदारेश्वर भगवान और आदि गुरु शंकराचार्य की आवाहन पूजा के बाद उनके मंदिरों के कपाट बंद किए जाएंगे. दोनों मंदिर भी बदरीनाथ धाम के प्रांगण में ही मौजूद हैं. मंदिर के कपाट बंद होने से पहले सभी देवी देवताओं को पूरा सम्मान देकर विदा किया जाएगा. -आशुतोष डिमरी, अध्यक्ष, पुजारी समाज
वेद-पाठ समाप्ति और पुस्तक बंदी: 23 नवंबर का दिन विशेष पौराणिक महत्व रखता है. इस दिन खांडू (खड़क) पुस्तक जिसे पारंपरिक रूप से वेद ग्रंथों का प्रतीक माना जाता है, बंद की जाएगी. यह परंपरा इस विश्वास को दर्शाती है कि 23 नवंबर से 25 नवंबर तक वेद पाठ नहीं किया जाएगा. इस प्रकार शास्त्रों की आवाज एक तरह से विराम लेती है. 24 नवंबर को श्री महालक्ष्मी का आवाहन किया जाएगा. जबकि 25 नवंबर की सुबह भगवान बदरी विशाल का पवित्र विग्रह पीले पुष्पों से सुसज्जित होकर श्रृंगार किया जाएगा. इस श्रृंगार का महत्व गहरा है, क्योंकि यह बंदी रस्म में अंतिम चरणों की तैयारी का प्रतीक माना जाता है.

25 नवंबर 2025 को बंद होंगे बदरीनाथ धाम के कपाट (PHOTO- ETV Bharat)
कपाट बंदी से पहले एक और परंपरा बदरीनाथ धाम में होती है. पूर्व मुख्य पुजारी (रावल) स्त्री का भेष धारण करते हैं. सखी भाव में माता लक्ष्मी को गर्भगृह में प्रवेश कराने के लिए यह एक बहुत ही समृद्ध और प्रतीकात्मक रस्म है. इस रस्म में देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु यानी भगवान बैकुंठ के साथ गर्भगृह में विराजमान कराया जाता है. इस परंपरा के दौरान रावल तन पर साड़ी ओढ़कर महिला भेष धारण करके ही माता लक्ष्मी को ठीक वैसे ही प्रवेश कराते हैं, जैसे कोई सखी साथ हो. इसके बाद जैसे ही वह गर्भगृह में पहुंचेंगी, कुबेर, उद्धव और गरुड़ को विग्रह पूजा के लिए बाहर लाया जाता है. यानी लक्ष्मी के पहुंचने के बाद तीनों की गर्भगृह से बाहर ही पूजा होती है. ये सभी परंपरा बेहद रोचक और महत्त्व के साथ-साथ बड़ी आध्यात्मिक के साथ की जाती है.
मुख्य पुजारी द्वारा स्त्री वेश धारण कर देवी लक्ष्मी को गर्भगृह में विराजमान कराने की परंपरा भक्तों में मातृशक्ति की पूजा एवं आध्यात्मिक समर्पण की भावना को मजबूत करती है. यह एक प्रतीकात्मक भाषा है, जो बताती है कि देवी लक्ष्मी (समृद्धि, समर्पण) और भगवान बदरी विशाल (संयम, तपस्या) का मिलन एक चक्र पूरा करता है. -आशुतोष डिमरी, पुजारी, बदरीनाथ धाम
बंदी और स्थानांतरण: 25 नवंबर दोपहर 2:56 बजे पंच पूजा की परिणति (अंतिम प्रक्रिया) में बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे. यह समय मंदिर समिति द्वारा पारंपरिक पंचांग गणना के अनुसार तय किया गया है. कपाट बंद होने के बाद मूर्तियां और विग्रह एक विशिष्ट स्थान पर ले जाए जाते हैं. कुबेर और उद्धव का विग्रह पांडुकेश्वर स्थित योग ध्यान बद्री मंदिर में 6 महीनों तक पूजा अर्चना के लिए रखा जाएगा. जबकि गरुड़ और आदि शंकराचार्य की गद्दी को जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में शीतकालीन पूजा के लिए स्थापित किया जाएगा. यह पूरी प्रक्रिया न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मौसम की कठिनाइयों के कारण मंदिर बंद रहने के कारणों को भी दर्शाती है. हिमालयी क्षेत्र में सर्दियों में बर्फबारी इतनी तीव्र हो जाती है कि खुला मंदिर और नियमित पूजा अनायास ही संभव नहीं होता है.
पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व: बदरी- केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी कहते हैं कि,
हर साल विजयदशमी के दिन पंचांग और धार्मिक सलाह मशविरा करके मंदिर बंद की तिथि तय की जाती है. कपाट बंद हो जाने के बाद अखंड ज्योति, जो लगातार मंदिर में जलती है, अगले छह महीने के लिए रखा जाता है. इतिहास में यह भी उल्लेख है कि मुख्य देवता बदरीनारायण का मूर्तिमान शीतकाल में जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में स्थानांतरित हो जाता है. इस प्रकार उनके प्रतिनिधि स्वरूप पूजा वहां जारी रहती है, जिससे आस्था में निरंतरता बनी रहती है. -हेमंत द्विवेदी, अध्यक्ष, बदरी-केदार मंदिर समिति
आध्यात्मिक संदेश और श्रद्धालुओं की भागीदारी: धर्माचार्य प्रतीक मिश्र पुरी कहते हैं कि
यह प्राचीन परंपरा बताती है कि देवता भी तपस्या के लिए विराम लेते हैं. भक्तों के लिए यह समय आत्म-चिंतन और श्रद्धा की परीक्षा का होता है. कपाट बंद होने की प्रक्रिया में लाखों श्रद्धालुओं की भागीदारी होती है. वह दिन जब कपाट बंद होते हैं, भक्तिमय जयकारों और फूलों की भव्य सजावट के साथ यादगार बन जाता है. पिछले वर्षों में कपाट बंद होने के दौरान हजारों श्रद्धालु मौजूद रहे हैं. इस दौरान मंदिर को कई क्विंटल फूलों से सजाकर बदरीनाथ का माहौल और भी भक्तिमय हो जाता है. -प्रतीक मिश्र पुरी, धर्माचार्य
इस साल टूटे कई रिकॉर्ड: बता दें कि इस साल आपदा के बाद भी बदरीनाथ समेत चारों धामों में भक्तों की संख्या ने रिकॉर्ड कायम किया. इस साल 50 लाख 74 हजार से अधिक भक्त चारधाम यात्रा कर चुके हैं. जबकि अभी बदरीनाथ धाम की यात्रा संपन्न होने के लिए 5 दिन शेष हैं.
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