चुनावी साल में आंदोलन से घिरी धामी सरकार (ETV Bharat)
किरणकांत शर्मा की रिपोर्ट…
देहरादून: उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को चार साल पूरे हो चुके हैं. इन चार वर्षों में अगर देखा जाए तो सब कुछ शांति से चलता रहा. शांत राजनीतिक और सामाजिक माहौल देखा गया. छोटे-मोटे विवाद को छोड़ दें तो ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिससे ये कहा जाए कि राज्य में सरकार का विरोध हो रहा है. ये भी कह सकते है कि सड़कों पर बड़े-छोटे आंदोलनों की संख्या बेहद कम थी, लेकिन जैसे-जैसे 2027 के विधानसभा चुनावों का समय नजदीक आता जा रहा हैं, वैसे-वैसे प्रदेश में मानों आंदोलनों की बाढ़ आ गई है.
बीते 50 दिनों में उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में एक दर्जन के करीब छोटे-बड़े आंदोलन खड़े हो गए है. ये आंदोलन स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क, प्रशासनिक व्यवस्थाओं और शराब की दुकानों से लेकर वकील, उपनल कर्मियों तक पहुंच गए है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि इन आंदोलनों से न केवल सरकार के माथे पर कई बार बल आया है, बल्कि विपक्षी दल को सरकार को भी घेरने का एक और मौका मिला है.
बीते दिनों कुछ ऐसे आंदोलन हुए, जिन्होंने बड़ी सुर्खियां बटोरी और सरकार को दबाव में कुछ बड़े फैसले लेने भी पड़े. इसमें अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया से शुरू हुआ स्वास्थ्य सेवाओं के खिलाफ आंदोलन हो या राजधानी देहरादून में उपनल कर्मचारियों का लंबा चल रहा विरोध प्रदर्शन. उत्तराखंड के हर कोने में इन आंदोलन की गूंज सुनाई देने लगी है.

चौखुटिया से देहरादून के लिए पैदल यात्रा पर निकले थे स्थानीय लोग. (ETV Bharat)
सबसे ज्यादा सुर्खियों में बेरोजगार युवाओं का आंदोलन रहा है. बेरोजगार युवाओं का ये आंदोलन सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया था. इसके अलावा कोटद्वार में चिल्लरखाल सड़क निर्माण के लिए धरना हो या वकीलों के द्वारा राजधानी में प्रदर्शन. एक के बाद एक सड़कों पर उमड़ती आंदोलनकारियों की भीड़ कई सवाल खड़े कर रही है.
आंदोलन को लेकर बड़े सवाल: सवाल ये भी की आखिरकार अचानक ये विरोध क्यों? सवाल ये भी की क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक लाभ लेने की मनसा तो नहीं है?

बेरोजगारों के विरोध प्रदर्शन में पहुंचे थे सीएम पुष्कर सिंह धामी. (ETV Bharat)
चौखुटिया में स्वास्थ्य सेवाओं के खिलाफ बड़ा आंदोलन: बात सबसे पहले अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया आंदोलन की. यहां बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लंबे समय से असंतोष पनप रहा था, जो बड़े आंदोलन के रूप में बदल गया. ग्रामीणों का आरोप था कि अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है. एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंचती है. गंभीर मरीजों को कई किलोमीटर दूर अन्य क्षेत्रों में रेफर किया जाता है.
स्थानीय लोगों ने स्वास्थ्य विभाग और सरकार को कई बार इस मुद्दे पर अवगत कराया, लेकिन ठोस कदम न उठाए जाने के कारण लोगों ने सड़कों से लेकर क्षेत्रीय कार्यालयों में विरोध प्रदर्शन शुरू किया. बुजुर्गों और महिलाओं तक ने आंदोलन में खुलकर हिस्सा लिया. आखिर में सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए चौखुटिया से देहरादून आंदोलनकारी पैदल आए, जहां उन्होंने सीएम धामी से मुलाकात की और उनके सामने ही अपनी मांगों को रखा. सरकार पर इस आंदोलन का दबाव भी पड़ा. सीएम धामी ने आंदोलनकारियों मांग के अनुरूप अस्पताल के उच्चीकरण करने के निर्देश भी दिए.

देहरादून में धरने पर बैठे वकील. (ETV Bharat)
बेरोजगार युवाओं का प्रदेशभर में चला आंदोलन: हाल फिलहाल में उत्तराखंड में सबसे बड़ा और प्रभावशाली आंदोलन बेरोजगार युवाओं का देखा गया. पेपर लीक मामले को लेकर बेरोजगार युवा आचनक से सड़कों पर उतरे और सरकार व यूकेएसएसएससी पर गंभीर आरोप लगाए. बेरोजगार युवाओं ने उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग की कार्यशैली तक पर सवाल खड़े गिए.
राजधानी देहरादून, ऋषिकेश, हल्द्वानी, हरिद्वार समेत प्रदेश हर छोटे-बड़़े शहर में बड़ी संख्या में युवा सड़कों पर उतरे और सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया. इस आंदोलन का असर ये हुआ कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद धरना स्थल पर पहुंचे और युवाओं की मांग को मानते हुए पेपर लीक मामले की जांच सीबीआई को दी. जैसे-तैसे सरकार ने प्रदेश भर के युवाओं को शांत किया.

उपनककर्मियों को समर्थन देने पहुंचे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल. (ETV Bharat)
उपनल कर्मचारियों का धरना: ये तमाम मसले शांत ही हुए थे कि नियमितिकरण की मांग को लेकर उपनल कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल कर दिया. कुछ दिनों पहले ही राज्य का ये तीसरा बड़ा आंदोलन भी राजधानी देहरादून में अचानक शुरू हो गया. सब कुछ ठीक ठाक चलने के बाद अचानक कर्मचारी सड़कों पर आकर आंदोलन करने लगे.
राजधानी देहरादून में उपनल (UPNL) कर्मचारियों का आंदोलन पिछले कई दिनों से जारी है और लगातार तेज होता जा रहा है. कर्मचारी समान कार्य के लिए समान वेतन, स्थायीकरण और मनमाने ट्रांसफरों को रोकने की मांग कर रहे हैं.

अल्मोड़ा के चौखुटिया में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे थे. (ETV Bharat)
प्रदेश में हजारों उपनल कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन उन्हें नियमित कर्मचारियों की तरह सुविधाएं नहीं मिलतीं. भत्तों से लेकर वेतनमान तक कई मामलों में वे खुद को भेदभाव का शिकार बताते है. हलाकि सरकार ने इनकी भी मांग को समझने और बातचीत करने के प्रयास किए, लेकिन जब कुछ बात नहीं बनी तो सरकार को 19 नवंबर की शाम राज्य में नो वर्क नो वेतन के साथ एस्मा लागू करना पड़ा. इसके बाद भी उपनल कर्मी काम पर लौटने को तैयार नहीं.
कोटद्वार में सड़क निर्माण को लेकर जनता का आंदोलन: कोटद्वार में भी इसी तरह 50 दिनों के भीतर अचानक से एक आंदोलन और खड़ा हुआ. ये आंदोलन कोटद्वार की चिल्लारखाल मार्ग को लेकर हो रहा है. चिल्लरखाल मार्ग को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार कई बार जनता के विरोध का सामना कर चुकी हैं. राज्य बनने के बाद से ही लोग इस मार्ग को खोलने की मांग करते रहे हैं. इस मांग को अभी तक कोई भी सरकार पूरा नहीं कर पाई है. वैसे मुख्यमंत्री साफ कर चुके है कि कोटद्वार का आंदोलन हो या फिर कहीं और का, वो सभी को साथ बैठाकर खुद बात करेंगे.
देहरादून के वकीलों का बड़ा और प्रभावशाली आंदोलन: उधर राजधानी में एक और आंदोलन या कहें एक मुद्दे को लेकर लोग इकट्ठा है. पिछले 11 दिन से वकीलों का धरना जारी है. देहरादून में चैंबर निर्माण की मांग को लेकर बुधवार को धरने के 10वें दिन वकीलों ने ओपन हाउस में सर्वसम्मति से संघर्ष समिति का गठन कर लिया है. वकील हरिद्वार रोड पर धरने पर बैठे हैं.
बार एसोसिएशन की चयनित संघर्ष समिति द्वारा जिला प्रशासन को अपनी मांगों को लेकर एजेंडा पत्र भी प्रेषित किया गया है. जिला प्रशासन की तरफ से कुछ बिंदुओं पर कार्रवाई का भरोसा भी दिया गया है.18 नवम्बर को ही कुछ लोगों ने सीएम धामी से इस मामले को लेकर बातचीत की. अब उसमें क्या निर्णय हुआ है. ये साफ़ नहीं है, लेकिन उम्मीद यहीं है कि जल्द सरकार इस पर भी कोई फैसला ले सकती है.
ऋषिकेश-हरिद्वार में शराब की दुकान के विरोध में धरना: ऋषिकेश और हरिद्वार में भी आंदोलन अचानक उठे है, वो बात अलग है कf ये आंदोलन शराब की उन दुकानों को लेकर उठ रहे है, जो सालो से वहां पर चल रही है. स्थानीय लोगों ने एक शराब की दुकान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन छेड़ हुआ है.
लोगों का कहना है कि शराब की दुकान आवासीय क्षेत्र के नजदीक खोली गई है, जिससे सामाजिक माहौल बिगड़ने का खतरा है. कई दिनों से लोग धरने पर बैठे हुए हैं और सरकार से दुकान को तुरंत हटाने की मांग कर रहे हैं. हरिद्वार में भी जनता स्कूल के पास खुली शराब की दुकान को बंद करवाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रही है.
उत्तराखंड में आंदोलन का चलन: उत्तराखंड में अचानक हाल फिलहाल में हुए आंदोलन को जानकर किस तरह से देखते है, इसको लेकर ईटीवी भारत ने राजनीतिक विश्लेषक सुनील दत्त पांडे से बात की और उनकी राय जानने का प्रयास किया. सुनील दत्त पांडे की मानें तो उत्तराखंड गठन के बाद से लेकर आज तक उन्होंने आंदोलन का यहीं पैटर्न देखा है.
सुनील दत्त पांडे बताते है कि नारायण दत्त तिवारी सरकार में भी चुनाव नजदीक आते ही अचानक से आंदोलन की सुनामी आ गई थी. उसके बाद हरीश रावत हो त्रिवेंद्र सिंह रावत या अन्य नेता अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल में भी यह देखने के लिए मिल रहा है. यह सरकार पर दबाव बनाने की एक कोशिश होती है और कुछ नहीं. नहीं तो आप खुद सोचिए कि अचानक से इतना विरोध इतने लोग सड़कों पर क्यों आएंगे अचानक से?
यह सब क्यों हो रहा है, अब सरकार और प्रशासन भी इस बात को बखूबी जानता है. शासन में अनुभवी अधिकारी बैठे हैं और वह इस बात के लिए तैयार भी रहते हैं. चुनाव में क्योंकि अब मात्र एक साल का वक्त रह गया है, अगले साल दिसंबर में आचार संहिता लग जाएगी, जिसमें बहुत ज्यादा समय नहीं हैं. इसलिए लोगों को लगता है कि इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता.
-सुनील दत्त पांडे, राजनीतिक जानकार-
बीजेपी का नजरिया: इन आंदोलनों को लेकर बीजेपी के विधायक और प्रवक्ता विनोद चमोली मानते हैं कि जहां पर कुछ समस्या होती है तो आवाज उठाती है, लेकिन चुनाव नजदीक आते ही समस्या से जूझ रहे लोग यह समझते हैं कि सरकार चुनाव में जाने से पहले उनकी मांगे मान लेगी और ऐसा अनुमान होता भी है.
उत्तराखंड के कुछ आंदोलन में हमने यह भी देखा है कि कई बार लोग आंदोलन का सहारा लेकर राजनीति भी करने लगे. बीते दिनों हुए बेरोजगार आंदोलन की आड़ में कुछ लोग अपने स्वार्थ को साध रहे थे, जबकि सरकार के खिलाफ अभ्यर्थियों का आंदोलन पेपर लीक को लेकर था, लेकिन उसको बेरोजगार और अन्य मुद्दों से जोड़ दिया गया. सरकार ने पहले ही उसमें एक्शन लेते हुए सभी जांच कमेटी और कार्रवाई भी कर दी थी. फिर इतना हंगामा हुआ. हंगामा के पीछे कौन लोग थे यह सभी ने देखा.
-विनोद चमोली, बीजेपी विधायक-
दूसरी बात यह भी है कि सरकार चुनाव के समय किसी को नाराज नहीं करना चाहती है. यह होना भी चाहिए. अगर कोई समस्या है तो उसे चुनाव से पहले दूर कर देना चाहिए. वह चुनाव के लिए भी बेहतर रहता है. क्योंकि कांग्रेस या फिर कोई अन्य विपक्ष दल कहीं भी इसका फायदा उठाता है. इसीलिए आंदोलन भी हर बार चुनाव से पहले देखने के लिए मिलते हैं.
बीजेपी से जनता की उम्मीदें बहुत है. इसीलिए शायद हाल फिलहाल में कुछ आंदोलन अचानक से उठे हैं. उन्हें पता है कि इस काम को सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है.
-विनोद चमोली, बीजेपी विधायक-
कांग्रेस क्या कहती है: उधर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल इन आंदोलन को लेकर कहते हैं कि यह जनता का विरोध है. यह विरोध साल 2027 में चुनाव के दौरान भाजपा के खिलाफ दिखाई देगा.
जिस तरह से आंदोलन को दबाने के लिए सरकार ने उपनल कर्मचारी के खिलाफ आदेश जारी किया है, वो सही नहीं है. सरकार के पास मौका है कि वह अपनी गलती को सुधार ले और उनकी मांगों को मानते हुए एक अच्छा फैसला ले, ताकि सरकार को अच्छे कामों के लिए याद किया जाए न की आंदोलन को कुचलने के लिए. कांग्रेस हर आंदोलनकारी के साथ हैं और हम जनता की आवाज बनकर हमेशा लोगों के साथ खड़े रहेंगे.
-गणेश गोदियाल, प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस, उत्तराखंड-
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