उत्तराखंड में चुनावी मुद्दों तक समिति रहा लोकायुक्त (ETV Bharat)
नवीन उनियाल की रिपोर्ट
देहरादून: राज्य गठन के 25 साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन अब भी उत्तराखंड को लोकायुक्त की नियुक्ति का इंतजार है. हैरानी की बात ये है कि राज्य में राजनीतिक दल भ्रष्टाचार विरोध के बल पर सत्तासीन हुए, लेकिन 2013 के बाद किसी सरकार ने इस मुद्दे को अंजाम तक नहीं पहुंचाया. खास बात ये है कि अब रजत जयंती वर्ष से ठीक पहले लोकायुक्त पर धामी सरकार ने एक बार फिर से कदम बढ़ाने के संकेत दिए हैं. उत्तराखंड में भ्रष्टाचार का मुद्दा, लोकायुक्त के गठन को लेकर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट…
2002 में लोकायुक्त की स्थापना: राज्य गठन के बाद साल 2002 में उत्तराखंड में लोकायुक्त की स्थापना हुई. सैयद रजा अब्बास पहले लोकायुक्त बने. 2008 में एमएम घिल्डियाल ने पदभार संभाला. 2013 तक सेवाएं दीं. तब से अब तक यह पद खाली है. हालांकि, इस अवधि में लोकायुक्त कार्यालय चलता रहा. इस पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए.
उत्तराखंड में चुनावी मुद्दों तक समिति रहा लोकायुक्त (VIDEO-ETV Bharat)
बीसी खंडूड़ी ने किया मजबूत लोकायुक्त बनाने का प्रयास: लोकायुक्त को सशक्त बनाने के प्रयास कई बार हुए, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण हर बार यह मामला अटक गया. साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी की सरकार ने मजबूत लोकायुक्त विधेयक विधानसभा में पारित किया. जिसके तहत मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और अफसर तक को दायरे में लाने का प्रावधान था. इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी. लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद 2014 में विजय बहुगुणा सरकार ने कमजोर लोकायुक्त विधेयक पारित किया. जिसमें मुख्यमंत्री को दायरे से बाहर रखा गया. यह विधेयक भी लागू नहीं हो सका.

जानें लोकायुक्त मामले पर सरकारों ने क्या किया. (PHOTO-ETV Bharat)
लोकायुक्त भाजपा का चुनावी वादा: इसके बाद 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने नया लोकायुक्त विधेयक लाने की कोशिश की, लेकिन यह आज तक विधानसभा में लंबित है. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने 2017 में चुनाव के दौरान 100 दिन में लोकायुक्त नियुक्त करने का वादा किया था. आज आठ साल बीतने के बाद भी यह वादा अधूरा है. सरकार का तर्क है कि उसकी कार्यप्रणाली ‘भ्रष्टाचार मुक्त’ है, इसलिए लोकायुक्त की जरूरत नहीं है.
चुनावी साल में चमकता लोकायुक्त का मुद्दा: भ्रष्टाचार उत्तराखंड की राजनीति का स्थायी मुद्दा रहा है. 2002 से अब तक हर चुनाव में यह मुद्दा उठता रहा, लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस हो या भाजपा, किसी ने भी प्रभावी लोकायुक्त गठन नहीं किया. मजेदार बात यह है कि चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दल चुनावी भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर सत्ताधारी दल को घेरने की कोशिश करता है. कभी छप्पन घोटाले तो कभी 100 से ज्यादा घोटाले की बात कह कर जनता के सामने सत्ताधारी दल पर जमकर प्रहार किए जाते हैं. इसी बल पर कई बार राजनीतिक दलों ने सत्ता भी हासिल की.

जानें लोकायुक्त मामले पर कब क्या हुआ (PHOTO-ETV Bharat)
‘सरकार किसी भी दल की आई हो, किसी ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ कभी कोई काम नहीं किया. लोकायुक्त के लिए हर सरकार ने अपने घोषणा पत्र में बात रखी. भाजपा तो भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करती है, लेकिन सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भाजपा की सरकार में ही होता है’.
संजय डोभाल, यमुनोत्री से निर्दलीय विधायक
धामी सरकार तैयार कर रही मसौदा: उत्तराखंड में एक बार फिर लोकायुक्त को लेकर चर्चा तेज हो रही है. दरअसल, धामी सरकार लोकायुक्त का मसौदा तैयार करने में जुटी हुई है. शायद यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता पूरे विश्वास के साथ लोकायुक्त की नियुक्ति किए जाने का दावा करते हुए दिखाई देते हैं.
‘लोकायुक्त के जरिए तो भ्रष्टाचार होने के बाद उस पर कार्रवाई का प्रावधान है, मगर भाजपा सरकार जीरो टॉलरेंस के तहत काम करती है. उत्तराखंड में भाजपा सरकार लोकायुक्त गठन की दिशा में कदम बढ़ा रही है’
दीप्ति रावत, महामंत्री, भारतीय जनता पार्टी
विधानसभा चुनाव में कब किसने क्या बनाया मुद्दा
- उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की अंतरिम सरकार पर भ्रष्टाचार और अनियमित नियुक्तियों के आरोप लगाए. वित्तीय अनियमितताओं और नियुक्तियों में गड़बड़ी को कांग्रेस ने मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया. इस चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आई. जिसके बाद नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने.
- इसके बाद दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस सरकार पर 56 घोटालों का आरोप लगाया. भाजपा ने चुनाव प्रचार में एनडी तिवारी सरकार के दौरान ठेके, नियुक्तियों और योजनाओं में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. जिसका असर ये हुआ कि भाजपा सत्ता में आई. जिसके बाद भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने.
- इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में स्टर्डिया घोटाला, 56 जलविद्युत परियोजनाओं में अनियमितता, ढैंचा बीज घोटाला जैसे मामलों को कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया. भाजपा के मुख्यमंत्रियों भुवन चंद्र खंडूड़ी और रमेश पोखरियाल निशंक पर निशाना साधते हुए कांग्रेस ने भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा किया. कांग्रेस ने चुनाव जीता. विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने.
- इसके बाद साल 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस पर विधायकों की खरीद-फरोख्त और आबकारी घोटाले जैसे आरोप लगाए. इस दौरान शराब ठेकों में गड़बड़ियों को मुद्दा बनाया गया. भाजपा ने वादा किया कि सरकार बनने पर 100 दिन के भीतर लोकायुक्त नियुक्त किया जाएगा. जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई जाएगी. इस चुनाव में भाजपा भारी बहुमत से सत्ता में आई.
- उधर साल 2022 के चुनाव में भाजपा ने फिर भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का नारा दिया. जीरो टॉलरेंस नीति को दोहराया. कांग्रेस ने इस बार भर्ती घोटालों, खनन और भूमि घोटालों तथा महाकुंभ निर्माण से जुड़े भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया. लेकिन 100 दिन के भीतर लोकायुक्त नियुक्त करने का मुद्दा कांग्रेस पर भारी पड़ा. भाजपा ने फिर भारी बहुमत से वापसी की.
लोकायुक्त मामले पर कांग्रेस का पक्ष सबसे ज्यादा आक्रामक दिखाई देता है. भाजपा पर निशाना साधने से ज्यादा कांग्रेस अन्ना हजारे पर हमलावर दिखाई देती है.
उत्तराखंड समेत देश में लोकायुक्त और लोकपाल को लेकर आंदोलन करने वाले अन्ना हजारे क्यों चुप बैठे हैं? क्या उन्हें अब देश में राम राज्य दिखने लगा है? अन्ना हजारे आरएसएस से जुड़े हैं. इसीलिए उन्होंने केवल कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया. बाद में भाजपा सरकार आने के बाद चुप बैठ गए.
सूर्यकांत धस्माना, उपाध्यक्ष, उत्तराखंड कांग्रेस
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