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बेंगलुरु भगदड़ मामला: सिद्धारमैया सरकार ने 5 पुलिस अधिकारियों का निलंबन वापस लिया


बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु में चार जून को चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर मची भगदड़ की घटना के सिलसिले में निलंबित किए गए पांच पुलिस अधिकारियों का निलंबन सोमवार को वापस ले लिया.

जिन अधिकारियों का निलंबन वापस लिया गया है, उनमें शहर के तत्कालीन पुलिस आयुक्त बी दयानंद भी शामिल हैं. 5 जून को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के आदेश पर निलंबित रखा गया था.

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में रॉयल चैलंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) को मिली जीत का जश्न मनाने के लिए चार जून को आयोजित कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मचने से 11 लोगों की जान चली गई थी. इस हादसे में 70 से अधिक लोग घायल हुए थे.

आदेश के मुताबिक, जिन अधिकारियों का निलंबन वापस ले लिया गया है, उनमें भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के वरिष्ठ अधिकारी बी दयानंद (अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक) और शेखर एच टेक्कन्नावर ( पुलिस अधीक्षक) तथा कर्नाटक राज्य पुलिस सेवा के सी बालकृष्ण (पुलिस उपाधीक्षक) और एके गिरीश (पुलिस निरीक्षक) शामिल हैं.

सरकारी आदेश में कहा गया है कि, हालांकि, न्यायिक आयोग और मजिस्ट्रेट समिति दोनों ने भगदड़ की जांच पूरी कर ली है और अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और पाँचों अधिकारियों ने भी अनुरोध पत्र प्रस्तुत किया है, इसलिए सरकार ने उनका निलंबन रद्द करने का निर्णय लिया है.” हालांकि, ये पुलिस अधिकारी कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार विभागीय जांच का सामना करते रहेंगे.

रिटायर जस्टिस जॉन माइकल कुन्हा की अध्यक्षता वाले एक सदस्यीय न्यायिक आयोग ने 11 जुलाई को सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में इन पुलिस अधिकारियों को आयोजकों द्वारा संबंधित अधिकारियों से पूर्व अनुमति नहीं लेने के बावजूद समारोह की अनुमति देने के लिए दोषी ठहराया.

सरकारी आदेश के मुताबिक, न्यायिक आयोग और मजिस्ट्रेट समिति दोनों ने भगदड़ की घटना की जांच पूरी कर ली है और सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. साथ ही, संबंधित अधिकारियों ने भी निलंबन रद्द करने का अनुरोध करते हुए अभ्यावेदन प्रस्तुत किया है.

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की बेंगलुरु पीठ ने एक जुलाई को विकास के निलंबन को रद्द कर दिया था, जिसे चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने हाई कोर्ट का रुख किया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि आयोजकों द्वारा व्यवस्था शुरू करने से पहले ही, बेंगलुरु पुलिस आयुक्त के आदेश पर पुलिस अधिकारी स्वयं आयोजकों के साथ मिलीभगत और सांठगांठ में बंदोबस्त पर काम करते पाए गए।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पुलिस द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा अपर्याप्त और अप्रभावी थी. “बंदोबस्त के लिए तैनात 515 जवानों और अधिकारियों में से, भीड़ को प्रबंधित करने और नियंत्रित करने के लिए केवल 79 जवान और अधिकारी ही द्वार के बाहर तैनात थे. भगदड़ के दौरान ये जवान भी कार्यक्रम स्थल पर दिखाई नहीं दिए.

नियंत्रण कक्ष में कार्यरत कर्मचारी भी प्रवेश द्वारों और उसके आसपास तैनात सुरक्षा कर्मचारियों को सूचित करने में विफल रहे, जिससे घटना और भी गंभीर हो गई. भीड़भाड़ और बढ़ते खतरे के संकेतों के बावजूद, निकास द्वार समय पर नहीं खोले गए.जस्टिस कुन्हा की रिपोर्ट में कहा गया है, “यह सुरक्षा अधिकारियों की ओर से लापरवाही और आपातकालीन प्रोटोकॉल के अभाव का एक गंभीर मामला था.”

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