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उत्तराखंड में तीर्थाटन को सरल बनाने की जद्दोजहद, केदारनाथ में रोपवे पर कागजी कार्रवाई तेज, वैज्ञानिक ने फिर चेताया


किरणकांत शर्मा

देहरादून: उत्तराखंड के चार धामों में से एक विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं को रोपवे सुविधा मिलेगी. इसके लिए तैयारी तेजी से चल रही है. केंद्र सरकार ने केदारनाथ रोपवे परियोजना का टेंडर प्रक्रिया भी पूरी कर ली है. लगभग 4 हजार करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली इस परियोजना को देश की एक प्रमुख कंपनी को सौंपा गया है. कंपनी अगले पांच सालों में इस रोपवे का निर्माण करेगी और आने वाले 29 वर्षों तक इसका संचालन और रखरखाव भी करेगी. केदारनाथ में रोपवे का सर्वे से लेकर सभी धरातल के काम लगभग पूरे कर लिए हैं.

12.9 किलोमीटर लंबा होगा रोपवे: पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से मिली जानकारी के अनुसार, यह रोपवे परियोजना 12.9 किलोमीटर लंबी होगी, जो सोनप्रयाग से केदारनाथ धाम तक बनेगी. अभी जहां श्रद्धालुओं को 16 किमी की पैदल चढ़ाई में 8 से 9 घंटे लगते हैं, वहीं रोपवे तैयार होने के बाद यह दूरी केवल 35 से 40 मिनट में पूरी की जा सकेगी. इस परियोजना में आधुनिक मोनोकेबल डिटैचेबल गोंडोला (Monocable Detachable Gondola-MCGD) तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, जो तारों के सहारे रोपवे को लाने और जाने में मदद करेगा.

सोनप्रयाग से केदारनाथ तक का वर्तमान मार्ग. (PHOTO- ETV Bharat)

क्यों जरूरी है रोपवे: हर साल चारधाम यात्रा के दौरान करीब 15 से 20 लाख श्रद्धालु केदारनाथ धाम पहुंचते हैं. बारिश और भूस्खलन के कारण यात्रा अक्सर बाधित रहती है. वर्तमान में लोग पैदल, खच्चरों और हेलीकॉप्टर से धाम पहुंचते हैं. लेकिन रोपवे बन जाने के बाद यात्रा सुगम और सुरक्षित होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे यात्रियों की संख्या और अधिक बढ़ सकती है. साथ ही लोगों का समय बचेगा.

पर्यावरणविदों की चिंता: हालांकि, इस पूरे प्रोजेक्ट पर पर्यावरणविद चिंतित हैं. प्रसिद्ध पर्यावरणविद् दिवंगत सुंदरलाल बहुगुणा के पुत्र राजीव नयन बहुगुणा ने इस परियोजना पर सवाल उठाए हैं.

KEDARNATH ROPEWAY PROJECT

सोनप्रयाग से केदारनाथ तक का रोपवे प्रोजेक्ट. (PHOTO- ETV Bharat)

पहाड़ पहले से ही प्राकृतिक आपदाओं के दबाव में है. ऐसे में मशीनों और बड़े पैमाने पर निर्माण कार्यों से केदारनाथ क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को खतरा हो सकता है. उन्होंने चेताया कि पिछले वर्षों में उत्तराखंड ने कई आपदाएं देखी हैं. इसलिए पहाड़ों पर किसी तरह का बड़ा एक्सपेरिमेंट सही नहीं होगा. उन्होंने कहा कि कोई भी निर्माणकार्य बिना पहाड़ों को काटे और तोड़े नहीं हो सकता है. अगर इसके बिना कुछ होता है तो, बात अलग है.
– राजीव नयन बहुगुणा, पर्यावरणविद् –

सरकार का पक्ष: पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि रोपवे परियोजना से पर्यावरण को नुकसान नहीं, बल्कि फायदा होगा. मंत्री सतपाल की मानें तो जो श्रद्धालु अभी हेलीकॉप्टर से जाते हैं, वो रोपवे का विकल्प चुनेंगे. इससे हेलीकॉप्टर की आवाजाही कम होगी और कार्बन उत्सर्जन भी घटेगा. यात्रियों को आरामदायक सुविधा मिलेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. मंत्री ने यह भी बताया कि भविष्य में केंद्र और राज्य सरकार मिलकर हेमकुंड साहिब तक भी रोपवे का निर्माण करेगी.

KEDARNATH ROPEWAY PROJECT

केंद्र जारी केदारनाथ रोपवे प्रोजेक्ट का जारी मैप (PHOTO PIB)

उत्तराखंड में जितने भी धार्मिक स्थल हैं, सरकार वहां भक्तों के लिए बेहतर सुविधा जुटा रही है. केदारनाथ की चढ़ाई बेहद कठिन है. ऐसे में बहुत से लोग जा पाते हैं और बहुत से लोग नहीं जा पाते. केदारनाथ में इस प्रोजेक्ट की इसलिए भी जरूरत है, ताकि आसानी से श्रद्धालु धाम तक पहुंच सके. हम आगे ओर भी इस तरह के प्रोजेक्ट प्रदेश के ऊंचे इलाकों में बनाने जा रहे हैं.
– सतपाल महाराज, पर्यटन मंत्री, उत्तराखंड –

सर्वे के बाद ही होता है हर काम: पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कहना है, किसी भी प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले उसका प्रॉपर सर्वे होता है. कोई भी प्रोजेक्ट यूं ही तैयार नहीं होता है. हमारे प्रदेश में रेल मार्ग भी बन रहा है और जल्द तैयार हो जाएगा. सरकार बेहद शानदार तकनीक से सभी प्रोजेक्ट तैयार कर रही है. उत्तराखंड का मनसा देवी या सुरकंडा देवी रोप-वे प्रोजेक्ट भी सर्वे के बाद ही बने हैं. उनमें कोई दिक्कत नहीं, क्योंकि सभी पहलुओं की देख-रेख के बाद ही काम शुरू होता है.

KEDARNATH ROPEWAY PROJECT

केदारनाथ रोपवे प्रोजेक्ट की जानकारी (PHOTO- PIB)

उन्होंने कहा कि, साथ ही समय समय पर रोप-वे और पहाड़ों के हालात परखे जाते हैं. ऐसा नहीं है कि किसी का इससे रोजगार छिनेगा, बल्कि रोजगार बढ़ेगा. यात्रियों की संख्या अधिक आएगी, तो काम भी अधिक लोगों को मिलेगा. इसलिए ये कहना कि रोपवे से किसी का रोजगार खत्म हो जाएगा, गलत है. आज अगर 20 लाख भक्त आ रहे हैं, फिर हो सकता है 30 लाख या उससे कई अधिक आएं.

विपक्ष का मत: पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने दावा किया कि रोपवे की योजना यूपीए सरकार के समय ही बनाई गई थी. उनका कहना है कि हमारी (कांग्रेस) सोच यह थी कि सोनप्रयाग से सीधा रोपवे न बने, बल्कि बीच में गौरीकुंड जैसे धार्मिक स्थल पर एक स्टॉप रखा जाए. इससे स्थानीय व्यापारियों को भी लाभ मिलेगा और तीर्थ का पारंपरिक स्वरूप बना रहेगा. सीधा रोपवे बनना स्थानीय लोगों के साथ अन्याय होगा.

KEDARNATH ROPEWAY PROJECT

अभी सोनप्रयाग से केदारनाथ तक 22 किमी की है दूरी. (PHOTO- PIB)

हम पहले से ही कहते रहे हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ इस लायक नहीं हैं कि उनमें इतने बड़े प्रोजेक्ट लाए जाएं. लेकिन फिर भी पहाड़ों को लगातार खोदा और डायनामाइट से तोड़ा जा रहा है. जोशीमठ की घटना हाल ही का उदाहरण है. हर साल बारिश के दौरान केदारनाथ और आसपास की घटना एक चेतावनी है. सरकार टीटमेंट करे लेकिन भारी मशीनें का उपयोग और पहाड़ों को खोदना सही नहीं है. ये सभी पहाड़ बेहद नए हैं और उनमें काम करना सही नहीं है. – बह्म दत्त जोशी, भू वैज्ञानिक –

स्थानीय लोगों की उम्मीदें: अभी तक अधिकांश लोग पैदल या खच्चरों के सहारे धाम तक जाते हैं, जिससे यात्रा सीमित रहती है. लेकिन रोपवे शुरू होने पर अधिक संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे. जिससे रोजगार और पर्यटन दोनों को फायदा होगा.

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केदारनाथ के लिए टनल प्रोजेक्ट पर भी चल रहा है काम (PHOTO- ETV Bharat)

बहरहाल केदारनाथ रोपवे परियोजना, उत्तराखंड के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकती है. हालांकि, रोपवे से श्रद्धालुओं के लिए केदारनाथ धाम की यात्रा आसान होगी, लेकिन पर्यावरण और स्थानीय संस्कृति पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएं भी हैं. ऐसे में आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इन दोनों पहलुओं के बीच संतुलन कैसे बनाती है.

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