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Explainer: इतना आसान नहीं हैं मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाना, क्या है इसकी प्रक्रिया? जानें सबकुछ


नई दिल्ली: ‘वोट चोरी’ के आरोपों के बीच विपक्षी दल संसद में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला सकते हैं. सूत्रों ने यह जानकारी दी. बता दें कि भारत का मुख्य चुनाव आयुक्त देश के निर्वाचन आयोग का प्रमुख होता है. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना इसकी जिम्मेदारी होती है.

हालांकि, कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर वोट चोरी के आरोप लगा रहें हैं और अब वह उनके खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी कर रहे है. हालांकि, मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाना काफी जटिल और कठिन प्रक्रिया है. इसके लिए संसद की मंजूरी और विशेष बहुमत की जरूरत होती है.

संवैधानिक बॉडी होती है चुनाव आयोग
भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य और विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. आजादी के बाद से भारत में नियमित अंतराल पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते रहे हैं. भारत के संविधान ने भारत के चुनाव आयोग को संसद, प्रत्येक राज्य के विधानमंडल और भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिए चुनाव कराने की संपूर्ण प्रक्रिया का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण प्रदान किया है.

कब हुई थी चुनाव आयोग की स्थापना?
भारत का चुनाव आयोग भी एक स्थायी संवैधानिक निकाय है. इलेक्शन कमीशन की वेबसाइट के मुताबिक चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी. मूल रूप से आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता था. वर्तमान में इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त हैं.

पहली बार 16 अक्टूबर 1989 को दो अतिरिक्त आयुक्त नियुक्त किए गए, लेकिन उनका कार्यकाल 1 जनवरी 1990 तक बहुत कम रहा. बाद में, 1 अक्टूबर 1993 को दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए. तब से बहु-सदस्यीय आयोग की अवधारणा लागू है, जिसमें बहुमत से निर्णय लेने की शक्ति होती है.

सुप्रीम कोर्ट के जजों के समान दर्जा
राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करते हैं. उनका कार्यकाल छह साल या 65 साल की आयु तक, जो भी पहले हो तक होता है. उन्हें भारत के सुप्रीम कोर्ट के जजों के समान दर्जा, सैलरी और भत्ते मिलते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 324(5) में प्रावधान. CEC को सु्प्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह ही पद से हटाया जा सकता है.

चीफ इलेक्शन कमीश्नर को हटाने की प्रक्रिया को आमतौर पर महाभियोग कहा जाता है. इसके लिए संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में विशेष बहुमत के साथ प्रस्ताव पारित करना होता है.

चीफ इलेक्शन कमीश्नर को पद से हटाने की प्रक्रिया
अधिनियम के तहत महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है. महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए लोकसभा के कम से कम 100 सदस्य स्पीकर को हस्ताक्षरित नोटिस दे सकते हैं या राज्यसभा के कम से कम 50 सदस्य सभापति को हस्ताक्षरित नोटिस दे सकते हैं.

इसके बाद अध्यक्ष या सभापति उनसे परामर्श कर सकते हैं और नोटिस से संबंधित रेलीवेंट मटेरियल की जांच कर सकते हैं. इसके बाद वह नोटिस के आधार पर प्रस्ताव को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का निर्णय ले सकते हैं.

तीन-सदस्यीय समिति का गठन
अगर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सभापति (जो इसे प्राप्त करते हैं) शिकायत की जांच के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति गठित करेंगे. इसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, हाई कोर्ट का मुख्य जज और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल हो सकते हैं. यह समिति आरोप तय करेगी जिसके आधार पर जांच की जाएगी.

जांच पूरी करने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष या सभापति को सौंपेगी, जो उसे संसद के संबंधित सदन के समक्ष रखेंगे. अगर रिपोर्ट में CEC दोषी पाया जाता है, तो निष्कासन प्रस्ताव पर विचार और बहस की जाएगी.

बता दें कि निष्कासन प्रस्ताव को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से और उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है.

अगर प्रस्ताव इस बहुमत से स्वीकृत हो जाता है, तो प्रस्ताव को स्वीकृत करने के लिए दूसरे सदन में भेजा जाएगा. प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित हो जाने के बाद, इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जो मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का आदेश जारी करेंगे.

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