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उत्तराखंड की इस एजुकेशन सिटी में कलम छोड़ हिंसा का रास्ता क्यों अपना रहे छात्र?  जानकारों से समझिये


नवीन उनियाल की रिपोर्ट…

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून भले ही शिक्षा के हब के रूप में जाना जाती हो, लेकिन पिछले कुछ समय में यहां छात्र पढ़ाई छोड़ हिंसा के रास्ते पर उतरते दिखाई दे रहे हैं. यह स्थिति न केवल शिक्षा से जुड़े लोगों के लिए चिंता बनी हुई है, बल्कि पुलिस के लिए भी ये हालात परेशानी भरे रहे हैं.

राजधानी में ऐसे तमाम शैक्षणिक संस्थान मौजूद हैं, जिनके चलते देहरादून देश-दुनिया भर में बेहतर शिक्षा के लिए पहचाना जाता है. न केवल स्कूली शिक्षा बल्कि अब उच्च शिक्षा के लिए भी यहां देशभर के छात्र पढ़ाई करने के लिए पहुंचते हैं. हालांकि, अब बदलते वक्त के साथ देहरादून में छात्रों का रुझान हिंसा की तरफ बढ़ता दिखाई दिया है. ऐसा उन घटनाओं को देखकर समझा जा सकता है, जो अक्सर थाने-चौकियों तक भी पहुंच रही हैं.

दून में सबसे ज्यादा उच्च शिक्षा से जुड़े शैक्षणिक संस्थान प्रेमनगर क्षेत्र में हैं, और इसी इलाके से सबसे ज्यादा घटनाएं भी सामने आ रही हैं. इसी महीने की शुरुआत में प्रेमनगर क्षेत्र में बॉयज हॉस्टल से फायरिंग की घटना भी सामने आई थी, जिसमें छात्रों के दो गुट आपस में भिड़ गए थे और उसके बाद जमकर उपद्रव मचाते हुए छात्रों ने फायरिंग तक कर डाली थी.

एजुकेशन सिटी में कलम छोड़ हिंसा का रास्ता क्यों अपना रहे छात्र? (ETV Bharat)

प्रेमनगर का इलाका सबसे ज्यादा संवेदनशील: इस मामले में करीब 8 छात्रों की गिरफ्तारी की गई थी, जिनमें अधिकतर उत्तर प्रदेश के रहने वाले छात्र हैं. राजधानी में ऐसा कोई एक अकेला मामला नहीं है. हर महीने करीब 2 से 4 मामले छात्रों के बीच आपसी गुटबाजी के सामने आते रहते हैं. प्रेमनगर इलाका तो छात्रों की आपसी रंजिश और उनके उपद्रव को लेकर संवेदनशील बन चुका है. इसी वजह से यहां कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति भी बन जाती है.

कॉलेज छात्रों की हिंसा के स्थानीय लोग भी परेशान: कॉलेज छात्रों की हिंसा से स्थानीय लोगों में भी डर का माहौल बनता है. देहरादून पुलिस भी इस क्षेत्र में छात्रों की बड़ी संख्या होने और यहां अक्सर ऐसी घटनाएं होने कारण इस क्षेत्र को संवेदनशील मानती है. स्थिति की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि अब तक एक साल के अंदर करीब छात्रों के आपसी झगड़े के 30 से ज्यादा मामले अलग-अलग थानों में पहुंच चुके हैं. हालांकि, इसमें गंभीर मामलों में पुलिस ने कार्रवाई भी की है, जिसके आधार पर करीब 85 छात्रों को कॉलेज और विभिन्न यूनिवर्सिटीज से निष्कासित भी किया गया है.

पुलिस ने किया विशेष बल का गठन: खास बात यह है कि पुलिस ने इस क्षेत्र के लिए एक विशेष पुलिस बल भी गठित किया है, जो क्षेत्र में विशेष तौर पर इसी तरह के मामलों या घटनाओं को लेकर निगरानी रखता है. देहरादून के एसएसपी अजय सिंह कहते हैं कि—

छात्रों के आपसी टकराव से जुड़े कई मामले सामने आते रहे हैं और इसके लिए पुलिस भी कार्रवाई करती रही है. इस दौरान संबंधित कॉलेज या विश्वविद्यालय से भी बात की जाती है और इससे जुड़ी रिपोर्ट भी दी जाती है. जबकि विश्वविद्यालय या कॉलेजों से समन्वय स्थापित करते हुए छात्रों को लेकर जरूरी दिशा निर्देश भी दिए जाते हैं.
– अजय सिंह, एसएसपी, देहरादून –

देहरादून में बड़ी संख्या में ऐसे छात्र हैं जो दूसरे राज्यों से पढ़ाई करने के लिए यहां पहुंचे हैं. अक्सर अभिभावकों के साथ न होने के कारण भी ऐसे छात्रों को सही गाइडेंस नहीं मिल पाती, जिसके कारण कलम छोड़कर वह गन कल्चर की तरफ चले जाते हैं.

शिक्षाविद तो यहां तक कहते हैं कि यहां शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले करीब 80 प्रतिशत छात्र दूसरे राज्य से ताल्लुक रखते हैं. अकेले प्रेमनगर थाना क्षेत्र में ही करीब 11 कॉलेज या विश्वविद्यालय मौजूद हैं. इसके लिए यहां करीब 68 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं.

देहरादून में ही पिछले कई दशक से छात्रों को पढ़ा रहे शिक्षाविद हरी भंडारी बताते हैं कि समय के साथ ही देहरादून का माहौल बदला है. हालांकि, इसके पीछे की बड़ी वजह वो देहरादून में बड़ी संख्या में बाहरी राज्यों के छात्रों को मानते हुए हैं.

हरी भंडारी का कहना है कि देहरादून में छात्रों को गाइडेंस देने के लिए न तो उनके अभिभावक यहां होते हैं और न ही इन्हें किसी तरह का कोई मोटिवेशन मिलता है. नतीजा यह होता है कि यह छात्र पढ़ने की जगह दूसरी गतिविधियों में ही लग जाते हैं.

छात्रों के पढ़ाई छोड़कर गन कल्चर की तरफ जाने की कई वजह है और इसके लिए न केवल समाज जिम्मेदार है, बल्कि अभिभावक और संस्थान का प्रबंधन भी जिम्मेदार है. इसके अलावा लगातार सोशल मीडिया पर छात्रों का बढ़ता रुझान भी इसके लिए दोषी है. शिक्षाविद इन स्थितियों को सुधारने के लिए सभी को इस पर ध्यान देने की बात कहते हैं और छात्रों को पढ़ने के साथ उन्हें मोटिवेट करने को भी जरूरी बताते हैं.

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