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पदयात्रा में शामिल हुए सीएम धामी, चंपावत को दी करोड़ों की सौगात, कल जौलजीबी मेले का करेंगे शुभारंभ


पदयात्रा में शामिल हुए सीएम धामी (फोटो सोर्स- Information Department)

चंपावत/बेरीनाग: सीएम धामी ने टनकपुर डिग्री कॉलेज से गांधी मैदान तक आयोजित एकता पदयात्रा में प्रतिभाग किया. यह पदयात्रा लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के अवसर पर आयोजित की गई. पदयात्रा में शामिल होने के बाद सीएम धामी ने टनकपुर के गांधी मैदान में पहुंच कर सहकारिता मेला 2025 का शुभारंभ किया. वहीं, सीएम धामी ने चंपावत जिले की ₹88.11 करोड़ की विकास योजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास कर जिले को विकास की सौगात दी.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी गुरुवार को टनकपुर के एक दिवसीय दौरे पर पहुंचे. जहां उन्होंने ‘अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025’ के उपलक्ष्य में सहकारिता विभाग उत्तराखंड की ओर से आयोजित ‘सहकारिता मेला’ का विधिवत शुभारंभ किया. इस दौरान सीएम धामी ने सहकारिता मेलों के माध्यम से प्रदेश भर में काश्तकारों, स्वयं सहायता समूहों, मातृ शक्ति को समृद्ध करने की बात कही.

वहीं, सीएम पुष्कर धामी ने सहकारिता विभाग की ओर से ग्रामीण क्षेत्र के कृषकों को प्रोत्साहन स्वरूप चार काश्तकारों को 1-1 लाख रुपए के चेक वितरित किए. दुधारू पशु पालन के लिए यह प्रोत्साहन राशि पान सिंह, किशन सिंह, संदीप सिंह समेत चार लाभार्थियों को दी गई. कार्यक्रम के दौरान सीएम धामी ने चंपावत को लगभग ₹88.11 करोड़ की कुल 8 विकास योजनाओं की सौगात दी.

इतने करोड़ की योजनाओं का किया लोकार्पण और शिलान्यास: इनमें 24 करोड़ 79 लाख की 3 योजनाओं का लोकार्पण और 63 करोड़ 33 लाख की 5 विकास योजनाओं का शिलान्यास किया गया. टनकपुर सहकारिता मेले के उद्घाटन कार्यक्रम में पहुंचे सीएम धामी ने कहा कि प्रदेश के अंदर सहकारिता की समृद्धि को लेकर तेजी से काम किया जा रहा है.

सभी 13 जिलों में सहकारिता मेलों का आयोजन हो रहा है, जिसमें सारे उत्पादकों, स्वयं सहायता समूहों, किसानों, फल उत्पादकों, स्थानीय उत्पादों, मातृ शक्ति को सहकारिता के माध्यम से आगे आने का माध्यम मिल रहा है. मेले में विभिन्न विभागों के स्टॉल लगाए गए हैं, जिसमें विभाग अपने-अपने स्टॉल्स के माध्यम से सरकार की योजनाओं की जानकारी दे रहे हैं.

Tanakpur CM Dhami Padyatra

टनकपुर सहकारिता मेले में पहुंचे लोग (फोटो सोर्स- Information Department)

जौलजीबी मेले का करेंगे उद्घाटन, अपने पैतृक गांव भी जाएंगे सीएम धामी: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी 14 नवंबर को एक दिवसीय सीमांत पिथौरागढ़ दौरे पर आएंगे. वे अपने पैतृक गांव टुंडी बारमौं भी जाएंगे. उसके बाद ऐतिहासिक जौलजीबी मेले का उद्घाटन करेंगे. वहीं, सीएम धामी के कार्यक्रम को देखते हुए डीएम आशीष भटगांई और एसपी रेखा यादव ने कनालीछीना विकासखंड के टुंडी बारमौ पहुंचकर स्थलीय निरीक्षण किया.

उन्होंने संबंधित अधिकारियों को सभी व्यवस्थाएं समय और गुणवत्तापूर्ण ढंग से पूरी करने के निर्देश दिए. वहीं, पिथौरागढ़ डीएम आशीष भटगांई ने ग्राम बारमो और टुंडी के स्थानीय ग्रामीणों से मुलाकात कर उनकी कुशलक्षेम पूछी और तैयारियों के संबंध में सहयोग का आह्वान किया.

हड़खोला और बारमौं टुंडी में हैं सीएम धामी का गांव: सीएम पुष्कर सिंह धामी का पैतृक गांव डीडीहाट के हड़खोला में हैं. साल 1970 के दशक में उनका परिवार कनालीछीना विकासखंड के टुंडी बरमौं गांव में शिफ्ट हो गया था. टुंडी बारमौं में सीएम धामी की प्राथमिक शिक्षा हुई थी. लगभग साल 1980 में टुंडी से उनका परिवार खटीमा चला गया.

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विभिन्न योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास करते सीएम धामी (फोटो सोर्स- ETV Bharat)

मुख्यमंत्री के परिवार के सदस्य समय-समय पर पूजा अर्चना के लिए अपने पैतृक गांव हड़खोला और टुंडी आते रहते हैं. हड़खोला और टुंडी के लिए पहले सड़क नहीं थी. पुष्कर सिंह धामी के सीएम बनने के बाद दोनों गांवों तक सड़क का निर्माण हुआ है. इसके अलावा दोनों जगहों पर हेलीपैड भी बनाए गए हैं.

जौलजीबी मेले को जानिए: जौलजीबी मेला उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में गोरी और काली नदियों के संगम स्थल जौलजीबी में लगता है. यह मेला कुमाऊं का प्रसिद्ध व्यापारिक और सांस्कृतिक मेला है, जिसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता बहुत पुरानी है. जौलजीबी मेले की शुरुआत लगभग 1914 ई. (ब्रिटिश शासन काल) में हुई मानी जाती है.

इस मेले की शुरुआत भारत-तिब्बत व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए की गई थी. पुराने समय में तिब्बत, नेपाल और भारत के व्यापारी यहां आकर ऊन, नमक, घोड़े, और वस्त्रों का व्यापार करते थे. यह मेला भारत और तिब्बत के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों का केंद्र बन गया था. यह मेला मुख्य रूप से स्थानीय कुमाऊंनी और नेपाली संस्कृतियों के मेल का प्रतीक है.

Tanakpur CM Dhami Padyatra

टनकपुर मेले में सीएम धामी (फोटो सोर्स- Information Department)

मेले में लोकगीत, नृत्य, पारंपरिक वस्त्र, खानपान, और हस्तशिल्प की झलक देखने को मिलती है. स्थानीय लोग इस मेले को ‘मिलन मेला’ भी कहते हैं. क्योंकि, यह मेले का समय सामाजिक मेल-जोल का अवसर होता है. पहले यह मेला व्यापारिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था.

अब भी यहां स्थानीय उत्पाद, ऊनी वस्त्र, लकड़ी के सामान, पशु, कृषि उपकरण आदि बेचे और खरीदे जाते हैं. मेला स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद करता है. यह मेला हर साल नवंबर महीने में लगता है. आम तौर पर 14 नवंबर से शुरू होकर दो हफ्ते तक चलता है. इस मेले को स्मारिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.

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