भराड़ीसैंण (गैरसैंण): पिछली सदी के छठे दशक में उत्तराखंड का पामिर कहे जाने वाले जिस दूधातोली क्षेत्र को उत्तर प्रदेश राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों की राजधानी बनाए जाने की मांग पेशावर नायक स्वतंत्रता सेनानी वीरचंद्र सिंह गढ़वाली ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से की थी. उसी दूधातोली का वर्तमान ग्रीष्मकालीन राजधानी क्षेत्र गैरसैंण राजनीतिक दलों के गले की फांस बना हुआ है, जिसे स्थायी राजधानी की मांग की जाती रही है.
5410 फीट की ऊंचाई पर बसा विधानसभा परिसर भराड़ीसैंण मध्य हिमालयी क्षेत्र दूधातोली पर्वत श्रृंखलाओं के पूर्वी छोर पर स्थित है. जहां से बद्रीनाथ और नैनीताल को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 109 गुजरता है. प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर दूधातोली क्षेत्र से रामगंगा ओर आटागाड़ (चमोली), बिनोला (अल्मोड़ा) और पूर्वी नयार ओर पश्चिम नयार (पौड़ी) जैसी सदानीरा नदियों की उद्गम स्थली है.
2014 में टेंट ओढ़कर विधानसभा सत्र और विधानसभा भवन का शिलान्यास किया (PHOTO-ETV Bharat)
उत्तराखंड राज्य निर्माण की बात करें तो लंबे चले आंदोलनों और शहादतों के बाद वर्ष 2000 में केंद्र में भाजपा की अटल बिहारी सरकार ने उत्तराखंड राज्य का निर्माण तो किया, लेकिन स्थायी राजधानी की घोषणा न करके मामला आयोग के हवाले कर दिया. तमाम राजनीतिक उठापटकों के दौर से गुजरने के बाद विजय बहुगुणा सरकार ने 2012 में कैबिनेट का आयोजन कर गैरसैंण को फिर से सुर्खियों में ला दिया. जिसके बाद 2014 में टेंट ओढ़कर विधानसभा सत्र और विधानसभा भवन का शिलान्यास किया. 2015 में भराड़ीसैंण स्थित पशुपालन विभाग की 47 एकड़ जमीन पर विधानसभा निर्माण की नींव रखी गई.

पशुपालन विभाग की 47 एकड़ जमीन पर विधानसभा का निर्माण हुआ. (PHOTO-ETV Bharat)
इसके बाद से ही गैरसैंण दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों में शामिल भाजपा और कांग्रेस के लिए गले की फांस बना हुआ है. गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के दावे तो हुए, लेकिन फैसला करने में सरकारें नाकाम साबित हुईं. जिसके बाद 4 मार्च 2020 को त्रिवेंद्र सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा करते हुए 25 हजार करोड़ रुपए का प्रस्तावित बजट रखते हुए स्थायी राजधानी की ओर बढ़ते कदम बताया. लेकिन इसमें भी 5 साल गुजरने के बाद भी न तो प्रस्तावित बजट पर कोई बात हुई और ना ही विधानसभा परिक्षेत्र के विकास का कोई खाका खींचा गया.

11 सालों में भाजपा सरकार में 6 विधानसभा सत्रों का आयोजन हुआ . (PHOTO-ETV Bharat)
राजनीतिक दलों के गले की फांस बने गैरसैंण में पिछले 11 सालों में कुल 9 विधानसत्रों के आयोजनों की संख्या 33 दिन ही रही है. जिससे अब तक हर साल औसतन तीन दिन ही सरकार ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में ठहरी है. 2014 से हर साल दो-चार दिन के सत्र का आयोजन किया जाता रहा है. लेकिन 2022 में धामी सरकार ने गैरसैंण से किनारा कर किसी भी सत्र का आयोजन नहीं किया. जिसके बाद जनता की नाराजगी और विपक्ष के दबाव के कारण 4 दिवसीय सत्र का आयोजन 2023 में किया गया. लेकिन 2024 में एक बार फिर ठंड का बहाना बनाकर बजट सत्र के आयोजन को टालकर गैरसैंण से दूरी बनाए रखी. जिसके बाद जनदबाव को देख पिछले साल भी 21 से 23 अगस्त तक मॉनसून सत्र का आयोजन किया गया.

11 सालों में कांग्रेस सरकार में 3 विधानसभा सत्र हुए (PHOTO-ETV Bharat)
गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर संविधान के जानकार और गैरसैंण बार संघ अध्यक्ष केएस बिष्ट कहते हैं कि, ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद हर वर्ष 6 माह सरकार को गैरसैंण बैठना चाहिए. लेकिन 2, 4 दिन का सत्र आयोजित कर खानापूर्ति की जा रही है. स्थायी राजधानी संघर्ष समिति के अध्यक्ष नारायण सिंह बिष्ट कहते हैं कि, विकास योजनाओं के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है. ऐसे में दो-दो राजधानियों का खर्च उठाने की बजाय गैरसैंण को तत्काल स्थायी राजधानी घोषित कर पहाड़ों के विकास की नींव रखनी चाहिए.

11 सालों में हुए 33 दिन के 9 विधानसभा सत्र हुए गैरसैंण में (PHOTO-ETV Bharat)
हर साल औसतन 3 दिन ही गैरसैंण में बैठी सरकार: इन 11 सालों में कांग्रेस सरकार में 3 तो भाजपा सरकार में 6 विधानसभा सत्रों का आयोजन हुआ है. जिनमें सर्वाधिक भाजपा के त्रिवेंद्र रावत सरकार में 19 दिन के बजट सत्र के बाद हरीश रावत सरकार में 4 दिन, बहुगुणा सरकार में 3 दिन और धामी सरकार में दो बार 7 दिन का सत्र ही आयोजित किया गया है.
अब तक के विधानसभा सत्रों की तिथि: 9 जून 2014 से 3 दिन, 2 नवंबर 2015 से 2 दिन, 17 नवंबर 2016 से 2 दिन, 7 दिसंबर 2017 से 2 दिन, 20 मार्च 2018 से 6 दिन, 3 मार्च 2020 से 5 दिन, 1 मार्च 2021 से 6 दिन, 13 मार्च 2023 से 4 दिन और 21 अगस्त 2024 से 3 दिन.
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