किरनकांत शर्मा, देहरादून: अपनी कार्यशैली को लेकर हमेशा से सुर्खियों में रहने वाले आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की एक जांच से उत्तराखंड वन महकमे में फिर से हड़कंप मचा हुआ है. इस बार उन्होंने पहाड़ों की रानी मसूरी में बड़े पैमाने पर मुनारे यानी बाउंड्री पिलर गायब होने के मामले की जांच की. जिसकी रिपोर्ट केंद्र को भी भेजी. जिस पर अब केंद्र का जवाब आया है.
पूरे मामले में केंद्र सरकार ने उत्तराखंड शासन को पत्र लिख कर कहा है कि मामला बेहद गंभीर है. लिहाजा, दोषियों पर कार्रवाई की जाए. इसके साथ ही ये सवाल भी उठ रहे हैं कि जब जांच में सभी बातें साफ हो गई है तो दोबारे से जांच अन्य अधिकारी से क्यों करवाई जा रही है?
IFS संजीव चतुर्वेदी की जांच में बड़ा खुलासा: उत्तराखंड के मसूरी वन प्रभाग से 7,375 बाउंड्री पिलरों के गायब होने का बड़ा मामला सामने आया है. यह खुलासा किसी सामान्य जांच का परिणाम नहीं. बल्कि, देश के चर्चित भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की विस्तृत जांच रिपोर्ट में सामने आया है.
मसूरी वन प्रभाग (फाइल फोटो- ETV Bharat)
संजीव चतुर्वेदी जो अपनी कार्यशैली और जांचों के लिए देश में कई बार चर्चा में आ चुके हैं. उन्होंने मसूरी वन प्रभाग में बाउंड्री पिलरों को लेकर 300 से ज्यादा पन्नों की जांच रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार को सौंपी थी.
इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि डिमार्केशन यानी बाउंड्री पिलरों की भारी संख्या में गायब होना, न केवल भ्रष्टाचार और लापरवाही का उदाहरण है. बल्कि, यह उत्तराखंड के पर्यावरण और जंगलों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है.
केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से तलब की रिपोर्ट: इस रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार हरकत में आई है. मामले में भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सहायक महानिदेशक नीलिमा शाह ने उत्तराखंड शासन को पत्र लिखकर इस पूरे मामले पर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है.
मंत्रालय ने ये भी स्पष्ट किया है कि इतने बड़े पैमाने पर पिलरों का गायब होना, कोई सामान्य घटना नहीं है. यह वन क्षेत्र की सीमाओं और सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है. साथ ही पत्र में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी कहा गया है.
मसूरी का महत्व और पर्यावरण पर खतरा: पहाड़ों की रानी कही जाने वाली मसूरी उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश के पर्यटन मानचित्र पर एक विशेष स्थान रखती है. यहां के जंगल न केवल प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाते हैं. बल्कि, जैव विविधता और जलवायु संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
ऐसे में पिलरों का गायब होना, इस क्षेत्र की सीमाओं और संरक्षण कार्यों को कमजोर कर सकता है. जिससे अतिक्रमण एवं अवैध गतिविधियों का खतरा और बढ़ सकता है. हैरानी तो जांच और पत्र में इस बात पर भी जाहिर की गई है कि इतने बड़े अंतर होने के बाद भी ये कैसे संभव हो गया?
कहां से कितने पिलर हुए गायब?
- कैंपटी क्षेत्र से 218 पिलर गायब.
- जौनपुर क्षेत्र से 944 पिलर गायब.
- देवलसारी क्षेत्र से 296 पिलर गायब.
- भद्रीगाड क्षेत्र से 62 पिलर गायब.
- मसूरी क्षेत्र से 4,133 पिलर गायब.
- रायपुर क्षेत्र से 1,722 पिलर गायब.
- कुल 7,375 पिलर मसूरी वन प्रभाग से गायब हुए हैं.
रिपोर्ट में इस बात पर भी हैरानी जताई गई है कि कुल 12,321 बाउंड्री पिलर में से आधे से ज्यादा पिलर गायब हो गए. जिसकी भनक किसी को नहीं लगी. जांच में बताया गया है कि ये पिलर यूं ही गायब नहीं हुए. बल्कि, उसके पीछे जमीनों के अतिक्रमण एक बड़ी वजह है. ऐसे में इस मामले में कार्रवाई बेहद जरूरी है.
यह कोई पहला मामला नहीं है, जब उत्तराखंड में वन विभाग से जुड़े इस तरह के मामले सामने आए हों. इससे पहले कॉर्बेट पार्क का मामला हो या उत्तराखंड में अलग-अलग वन प्रभाग में अनियमितताओं के कई मामले बाहर आ चुके हैं.
क्या होता है मुनारे या बाउंड्री पिलर मुनारे एक तरह का पिलर होता है. जो सीमेंट, पत्थर, रेता, बजरी या अन्य सामानों से बनाया जाता है. जो चौकोर आकार या पिलर नुमा होता है. जिस पर सफेद चूना लगाया जाता है. जो दूर से ही नजर आ जाता है. इससे वन विभाग की सीमा का निर्धारण होता है. यानी जहां पर इसे लगाया जाता है, वहां से वन विभाग की संपत्ति शुरू हो जाती है. जिसके बाद किसी प्रकार का निर्माण या फिर गतिविधि नहीं किया जा सकता है, लेकिन कई लोग अतिक्रमण या खेतों को बढ़ाने के लिए इसे उखाड़ कर फेंक देते हैं. |
कौन हैं संजीव चतुर्वेदी? संजीव चतुर्वेदी साल 2002 बैच के भारतीय वन सेवा अधिकारी हैं. वे एम्स (AIIMS) दिल्ली में मुख्य सतर्कता अधिकारी (CVO) रह चुके हैं. जहां उन्होंने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को उजागर किया था. हरियाणा कैडर में रहते हुए उन्होंने चिकित्सा और वन विभाग में कई घोटालों की परत खोली.
भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर करने के चलते संजीव चतुर्वेदी को कई बार उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा है. उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ साहसिक कार्यों के लिए ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार‘ से भी सम्मानित किया जा चुका है.
उनकी पहचान एक ऐसे अफसर के तौर पर होती है, जो ठोस सबूतों एवं विस्तृत रिपोर्ट के जरिए भ्रष्टाचार और लापरवाही पर प्रहार करते हैं. मसूरी बाउंड्री पिलर गायब करने के मामले में भी उन्होंने एक 300 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है.
उत्तराखंड की छवि पर असर: वन विभाग के इस बड़े मामले ने उत्तराखंड की छवि पर भी प्रश्न खड़े कर दिए हैं. मसूरी जैसे संवेदनशील और पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र में यदि इस तरह से वन संपदा की सुरक्षा में कोताही हुई तो यह राज्य की पर्यावरणीय पहचान को धूमिल कर सकता है. लिहाजा, अब देखना होगा कि इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होती है.
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