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उत्तराखंड में बजट खर्च करने में 'कंजूसी' बरत रहे कई विभाग, जानिए विभागवार स्थिति


बजट खर्च (फोटो- ETV Bharat GFX)

धीरज सजवाण

देहरादून: उत्तराखंड में हर साल सरकार भारी भरकम बजट पेश करती है. इस वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए भी राज्य सरकार ने 1 लाख करोड़ से ज्यादा का बजट विधानसभा के बजट सत्र में पेश किया था. राज्य गठन के समय सालाना बजट 4500 करोड़ का था, जो अब बढ़कर 1 लाख करोड़ तक का पहुंच गया है. इस तरह से इन 25 सालों में अगर औसतन बजट वृद्धि देखी जाए तो यह 10 से 15 फीसदी के बीच में रही है. वहीं, अब साल खत्म हो को है, लेकिन कई विभाग बजट खर्च नहीं कर पाए हैं.

साल 2025-26 के बजट का हिसाब-किताब: इस वित्तीय वर्ष के लिए उत्तराखंड सरकार ने बीते 19 फरवरी 2025 को विधानसभा में बजट सत्र के दौरान 1 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश किया. वहीं, इस 1 लाख करोड़ के बजट में से बजट के कई तरह के विभाजन होते हैं. इस 1 लाख करोड़ के बजट में से तकरीबन 20 लाख रुपए WMA मद यानी वेज मैंस एडवांस में रखा जाता है तो वही बचे 80,000 करोड़ को राजस्व व्यय (Revenue Expense) और पूंजीगत व्यय (Capital Expense) में बांटा जाता है.

उत्तराखंड के वित्त सचिव दिलीप जावलकर का बयान (वीडियो- ETV Bharat)

इस वित्तीय वर्ष में वित्त विभाग की ओर से 60 हजार करोड़ रुपए राजस्व व्यय में रखा गया है. जिसमें राज्य सरकार अपने खर्च (सैलरी और अन्य खर्च) आते हैं, उनमें व्यय करती है तो वहीं 20,000 करोड़ रुपए पूंजीगत निवेश के लिए रखा गया. यही वो मद होता है, जिससे प्रदेश की तरक्की यानी प्रदेश में तमाम विकास कार्य किए जाते हैं. इस 20,000 करोड़ रुपए में से भी तकरीबन 600 करोड़ लोन इत्यादि चुकाने में जाता है और बचा हुआ तकरीबन 1,400 करोड़ रुपए अब मात्र प्रदेश के विकास कार्यों के हिस्से में आता है.

बजट खर्च को लेकर सभी विभागों पर वित्त विभाग की नजर: जहां एक तरफ सरकार हर साल अपने बजट में वृद्धि कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ इस बजट में से कितना पैसा विकास कार्यों यानी प्रदेश में पूंजीगत निवेश पर खर्च किया जा रहा है, इसको लेकर लगातार वित्त विभाग सभी विभागों पर नजर रखता है. कोशिश की जाती है कि कैपिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए तय किए गए बजट को ज्यादा से ज्यादा खर्च किया जाए.

वहीं, इस वित्तीय वर्ष 2025-26 के तहत 1 लाख करोड़ के बजट में से तकरीबन 1,400 करोड़ रुपए पूंजीगत विकास के लिए बजट में प्रावधान किया गया है. इसमें से वित्त विभाग की मंशा रहती है कि सभी विभाग तय समय से अपना बजट खर्च करें और पूंजीगत विकास में होने वाले इस बजट का पूरा उपयोग हो, ताकि प्रदेश में विकास कार्य अपने समय से पूरे किए जा सके.

इन विभागों पर विकास की जिम्मेदारी, लेकिन नहीं खर्च कर पा रहे बजट: लोक निर्माण विभाग के लिए 2,412 करोड़ का बजट रखा गया है, लेकिन खर्च मात्र 534 करोड़ रुपए हो पाया है. जो 22.14 फीसदी है. पेयजल के लिए 2,268 करोड़ का बजट रखा गया है. खर्च मात्र 494 करोड़ रुपए हुआ है. जो 21.78 फीसदी है. इसी तरह से ग्रामीण विकास के लिए 1,590 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च मात्र 469 करोड़ रुपए यानी 29.50 फीसदी ही हो पाया है. वहीं, ऊर्जा के लिए 1,313 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च मात्र 592 करोड़ रुपए हुआ है. जो 45.09 फीसदी है.

इसी तरह शहरी विकास के लिए 1,181 करोड़ का बजट रखा गया है. जबकि, खर्च मात्र 350 करोड़ रुपए यानी 29.64 फीसदी हो पाया है. सिंचाई विभाग के लिए 1,041 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च मात्र 270 करोड़ रुपए हो पाया है. जो 25.94 फीसदी है. वहीं, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के लिए 613 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च 607 करोड़ रुपए हुआ है. जो 99.02 फीसदी है. यही विभाग ऐसा है, जिसने सबसे ज्यादा बजट खर्च किया है.

बजट खर्च में फिसड्डी विभाग: आपदा प्रबंधन विभाग के लिए 646 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च मात्र 18 करोड़ रुपए यानी 2.79 फीसदी हो पाया है. मेडिकल और हेल्थ में 218 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च मात्र 76 करोड़ रुपए हुआ है. जो 34.86 फीसदी है. पर्यटन के लिए 297 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च 103 करोड़ रुपए का हुआ है. जो 34.86 फीसदी है. वहीं, नागरिक उड्डयन के लिए 225 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसका खर्च मात्र 7 करोड़ रुपए यानी 3.11 फीसदी हो पाया है.

हॉर्टिकल्चर के लिए 194 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च मात्र 13 करोड़ रुपए रखा गया है. जो 6.07 फीसदी है. मेडिकल एजुकेशन के लिए 111 करोड़ का बजट रखा गया है. जिसमें खर्च 53 करोड़ रुपए यानी 47.75 फीसदी हुआ है. इसी तरह वन विभाग के लिए 99 करोड़ का बजट रखा गया है. खर्च मात्र 15 करोड़ रुपए हुआ है. जो 15.15 फीसदी है. वहीं, जलागम में 100 करोड़ का बजट रखा गया है. हैरानी की बात ये है कि अब तक कुछ भी खर्च नहीं किया है.

इस तरह से 17 नवंबर 2025 तक के इन आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश का कोई भी विभाग अब तक 50 फीसदी बजट खर्च नहीं कर पाया है. वहीं सभी विभागों में केवल एक मात्र खाद्य एवं नाम नागरिक आपूर्ति विभाग ऐसा है, जिसने सबसे ज्यादा बजट खर्च किया है. जबकि, एक विभाग जलागम ऐसा भी है, जिसको 100 करोड़ का बजट दिया गया है, लेकिन विभाग ने अब तक 0% खर्च किया है.

वित्त सचिव दिलीप जावलकर का कहना है कि कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी पूंजीगत व्यय के लिए रखे गए बजट को लेकर मुख्यतः वित्त विभाग का यह उद्देश्य रहता है कि विभागों को बजट के अनुसार धनराशि पहुंचे और विभाग समय से इस धनराशि को खर्च करें. वित्त सचिव ने बताया कि पूंजीगत व्यय में मुख्य तरह के वो बड़े प्रोजेक्ट होते हैं, जो कि प्रदेश में विकास योजनाओं की दृष्टिकोण से धरातल पर उतारे जाते हैं.

उन्होंने कहा कि प्रदेश की आर्थिक और जीडीपी में इस खर्चे से काफी बड़ा प्रभाव पड़ता है. उन्होंने बताया कि पूरे प्रदेश भर में पूंजीगत व्यय के खर्चे में से अब तक तकरीबन 4,000 करोड़ का खर्च राज्य सरकार कर चुकी है. जो कि पिछले वित्तीय वर्ष के खर्च के अनुपात में उतना ही है. हालांकि, वित्त विभाग की यह कोशिश है कि लगातार इस खर्च को बढ़ाया जाए. ताकि, प्रदेश में विकास योजनाओं को गति मिल सके.

अब तक के पैटर्न के अनुसार देखा जाता है कि पूरे साल भर विभाग बजट खर्च करने में उतने कारगर साबित नहीं होते हैं और आखिरी के 3 महीने में बजट को खर्च करने की होड़ लगी रहती है. वित्त विभाग की कोशिश है कि साल भर चरणबद्ध तरीके से विभाग अपना कैपिटल एक्सपेंडिचर खर्च करें. समयबद्ध तरीके से विकास योजनाओं को धरातल पर उतारें.“- दिलीप जावलकर, वित्त सचिव, उत्तराखंड

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