सरेंडर नक्सली कमांडर रुपेश (ETV Bharat)
दंतेवाड़ा/बीजापुर: छत्तीसगढ़ सरकार की नई पुनर्वास नीति और एंटी नक्सल ऑपरेशन का असर तेजी से बस्तर में दिखाई देने लगा है. पहले नक्सली नेता सोनू ने आत्मसमर्पण किया फिर नक्सलियों के हार्डकोर कमांडर रुपेश ने हथियार डाले. लगातार बड़े नक्सलियों के सरेंडर से माओवादी गुटों में खलबली मची हुई है. सरकार अपनी सफलता पर खुश है वहीं बचे खुचे माओवादी अपने साथियों के सरेंडर से दहशत और गुस्से में हैं.
बड़े माओवादी नेताओं के सरेंडर को बताया गद्दारी: नक्सली संगठन की सेंट्रल कमेटी ने इस कदम को “गद्दारी” करार देते हुए बयान जारी किया है, जिसके बाद माओवादी गुटों में चल रहे बड़े मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं. सूत्रों की मानें तो सेंट्रल कमेटी ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को संशोधनवादी, धोखेबाज और अवसरवादी बताया है. नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी ने कहा, ये लोग क्रांति की राह से भटक गए हैं और शत्रु के सामने झुक गए हैं.
नक्सली संगठन अपने ही नेताओं को बता चुका है गद्दार: हालांकि यह पहली बार नहीं है जब किसी वरिष्ठ नक्सली द्वारा पार्टी लाइन से हटने पर संगठन ने उसे देशद्रोही घोषित किया हो. बड़े नक्सली नेताओं के सरेंडर के इतिहास को पलटे तो मिलेगा कि, नक्सल आंदोलन के शुरुआती दिनों में कानू सान्याल ने हिंसा की राह छोड़ने की बात की थी, तब भी उन्हें क्रांति विरोधी ठहराया गया था. इसी तरह सीतारमैय्या सहित कई अन्य नक्सली नेताओं ने विचारधारा से अलग रास्ता अपनाया तो उन्हें भी गद्दार बताया गया.
”बदलाव बंदूक से नहीं संवाद से होगा”: आत्मसमर्पण करने वाला नक्सली कमांडर रुपेश न केवल दंतेवाड़ा-बीजापुर डिवीजन कमेटी के प्रमुख था, बल्कि कई वर्षों तक दक्षिण बस्तर के नक्सली नेटवर्क का रणनीतिकार भी रह चुका है. बड़ी नक्सली नेताओं के सरेंडर के बाद ये बात सामने आ चुकी है कि कई इलाकों में निचले स्तर के नक्सलियों को केवल ढाल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. सरेंडर करने वाले नक्सली बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में माओवादी आंदोलन की जड़ें कमजोर हुई हैं, क्योंकि युवाओं को अब यह समझ में आने लगा है कि हथियार उठाने से न तो न्याय मिलेगा और न विकास. सरेंडर करने वाले नक्सली कमांडर बताते हैं कि हमने क्रांति के नाम पर कई निर्दोषों की जान ली, लेकिन अब हमें एहसास हुआ कि असली बदलाव बंदूक से नहीं, संवाद से आता है. सरेंडर कर चुके नक्सली कमांडर रुपेश ने इस बात को स्वीकार किया है.
सुरक्षा एजेंसियों का बड़ा दावा: नक्सली कमांडर सोनू और रुपेश के सरेंडर के बाद सुरक्षा एजेंसियों का दावा है कि बस्तर में नक्सल संगठन की रीढ़ पर बड़ा प्रहार हुआ है. रुपेश जैसे अनुभवी कमांडर के साथ 200 से ज्यादा प्रशिक्षित कैडरों के आत्मसमर्पण से दक्षिण बस्तर में माओवादी नेटवर्क लगभग ध्वस्त हो गया है.वहीं, छत्तीसगढ़ पुलिस के वरिष्ठ अफसरों का कहना है कि यह सरेंडर नक्सलियों की वैचारिक विचारधारा के पराजय का संकेत है.
नक्सली कमांडरों के सरेंडर से संगठन की टूटी कमर: सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी ये मानते हैं कि पहले सोनू और फिर रुपेश के सरेंडर से हालात बदले हैं. लगातार आत्मसमर्पण इस बात का सबूत है कि नक्सल आंदोलन का अंत निकट है. बीजापुर के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि माओवादियों की सेंट्रल कमेटी का ताजा बयान बताता है कि संगठन अब अंदरूनी विभाजन से जूझ रहा है. सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय नेतृत्व में यह बहस तेज है कि क्या मौजूदा रणनीति को जारी रखा जाए या आंदोलन की दिशा बदली जाए. सूत्रों के मुताबिक बचे खुचे नक्सली लीडरों ने माना है कि वो जनता से कट चुके हैं और उनके आंदोलन को अब कोई समर्थन नहीं मिल रहा.
नक्सली कमांडर रुपेश का खुलासा: सरेंडर नक्सली लीडर रुपेश ने खुलासा किया कि कई नक्सली आज भी आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, लेकिन संगठन के भय और प्रतिशोध की आशंका से पीछे हट जाते हैं. शासन से हमारी अपील है कि जो साथी अब भी जंगल में हैं, उन्हें विश्वास दिलाया जाए कि सरकार उन्हें सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन देगी. छत्तीसगढ़ सरकार ने इस आत्मसमर्पण को “नई शुरुआत” करार दिया है.
विजय शर्मा ने किया स्वागत: गृह मंत्री विजय शर्मा ने कहा, राज्य सरकार नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध है. जो हथियार छोड़कर समाज की मुख्य धारा में लौटना चाहते हैं, उनका स्वागत है. बस्तर में अब चर्चा इस बात की है कि क्या यह आत्मसमर्पण नक्सलवाद के अंत की शुरुआत है या फिर संगठन एक बार फिर नई रणनीति के साथ उभरने की कोशिश करेगा. फिलहाल इतना तय है कि सोनू और रुपेश जैसे नामों के आत्मसमर्पण ने नक्सल आंदोलन के भीतर वैचारिक तूफ़ान खड़ा कर दिया है, जिसका असर आने वाले महीनों में पूरे बस्तर अंचल में दिखाई पड़ सकता है.

