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पीएम मोदी की म्यांमार के सैन्य नेता के साथ बातचीत, भारत ने रणनीतिक एजेंडा आगे बढ़ाया


नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को चीन के तिआंजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान म्यांमार के कार्यवाहक राष्ट्रपति और जुंटा प्रमुख सीनियर जनरल मिन आंग ह्लाइंग के साथ बैठक की. इसने म्यांमार को अपने पड़ोसी प्रथम और एक्ट ईस्ट रणनीति के केंद्र में रखने के नई दिल्ली के दृढ़ संकल्प को रेखांकित किया.

ऐसे समय में जब चीन बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे में निवेश और सैन्य आपूर्ति के जरिये म्यांमार पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है, भारत द्वारा नेपीता के साथ संपर्क, सीमा व्यापार और सुरक्षा सहयोग को आगे बढ़ाने का प्रयास, द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण है.

विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत अपनी पड़ोसी प्रथम, एक्ट ईस्ट और हिंद-प्रशांत नीतियों के तहत म्यांमार के साथ अपने संबंधों को महत्व देता है.” बयान में कहा गया, “दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की और विकास साझेदारी, रक्षा एवं सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और सीमा व्यापार सहित द्विपक्षीय सहयोग के कई पहलुओं पर आगे बढ़ने के उपायों पर चर्चा की. प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि चल रही कनेक्टिविटी परियोजनाओं की प्रगति दोनों देशों के लोगों के बीच बेहतर संपर्क को बढ़ावा देगी. साथ ही भारत की एक्ट ईस्ट नीति के अनुरूप क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण को भी बढ़ावा देगी.”

पीएम मोदी और जनरल मिन आंग ह्लाइंग के बीच यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब सैन्य शासन ने इन साल दिसंबर में म्यांमार में आम चुनाव कराने की घोषणा की है.

विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, पीएम मोदी ने आशा व्यक्त की कि म्यांमार में आगामी चुनाव सभी हितधारकों को शामिल करते हुए निष्पक्ष और समावेशी तरीके से आयोजित किए जाएंगे.

बयान में आगे कहा गया है, “उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत, म्यांमार के नेतृत्व वाली और म्यांमार के स्वामित्व वाली शांति प्रक्रिया का समर्थन करता है, जिसके लिए शांतिपूर्ण बातचीत और परामर्श ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है. प्रधानमंत्री ने म्यांमार की विकास की जरूरतों में सहयोग के लिए भारत की तत्परता दोहराई.”

पीएम मोदी और मिन आंग ह्लाइंग के बीच बैठक भारत के राष्ट्रीय हितों, क्षेत्रीय स्थिरता की अनिवार्यताओं और अपने पड़ोस में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के प्रति मानक प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन बनाने के प्रयासों को दर्शाती है.

भारत ने हमेशा म्यांमार को दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच स्वाभाविक सेतु के रूप में देखा है. दोनों क्षेत्रों के संगम पर स्थित म्यांमार, भारत की ‘पड़ोसी पहले’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियों का केंद्र बिंदु है. भारत के लिए, म्यांमार के साथ गहरा जुड़ाव कई कारणों से महत्वपूर्ण है.

कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना और भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी प्रमुख परियोजनाओं का उद्देश्य भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भौतिक रूप से जोड़ना है.

सीमा व्यापार, ऊर्जा परियोजनाएं और बुनियादी ढांचे के विकास में दोनों देशों, विशेष रूप से भारत के पूर्वोत्तर और म्यांमार के सीमावर्ती राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं को ऊपर उठाने की क्षमता है. साझी बौद्ध विरासत और दीर्घकालिक जन-जन संबंध सहयोग के लिए सांस्कृतिक आधार प्रदान करते हैं.

म्यांमार के साथ सुरक्षा सहयोग भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. 1,643 किलोमीटर लंबी और आंशिक रूप से खुली सीमा न केवल वैध व्यापार, बल्कि विद्रोही गतिविधियों, मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी का भी माध्यम है. पिछले एक दशक में, भारत और म्यांमार ने सीमा पर विद्रोही समूहों के खिलाफ संयुक्त सैन्य अभियानों के साथ रक्षा सहयोग को गहरा किया है. भारत के लिए, पूर्वोत्तर राज्यों मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम में शांति के लिए उग्रवाद-विरोधी समन्वय में म्यांमार का समर्थन बनाए रखना जरूरी है.

भारत ने म्यांमार में क्षमता निर्माण और जमीनी स्तर की परियोजनाओं में लगातार निवेश किया है. समुदाय-आधारित विकास योजनाओं से लेकर प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक, भारत खुद को एक विकास भागीदार के रूप में प्रस्तुत करता है, जो चीन के शीर्ष-स्तरीय, राज्य-संचालित मॉडल से अपने दृष्टिकोण को अलग करता है. तिआंजिन में बैठक के दौरान पीएम मोदी द्वारा कनेक्टिविटी परियोजनाओं की प्रगति पर जोर देना भी अहम है, जो जमीनी स्तर पर सद्भावना को मजबूत करने वाले ठोस लाभ प्रदान करता है.

फिर राजनीतिक पहलू आता है. फरवरी 2021 में तख्तापलट के बाद से, म्यांमार गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल में है. मिन आंग ह्लाइंग के नेतृत्व में सैन्य तख्तापलट ने नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप देशव्यापी विरोध प्रदर्शन, सविनय अवज्ञा और सशस्त्र प्रतिरोध शुरू हो गया. तब से यह संघर्ष एक बहुआयामी गृहयुद्ध में बदल गया है, जिसमें जातीय सशस्त्र संगठन (EAO) और पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (PDF) म्यांमार की सेना तत्मादाव (Tatmadaw) से लड़ रहे हैं.

पश्चिमी देशों के उलट, भारत ने सैन्य जुंटा की खुलकर निंदा करने से परहेज किया है. इसके बजाय, भारत ने सैन्य अधिकारियों के साथ संवाद बनाए रखते हुए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है. साथ ही समावेशी राजनीति के लिए चुपचाप समर्थन का संकेत भी दिया है. पीएम मोदी की यह आशा कि म्यांमार के आगामी चुनाव स्वतंत्र और समावेशी हों, इसी संतुलनकारी कार्य को दर्शाती है. यह सुलह की दिशा में एक कूटनीतिक प्रयास है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संकेत भी देता है कि भारत लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध है.

शिलांग स्थित थिंक टैंक एशियन कॉन्फ्लुएंस के फेलो के. योमे (K Yhome) ने कहा कि कनेक्टिविटी और एक्ट ईस्ट पॉलिसी के मुद्दे दोनों देशों के नेताओं के बीच बातचीत में नियमित रूप से शामिल होते हैं. योमे ने ईटीवी भारत से कहा, “यहां प्रासंगिक बात प्रधानमंत्री मोदी का निष्पक्ष और समावेशी चुनावों का आह्वान है. विदेश मंत्रालय का बयान मूल रूप से सैन्य शासन के तहत होने वाले चुनावों के लिए भारत का समर्थन है.”

उन्होंने कहा कि यह चुनाव उस शासन द्वारा कराया जा रहा है जो सैन्य तख्तापलट के जरिये सत्ता में आया है. यही सैन्य शासन दिसंबर में चुनाव कराएगा. योमे ने कहा, “इसलिए, हम नहीं जानते कि आज वे जो कह रहे हैं, वह दिसंबर में भी लागू होगा या नहीं.”

साथ ही उन्होंने कहा कि भले ही यह प्रक्रिया दिखावा हो, लेकिन सैन्य शासन चुनावों को आगे बढ़ा सकता है. उन्होंने कहा, “सैन्य सैन्य शासन पर चुनाव कराने का न सिर्फ पश्चिमी देशों से, बल्कि आसियान (दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ), जापान और यहां तक कि चीन जैसे अपने मित्रों से भी काफी दबाव है. म्यांमार में अस्थिरता चीन को प्रभावित करती है.”

योमे ने इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाया कि म्यांमार की सेना खुद भी आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रही है. उन्होंने कहा कि, इसलिए वे इस उलझन से निकलने का कोई रास्ता ढूंढ़ना चाहते हैं और एक रास्ता है दिखावटी चुनाव कराना.”

योमे ने कहा कि सवाल यह है कि क्या विपक्षी दल चुनावों में हिस्सा लेंगे. उन्होंने बताया कि आंग सान सू की पहले से ही गिरफ्तार हैं और चुनावों में हिस्सा नहीं ले सकतीं. उन्होंने कहा, “ऐसे हालात में, सेना द्वारा मुखौटा राजनीतिक दल खड़े किए जाने की संभावना है. सवाल यह है कि क्या म्यांमार के आम नागरिक ऐसे चुनावों में हिस्सा लेंगे? अगर असली विपक्षी दल हिस्सा नहीं लेंगे, तो चुनावों में धांधली होगी.”

योमे ने कहा कि भारत द्वारा म्यांमार के साथ सहयोग का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण दुर्लभ खनिजों तक पहुंच है. उन्होंने कहा, “फिलहाल, चीन की म्यांमार में इन खनिज भंडारों तक पहुंच है और वह उन पर भू-राजनीतिक नियंत्रण रखता है. भारत को उम्मीद है कि म्यांमार से ऐसे खनिजों का हस्तांतरण होगा.”

देखा जाए तो एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी-मिन आंग ह्लाइंग के बीच बातचीत का प्रतीकात्मक और वास्तविक, दोनों ही तरह से महत्व है. प्रतीकात्मक रूप से, इसने अंतरराष्ट्रीय निगरानी के बावजूद, म्यांमार के साथ निरंतर जुड़ाव के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया. सच्चे अर्थ में, इसने भारत की प्राथमिकताओं को रेखांकित किया: संपर्क बढ़ाना, सुरक्षा को मजूबत करना, सीमा पर स्थिरता लाना, और म्यांमार को राजनीतिक समावेशिता की ओर प्रेरित करना.

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