न्यूयॉर्क: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भारत पर ‘तर्कहीन’ टैरिफ लगाने के लिए घरेलू स्तर पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. वहीं कुछ विशेषज्ञों ने उन्हें इसे जीरो करने और ‘माफी मांगने’ की सलाह दी है.
एएनआई के साथ एक विशेष इंटरव्यू में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर एडवर्ड प्राइस ने उल्लेख किया कि 21वीं सदी को आकार देने में भारत की भूमिका ‘निर्णायक’ है. उन्होंने भारत के साथ वाशिंगटन के संबंधों को ‘महत्वपूर्ण’ बताया. साथ ही डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय पर अधिक आश्चर्य व्यक्त किया.
एडवर्ड प्राइस ने कहा,’मैं भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी को 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारी मानता हूं. यह साझेदारी चीन और रूस के बीच को काफी हद तक प्रभावित करेगी. वहीं आज के समय में भारत के पास निर्णायक वोट है. भारत 21वीं सदी में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है और वह और भी अधिक शक्तिशाली बनने की ओर अग्रसर है.’
उन्होंने कहा,’मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि चीन के साथ टकराव और रूस के साथ युद्ध के बीच, अगर आप सोचें तो अमेरिका के राष्ट्रपति भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ क्यों लगा रहे हैं. हमें भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ हटाकर इसे कहीं अधिक वाजिब स्तर पर लाना होगा. मैं शून्य प्रतिशत टैरिफ लगाने का सुझाव देता हूं.’
एडवर्ड प्राइस ने इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा की और उन्हें ‘प्रेटी स्मार्ट’ बताया क्योंकि उन्होंने अमेरिका को याद दिलाया कि भारत के पास अन्य विकल्प भी हैं, लेकिन वह रूस-चीन गठबंधन को पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर सकते और बीजिंग की सैन्य परेड में शामिल नहीं हो सकते.
प्राइस ने यह भी तर्क दिया कि अपनी स्वतंत्र संप्रभुता के कारण भारत कभी भी चीनी प्रभाव में नहीं आएगा और स्वयं अपने फैसले लेगा. किसी एक दिशा में कदम नहीं बढ़ाएगा.रूसी राष्ट्रपति पुतिन को लेकर कहा कि वह पुराने सोवियत साम्राज्य का पुनर्निर्माण करने की कोशिश कर रहे हैं.
अगर आप पूछ रहे हैं कि क्या मोदी के नेतृत्व में भारत स्वेच्छा से उस प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा बन रहा है, जो असल में चीन का प्रभाव क्षेत्र है तो नहीं. जरा पीछे मुड़कर देखें और याद करें कि भारत एक स्वतंत्र विचारों वाला संप्रभु देश है जिसकी अपनी सभ्यता है.
उन्होंने कहा, ‘भारत अपने निर्णय स्वयं लेता है. ऐसा कोई तरीका नहीं है कि भारत स्थायी रूप से एक रेखा की एक ओर या दूसरी ओर अपना पैर रखे और विशेषकर तब नहीं जब वह रूस के साथ जो हुआ उसे देखता है, जो मूलतः चीन द्वारा आर्थिक विजय का एक रूप है.’
पूर्व अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन के इस आरोप के बारे में कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प पाकिस्तान में अपने परिवार के व्यापारिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए भारत के साथ वाशिंगटन के संबंधों का त्याग कर रहे हैं. एडवर्ड प्राइस ने कहा कि ट्रंप के वित्तीय हित हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि इस पर निश्चित रूप से टिप्पणी करना असंभव है.
उन्होंने कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के सक्रिय वित्तीय हित हैं और यह उस परम्परागत स्थिति से अलग है. जिसके अनुसार राष्ट्रपतियों के वित्तीय हित नहीं होते हैं और मुझे यह कहते हुए डर लग रहा है कि हम कभी नहीं जान पाएंगे, यह पता लगाना लगभग असंभव है कि वास्तव में वे हित क्या हैं.’
यह आकलन, विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच व्यापक रणनीतिक सहयोग पर वर्तमान अमेरिका-भारत व्यापार तनाव के संभावित दीर्घकालिक परिणामों के बारे में विदेश नीति विशेषज्ञों के बीच बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है.