हाथियों की DNA आधारित जनगणना (ETV Bharat)
देहरादून: उत्तराखंड में पहली बार हाथियों की डीएनए आधारित वैज्ञानिक गणना नई चिंता को जन्म दे रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि गणना के बाद सामने आए रिकॉर्ड हाथियों की संख्या में कमी की ओर इशारा कर रहे हैं. हालांकि, अच्छी बात यह है कि गणना के दौरान नन्हे हाथियों की संख्या में बढ़ोतरी रिकॉर्ड की गई है. जिससे विभाग के अफसर उत्साहित नजर आ रहे हैं.
देशभर में हाथियों की गणना के बाद इससे जुड़े आंकड़े सार्वजनिक कर दिए गए हैं. उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश में उत्तर भारत के लिहाज से सबसे ज्यादा हाथी पाए गए हैं. आंकड़ा यह भी कहता है कि प्रदेश में पिछले रिकॉर्ड की तुलना में हाथियों की संख्या बेहद कम हुई है. दरअसल, उत्तराखंड में कुल 1792 हाथी रिकॉर्ड किए गए हैं, जबकि इससे पहले प्रदेश में 2026 हाथियों का रिकॉर्ड मौजूद था. इस तरह नई विधि से की गई गणना में हाथियों की संख्या में कमी दर्ज की गई है.
हाथियों की DNA आधारित जनगणना (ETV Bharat)
हाथियों की संख्या में आई कमी पर वन विभाग के अधिकारियों की अपनी दलील है. प्रमुख वन संरक्षक हाफ समीर सिन्हा कहते हैं हाथियों की यह कमी पिछली गणनाओं से तुलना योग्य नहीं मानी जा सकती. यह पहली बार डीएनए आधारित गणना है. इसमें यह भी देखना होगा कि इस गणना के दौरान कितने क्षेत्र को कवर किया गया है. साथ ही हाथियों के डीएनए लेने में गणना करने वाली टीम को कितनी सफलता मिल पाई है.
अब तक हाथियों की गिनती उनके दिखाई देने या चिन्हों के आधार पर की जाती थी, जबकि इस बार वैज्ञानिकों ने हाथियों की लीद से डीएनए निकालकर उनकी सटीक पहचान की है. यही वजह है कि यह गणना पहले से कहीं ज्यादा वैज्ञानिक और भरोसेमंद मानी जा रही है. सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि इस बार की गिनती में हाथियों के बच्चों की संख्या उल्लेखनीय रूप से अधिक पाई गई है. यह संकेत है कि राज्य के वन क्षेत्रों में हाथियों के लिए प्राकृतिक वास की स्थिति बेहतर बनी हुई है.
देशभर में कुल 22,446 हाथियों की गणना हुई है. इनमें सबसे ज्यादा हाथी कर्नाटक 6013 में पाए गए हैं. इसके बाद असम 4159, तमिलनाडु 3136 और केरल 2785 का स्थान है.देशव्यापी सर्वे के दौरान 6.66 लाख किलोमीटर पैदल सर्वेक्षण किया गया. 3.19 लाख जगहों पर हाथियों की लीद के नमूने लिये गये हैं.
उत्तराखंड में हाथियों की संख्या में कमी के बावजूद बच्चों की अच्छी संख्या ने वन विभाग को आशावान किया है. संकेत साफ हैं कि जंगलों में जीवन चक्र अब भी स्वस्थ गति से आगे बढ़ रहा है.
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