कल से छठ की शुरुआत (ETV Bharat)
पटना: लोक आस्था का महापर्व कार्तिक छठ पूजा 25 अक्टूबर शनिवार से ‘नहाए-खाए’ के साथ शुरू हो रहा है. यह चार दिवसीय पर्व 28 अक्टूबर मंगलवार को ‘उषा अर्घ्य’ के साथ संपन्न होगा. छठ पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सूर्य देव की उपासना, प्रकृति के प्रति आभार और मानव के आत्मसंयम का अद्भुत उदाहरण भी है. बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश से निकलकर अब यह पर्व विश्वभर में बसे भारतीयों की पहचान बन चुका है.
चार दिनों का अनुष्ठान और धार्मिक अनुशासन: छठ पूजा चार दिनों में मनाया जाता है और हर दिन का अलग धार्मिक महत्व है. पहला दिन नहाए-खाए होता है, जिसमें व्रती गंगा या नदी में स्नान कर शुद्ध भोजन करते हैं. इस दिन छठ व्रती स्नान ध्यान करने के बाद मिट्टी के चूल्हे पर लौकी की सब्जी और भात बनाती हैं. बिना लहसुन प्याज के सात्विक भोजन के तौर पर लौकी की सब्जी और भात प्रसाद के रूप में खाया जाता है. 25 अक्टूबर शनिवार से छठ की शुरुआत होगी.
दूसरे दिन लोहंडा या खरना: दूसरे दिन खरना (26 अक्टूबर) में निर्जला व्रत रखा जाता है और सूर्यास्त के बाद गुड़ और दूध से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण कर व्रत का प्रारंभ होता है. तीसरे दिन संध्या अर्घ्य के समय व्रती गंगा या तालाब में जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं. चौथे दिन उषा अर्घ्य के साथ उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन होता है.
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य: छठ पूजा का तीसरा बहुत ही महत्वपूर्ण दिन होता है. इस दिन अस्ताचलगामी सूर्य को संध्या अर्घ्य अर्पित किया जाता है. इस दिन व्रती दिनभर बिना जल पिए निर्जला व्रत रखती हैं और फिर, शाम को नदी में डुबकी लगाते हुए ढलते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं. इस दिन सूर्योदय 6:15 बजे और सूर्यास्त शाम 5:27 बजे होगा.
ऊषा अर्घ्य (प्रात: कालीन अर्घ्य): छठ पूजा का चौथा और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य होता है. इस दिन सभी व्रती और भक्त नदी में डुबकी लगाते हुए उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इस दिन सूर्योदय सुबह 6:16 बजे और सूर्यास्त शाम 5:26 बजे होगा.
छठ का शुभ मुहूर्त: पंडित प्रेमसागर पांडे बताते हैं कि छठ पूजा में ना किसी पंडित की जरूरत होती है और ना ही कोई मुहूर्त मायने रखता है. मुहूर्त के तौर पर देखें तो पहला अर्घ्य के दिन शाम का सूर्यास्त समय और दूसरे अर्घ्य के दिन सूर्योदय का समय महत्वपूर्ण होता है. जिस समय सूर्य की विशेष उपासना श्रद्धालु करते हैं.
पंचांग के अनुसार 2025 में षष्ठी तिथि 27 अक्टूबर सोमवार की सुबह 06:04 बजे से आरंभ होकर 28 अक्टूबर मंगलवार सुबह 07:59 बजे तक रहेगी. संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर की शाम सूर्यास्त के समय और उषा अर्घ्य 28 अक्टूबर की सुबह सूर्योदय के समय दिया जाएगा. इस दौरान घाटों पर विशेष सजावट, दीपदान और आरती का आयोजन होगा.
“छठ पूजा सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित पर्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान सूर्य की उपासना का यह सबसे प्राचीन पर्व है. ऐसा माना जाता है कि सूर्य की आराधना से जीवन में ऊर्जा, आरोग्य और समृद्धि आती है. ऋग्वेद में सूर्योपासना का उल्लेख मिलता है और छठ पर्व उसी परंपरा की जीवंत मिसाल है. छठी मइया को सूर्य देव की बहन माना गया है जो संतान, स्वास्थ्य और परिवार की रक्षा करती हैं.”– पंडित प्रेमसागर पांडे
मिट्टी, सूर्य और शुद्धता का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक संगम: लोक संस्कृति और छठ पर्व के अध्येता साहित्यकार हृदय नारायण झा बताते हैं कि छठ पूजा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. उनका कहना है कि सनातन परंपरा में सूर्य को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना गया है. सूर्योपासना शरीर में विटामिन-डी का संतुलन बनाती है और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है.
“छठ में मिट्टी और पानी के संपर्क से शरीर की शुद्धि होती है, जो पर्यावरण और जैविक संतुलन का भी संदेश देती है. छठ पर्व के चारों दिन मनुष्य आत्मसंयम, स्वच्छता और अनुशासन का अभ्यास करता है.”- हृदय नारायण झा,साहित्यकार
लोक संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का पर्व: हृदय नारायण झा कहते हैं कि छठ केवल पूजा नहीं, यह वह तप है जो मनुष्य को प्रकृति के साथ एकाकार करता है. छठ पर्व के हर अनुष्ठान में पर्यावरण के प्रति सम्मान झलकता है. नदी, सूर्य, वायु, जल और मिट्टी, इन पांच तत्वों की पूजा कर मानव अपनी जड़ों को प्रणाम करता है.
घाटों पर साफ-सफाई, बायोडिग्रेडेबल प्रसाद सामग्री और प्लास्टिक से परहेज जैसी परंपराएं इस पर्व को पर्यावरण-अनुकूल बनाती हैं. यही कारण है कि आज छठ पूजा बिहार की सीमाओं से निकलकर अमेरिका, दुबई, लंदन और सिंगापुर तक मनाई जा रही है. प्रवासी भारतीय अपनी मिट्टी की खुशबू के साथ इस पर्व को अपनी पहचान के रूप में संजोए हुए हैं. विदेशों में भी गंगा घाट जैसी सजावट, लोक गीत और सामूहिक अर्घ्य के दृश्य बिहार की सांस्कृतिक शक्ति को दर्शाते हैं.
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