देहरादून में विरासत आर्ट एंड हेरिटेज महोत्सव (फोटो सोर्स- Virasat Art and Heritage Festival)
धीरज सजवाण
देहरादून: हर साल की तरह इस बार भी देहरादून के प्रसिद्ध विरासत आर्ट एंड हेरिटेज महोत्सव में पारंपरिक संस्कृतियों के अनोखे रंग देखने को मिल रहे हैं. अपने चिर परिचित अंदाज में विरासत महोत्सव की हर एक शाम में लोक कलाओं के अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं. खास बात ये है कि इस विरासत महोत्सव में देश ही नहीं, बल्कि एशिया, दक्षिण एशिया और यूरोप तक की पारंपरिक लोक संस्कृतियों की झलक देखने को मिल रही है.
बता दें कि बीती 4 अक्टूबर को यह महोत्सव शुरू हुआ, जो आगामी 18 अक्टूबर तक चलेगा. जो देहरादून के ओएनजीसी के डॉ. भीमराव अंबेडकर स्टेडियम में आयोजित किया जा रहा है. इस बार विरासत महोत्सव का 30वां संस्करण अस्सी साल पहले हिरोशिमा में हुए परमाणु बम विस्फोट के पीड़ितों की स्मृति को समर्पित है. विरासत समाज और संस्कृति के मानवीय पहलू के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता पैदा करने की दिशा में काम कर रहा है.
किर्गिस्तान के लोक कलाकारों का छाया जादू, सुर संगीत के आगे झूमे लोग: बीती 4 अक्टूबर से लेकर अब तक हर शाम एक विशेष लोक कलाकारों के नाम रहती है. अब तक कई देशों के लोक कलाकारों ने यहां अपनी प्रस्तुती अगल-अगल दिन दी है. इसी कड़ी में किर्गिस्तान के कलाकारों ने हिंदुस्तानी गीत ‘गोरों की न कालों की..ये दुनिया है दिलवालों की…’ पेश किया. जिस पर विरासत महोत्सव में पहुंचे लोग झूम उठे.
लोग विरासत महोत्सव में सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत किर्गिस्तान से आए लोक गायक कलाकारों की अद्भुत एवं अनूठी प्रस्तुति के साथ शुरू हुई. महिला और पुरुष कलाकारों ने अपने सुर संगीत के माध्यम से अपने देश की संगीत कला का अनोखा एवं अद्भुत प्रदर्शन विरासत की संध्या में कर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया. किर्गिस्तान को किर्गिज गणराज्य के नाम से भी जाना जाता है. यह मध्य एशिया का एक ऐसा देश है, जो अपने गणराज्य के इतिहास और संस्कृति के लिए जाना जाता है. इसकी राजधानी बिश्केक है,

किर्गिस्तान के कलाकार (फोटो- ETV Bharat)
वैसे तो भौगोलिक रूप से अपने अत्यधिक पहाड़ी भूभाग से अलग-थलग किर्गिस्तान रेशम और अन्य व्यापारिक मार्गों के माध्यम से कई महान सभ्यताओं का संगम रहा है. विभिन्न जनजातियों और कुलों की ओर से बसाए गए किर्गिस्तान की एक समृद्ध खानाबदोश संस्कृति है, जिसमें इन सभी की कला, संगीत और नृत्य का सम्मिश्रण है. यह प्रसिद्ध लोक गायक कलाकार किर्गिस्तान के जलाल-अबाद शहर से हैं.
वे किर्गिस्तानी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले एक ऑर्केस्ट्रा के रूप में आए हैं. इनके गायक कलाकारों के समूह में 12 लोक कलाकार हैं. इस ऑर्केस्ट्रा का नेतृत्व साबिरबायेव अमदिरासुल कर रहे हैं. उनके निर्देशन में प्रत्येक प्रदर्शन किर्गिज संगीत विरासत का एक सच्चा उत्सव बन जाता है. कोमुज एक राष्ट्रीय वाद्य यंत्र है और उसका किर्गिज संस्कृति में एक विशेष स्थान है. वायलिन वादक शमुरातोव नूरबेक पारंपरिक किर्गिज तकनीकों को वायलिन की शास्त्रीय ध्वनि के साथ खूबसूरती से मिलाते हैं.

वाद्य यंत्र बजाती महिला (फोटो- ETV Bharat)
अमदिरासुल खुद भी एक कुशल संगीतकार हैं. वे एक अन्य पारंपरिक किर्गिज वाद्ययंत्र ‘चूर’ बजाते हैं. कोमुज के अलावा उउज कोमुज पर भी प्रस्तुति दी गई है. कलाकारों के इस समूह में कामत फाजिज अकर जैसे प्रतिभाशाली कलाकार शामिल हैं, जो दुम्बिरा बजाते हैं. वहीं, म्यनबायेव उनारबेक भी शामिल हैं, जो कई अन्य वाद्य यंत्रों को कुशलता से बजाते हैं.
तोकीवा दिनारा तायतोयाक और वायलिन दोनों में अपनी प्रतिभा का योगदान देती हैं. जबकि, बकीत सातरोव डबल बेस और बकीत सोरोनबायेव कॉन्ट्रा बास बजाते हैं. वहीं, नाजगुल कजाखोवा किर्गिज कयाख्तौ में काफी कुशल हैं. प्रसिद्ध कलाकार और किर्गिज संगीत परंपराओं के संरक्षक टोकटोमुरात ओस्मानालियेव भी सम्मानित शख्सियत हैं, जो कुशलता से कोमुज बजाते हैं. एक अन्य कोमुज वादक निरलान ओमिरजाक भी उनकी टीम शामिल हैं.
श्रीलंकाई लोक गायक और कलाकारों का फॉक साईलोनिया: इसके साथ ही विरासत की शाम को श्रीलंकाई लोक कलाकारों ने भी खूबसूरत बनाया. खूबसूरत अदाकारी से भरपूर महफिल में श्रीलंकाई लोक कलाकारों की शानदार प्रस्तुति से विरासत महोत्सव झूम उठा. कार्यक्रम की शुरुआत तबला वादक थुरुथ संदीप और हारमोनियम वादक पं. धर्मनाथ मिश्रा की जुगलबंदी से हुई. इसके बाद श्रीलंकाई समूह ने सबरागामुवा नटुम नामक एक सुंदर नृत्य प्रस्तुत किया, जो श्रीलंका के सबरागामुवा प्रांत में पाई जाने वाली एक अनूठी शैली है.

नृत्य की प्रस्तुति देते श्रीलंकाई कलाकार (फोटो- ETV Bharat)
यह पारंपरिक नृत्य संरक्षक देवताओं को प्रसन्न करने और प्राकृतिक आपदाओं को दूर करने के अनुष्ठान के रूप में शुरू हुई एक प्रथा है, जो आज भी जारी है. इसके बाद उन्होंने एक पारंपरिक लोरी प्रस्तुत की. जिसमें मां के प्रेम और स्नेह को दर्शाया गया था. इसके बाद उन्होंने श्रीलंका स्टाइल में हिंदी फिल्म के गीत गाए. जिसमें ‘ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए…’ रही. अगली प्रस्तुति एक लोकगीत थी, जो आशा, खुशी और भक्ति का प्रतीक है. यह किसानों और गांव के लोगों के बारे में एक गीत है.
श्रीलंका कई संस्कृतियों, भाषाओं और जातियों का घर है. सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इस देश की विरासत प्रागैतिहासिक काल से चली आ रही है. इसके सुंदर परिदृश्य इसकी कला, संगीत और नृत्यों में दिखाई देते हैं. विभिन्न जातियों, भाषाओं और धार्मिक एवं आध्यात्मिक मान्यताओं ने इस समृद्ध व विविध समाज को जन्म दिया है. चौबीस श्रीलंकाई कलाकारों के शानदार प्रस्तुति को जमकर सराहा गया. फोक सिलोनिया श्रीलंका विश्वविद्यालय के इंडो म्यूजियोलॉजी विभाग का एक समूह है, जो पिछले 20 साल से भारतीय शास्त्रीय संगीत सिखा रहा है. उनके कार्यक्रम में एकल वाद्य वादन और लोक विषयों पर आधारित समूह नृत्य शामिल हुए.

वाद्य यंत्र बजाता कलाकर (फोटो सोर्स- Virasat Art and Heritage Festival)
कंदयान नृत्य (उदारता नतुम) का विकास कंदयान राजाओं के शासनकाल के दौरान हुआ था और इसका नाम ऐतिहासिक पहाड़ी राजधानी कैंडी के नाम पर रखा गया था. यह एक अत्यंत परिष्कृत और परिष्कृत नृत्य शैली है, जिसे पारंपरिक रूप से ताल वाद्यों, विशेष रूप से गाटा बेराया ड्रम और छोटे झांझ (थलमपोटा) के साथ पेश किया जाता है.
जबकि, पहाथा राता नतुम श्रीलंका के दक्षिणी तटीय मैदानों से उत्पन्न एक नृत्य है. वहीं, सबरागामुवा नतुम श्रीलंका के सबरागामुवा प्रांत में पाई जाने वाली एक अनूठी शैली है. ये पारंपरिक नृत्य संरक्षक देवताओं को प्रसन्न करने और प्राकृतिक आपदाओं को दूर भगाने के अनुष्ठानों के रूप में शुरू हुए थे, जो आज भी जारी है. यह नृत्य अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों, समारोहों और त्योहारों के दौरान किए जाते हैं. प्रस्तुति में थारुथ संदीप राजपाकाहा की ओर से बजाए गए तबले की अद्भुत थाप से प्रशंसकों की खुशी में चार चांद लग गए.

देहरादून में विदेशी कलाकार (फोटो सोर्स- Virasat Art and Heritage Festival)
प्रतिभाग करने वाले इन श्रीलंकाई कलाकारों में कोट्टा कंकनमगे प्रियंकिगा लकमाली, वडुवावेलगे निपुनि थरुशिकाकरुणारत्न, वुल्लापेरुमगे काविनी हिवीमारा, सिंगप्पुली अराचिगे चामल्का नायोमी, रत्नायका मुदियानसेलगे उदेशिका मधुभाशिनि करुणारत्न, विथाना पथिरानाहलगे गांगुली कवीश्वर, दासनायके संदुनी इशारा विक्रमसिंघे, हेट्टी अराचिगे चतुरंगा लक्षण परेरा, सिलांगगे मदुशा सेववंडी करुणारत्न, करागोडाविडाना गमागे वासना मधुवंती जयवर्धन, डैमेज डोना मदुशी मेथमिनी, मपालागामा वान्नियाराचिगे बिमाली मदुभाशी शामिल रहे.
इसके अलावाा हेगामा धनपाला मुदियान्सेलगे नेथमी विमाशा चंद्ररत्न, अथापत्थु मुदिअनसेलगे थिसारी धनंजना, पोद्दीवाला हेवेगे हिमाशा निपुनी लक्षणी, निश्शंका अराचिलागे उदारि चामोदिका, ओविटिगाला विथानगे चमारी बिमाली, थेन्नाकून मुदियानसेलगे निमेशिका थेन्नाकून, वन्निगमगे सारंगी माधुर्य, मल्लिया वेदकरयालागे दिलेक्षी प्रशनिका, मेदा गेदारा जयनि चतुरिका इन्द्रतिलका, हर्षा प्रगीथ मदुमल जगोड़ा, मलालरत्न सेनानायके मुदियानसेलगे अंजलि मेश बांदा और एमके थारूथ संदीप राजपक्षे शामिल रहे.

गीत पेश करती विदेशी कलाकार (फोटो सोर्स- Virasat Art and Heritage Festival)
बेलारूस के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से लोगों का दिल जीता: इसी तरह से एक और शाम विरासत के प्रेमियों एवं प्रशंसकों के लिए बहुत ही ज्यादा उत्साह वाली और यादगार रूप में दर्ज हुई. जिसमें बेलारूस के लोक कलाकारों ने अपनी सुंदर प्रस्तुति दी. बता दें कि बेलारूस गणराज्य जो कि पूर्वी यूरोप का एक देश है. इसकी राजधानी मिन्स्क है. इस देश की सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य कला इसकी पहचान है.
बेलारूस वासियों की सांस्कृतिक पहचान नैतिकता और मानवता के आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित है. सदियों से ये मूल्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते रहे हैं. ये अच्छे और न्याय के उच्च आदर्श होते हैं. दूसरों के प्रति सम्मान, बुराई और हिंसा का कड़ा विरोध भी करते हैं. बेलारूसी कलाकारों में विटाली क्लिमाकोव (मुखर), ल्यूडमिला त्रासेन्का (झांझ), एलिना पियाटकोविच (वायलिन), रीमा मिकालिच (बांसुरी), चुबिन सियारही (बास गिटार) शामिल रहे.
इसके अलावा राहोजा लिउबो (गायन), अलियाक्सेंडर यात्सकोविच (टैम्बोरिन), विक्टर क्लिमिखिन (त्रिकोण), अर्लू अलेह (ड्रम) और इरीना कुस्तियुक (वायलिन) शामिल रहे. वहीं, बेलारूस गणराज्य का शौकिया समूह लोक संगीत समूह ‘स्पैडचिना’ है. इस समूह के प्रदर्शनों की सूची में बेलारूसी लोक गीतों और नृत्यों के साथ-साथ बेलारूसी संगीतकारों की ओर से रचित रचनाएं भी शामिल हैं.
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