देहरादून: उत्तराखंड पंचायत चुनाव के दौरान नैनीताल में जिला पंचायत सदस्यों के कथित अपहरण मामले पर आज संबंधित पंचायत प्रतिनिधि और अफसर राज्य निर्वाचन आयोग में पेश हुए. इस दौरान सभी ने चुनाव प्रक्रिया में मामले को लेकर अपने बयान दर्ज कराए.
डीएम-एसपी से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष और सदस्य भी हुए पेश: नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव का मामला शुक्रवार यानी 5 सितंबर को राज्य निर्वाचन आयोग पहुंच गया. इस दौरान नैनीताल के जिलाधिकारी और एसएसपी भी आयोग में पेश हुए.
खास बात ये रही की राज्य निर्वाचन आयोग के सामने नैनीताल में जिला पंचायत अध्यक्ष की दोनों उम्मीदवार भी पहुंची और साथ ही कथित किडनैपिंग प्रकरण से जुड़े 5 जिला पंचायत सदस्यों ने भी अपनी बात रखी. राज्य निर्वाचन आयोग के दफ्तर में करीब 6 घंटे तक बयान दर्ज किए गए.
जिला पंचायत सदस्य पुष्पा नेगी (फोटो- ETV Bharat)
दरअसल, नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में दावेदार रही पुष्पा नेगी ने हाईकोर्ट के निर्देश के बाद प्रकरण पर आयोग को लिखित शिकायत की थी. पुष्पा नेगी का आरोप था कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर चुनाव के दौरान जबरदस्त धांधली की गई. चुनाव के दौरान उनकी अनुपस्थिति में मतगणना करवाई गई.
इतना ही नहीं 5 जिला पंचायत सदस्यों को अपहरण कर उन्हें अनुपस्थित रहने के लिए मजबूर किया गया. जिला पंचायत सदस्य और शिकायतकर्ता पुष्पा नेगी ने राज्य निर्वाचन आयोग में भी अपनी यह शिकायत लिखित रूप से दर्ज करवा दी है.
“हमारे 5 जिला पंचायत सदस्यों ने मतदान नहीं किया था. बहुमत के लिए 12 सदस्य चाहिए थे. ऐसे में उन्होंने 5 सदस्यों का अपहरण कर लिया. बाद में हाईकोर्ट के संरक्षण में हम मतदान के लिए आए. कोर्ट से विश्वास दिलाया गया था कि उन 5 सदस्यों से भी उसी दिन मतदान कराया जाएगा, लेकिन एसएसपी और डीएम ने उन्हें पेश नहीं किया.”– पुष्पा नेगी, शिकायतकर्ता, जिला पंचायत सदस्य
इसके अलावा शिकायतकर्ता पुष्पा नेगी ने बताया कि राज्य निर्वाचन आयोग के सामने अपना रख दिया है.
“मुझे बिना बताए मतगणना भी कर ली गई है. जबकि, चुनाव नियमावली में स्पष्ट है कि चुनाव के तुरंत बाद मतगणना किया जाता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. 14 अगस्त को मतदान हुआ और 15 अगस्त की सुबह साढ़े 3 बजे मतगणना भी करा ली गई. जिसमें मैं उपस्थित ही नहीं थी. अब पूरे साक्ष्य को आयोग के सामने रख दिया है. साथ ही अपना बयान भी दर्ज करवा दिए हैं.”– पुष्पा नेगी, शिकायतकर्ता, जिला पंचायत सदस्य
इस दौरान नैनीताल जिलाधिकारी वंदना सिंह ने भी आयोग में पक्ष रखा. साथ ही नैनीताल एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा भी आयोग में मौजूद रहे. पुष्पा नेगी की शिकायत पर उन 5 जिला पंचायत सदस्यों ने भी अपने बयान दर्ज कराए, जिन्होंने मतदान से दूरी बनाई थी और चुनाव के दौरान जिन सदस्यों के अपहरण की बात कही गई थी.

नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष दीपा दर्मवाल (फोटो- ETV Bharat)
नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष बनी दीपा दर्मवाल ने भी रखा अपना पक्ष: दूसरी तरफ नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष बनी दीपा दर्मवाल ने भी आयोग में अपना पक्ष रखा. राज्य आयोग ने इस मामले में दोनों ही पक्षों के बयान दर्ज कर लिए हैं और अब आयोग को आगे का निर्णय लेना है. यह मामला पिछले लंबे समय से चर्चाओं में है.खासतौर से इसलिए भी क्योंकि, नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के दौरान पांच जिला पंचायत सदस्यों के अपहरण की बात कही गई थी.
सोशल मीडिया पर भी इससे जुड़े हंगामे की तस्वीर सामने आई थी. विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इस मामले में सरकार की घेराबंदी करते हुए सरकार पर सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था. बड़ी बात यह है कि हाईकोर्ट ने भी नैनीताल की कानून व्यवस्था पर तल्ख टिप्पणी करते हुए नैनीताल के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लेकर भी टिप्पणी की थी.
“कांग्रेस से जिला पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी पुष्पा नेगी ने एक चुनाव आयुक्त के पास एक शिकायत दर्ज करवाई गई थी. जिसमें उन्होंने 5 सदस्यों के तथाकथित अपहरण, वोटिंग न करने की शिकायत की थी. साथ ही पुनर्मतदान कराने की मांग की गई थी. जिस पर चुनाव आयोग ने जिला पंचायत अध्यक्ष और सदस्यों को नोटिस दिया है. अब 5 कथित अपहृत सदस्यों ने अपना पक्ष रखा है.”– पंकज फुलोरा, बचाव पक्ष के वकील
वहीं, कथित अपहृत सदस्यों ने अपना पक्ष रखा है. जिसमें उनका कहना है कि वो कांग्रेस और बीजेपी किसी को वोट नहीं देना चाहते थे. ऐसे में उन्हें वोट डालने के लिए दबाव डाला गया. इस वजह से वो वापस चले गए थे.
“सभी पांचों सदस्यों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है. यह केवल कांग्रेस प्रत्याशी ने हार की वजह से ये सब किया है. पांचों सदस्यों ने अपहरण न होने को लेकर शपथ पत्र भी दिया है. वो निर्दलीय जीतकर आए थे. उन्हें वो कांग्रेस और बीजेपी को वोट नहीं देना चाहते थे. यहां केवल कांग्रेस और बीजेपी में से एक को चुनना था. क्योंकि, नोटा का विकल्प नहीं था. ऐसे में निर्दलीय होने की वजह से वो पापस चले गए. इसी बीच दोनों दलों ने अपने-अपने पक्ष में मतदान कराने के लिए दबाव डाला और धक्का मुक्की की गई.”– पंकज फुलोरा, बचाव पक्ष के वकील
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