Homeउत्तराखण्ड न्यूजट्रंप प्रशासन का बड़ा फैसला, H-1बी वीजा के लिए देने होंगे 89...

ट्रंप प्रशासन का बड़ा फैसला, H-1बी वीजा के लिए देने होंगे 89 लाख रुपये


वाशिंगटन: ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीजा शुल्क में भारी वृद्धि की घोषणा की है. इसमें 100,000 अमेरिकी डॉलर (करीब 89 लाख रुपए) का वार्षिक शुल्क लगाया गया है. ये मूल रूप से अमेरिकी कंपनियों द्वारा कुशल विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करने के तरीके को बदल देगा. विशेष रूप से भारतीय आईटी पेशेवरों को प्रभावित करेगा जो लाभार्थियों का सबसे बड़ा समूह हैं.

वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लूटनिक ने शुक्रवार को एक प्रेस वार्ता के दौरान इन परिवर्तनों का खुलासा किया. शुल्क वृद्धि को एक सोची-समझी रणनीति बताया ताकि प्रशासन निम्न-कुशल प्रशिक्षण पदों को समाप्त कर सके, जबकि उच्च कुशल श्रमिकों के लिए अवसरों को संरक्षित रखा जा सके.

पूरी राशि एकमुश्त ली जाए या सालाना ये तय नहीं
नया 1,00,000 डॉलर (करीब 89 लाख रुपए) वार्षिक शुल्क मौजूदा H-1B प्रोसेसिंग लागत आमतौर पर कुछ हजार डॉलर होती है से काफी अधिक है. कंपनियाँ मौजूदा जाँच शुल्क के अलावा यह एप्लीकेशन फीस भी अदा करेंगी, और प्रशासन अभी यह तय कर रहा है कि पूरी राशि एकमुश्त ली जाए या सालाना.

सचिव लूटनिक के अनुसार एक कंपनी जो एच-1बी वीजा लेना चाहती है. उसकी फीस 1,00,000 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है. वीजा की वर्तमान संरचना बनी रहेगी. इसके तहत तीन साल और कुल छह वर्षों के लिए एक बार नवीनीकरण संभव.

यह फीस वेतन स्तर या कौशल आवश्यकता की परवाह किए बिना सभी एच-1बी पदों पर लागू होता है. इससे यह कार्यक्रम केवल उन भूमिकाओं के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो जाता है जो पर्याप्त लागत को उचित ठहराते हैं. प्रशासन का स्पष्ट लक्ष्य ‘ट्रेनिंग प्रोग्राम’ को समाप्त करना है. ऐसे पद जहां कंपनियां एच-1बी वीजा पर ट्रेनिंग और विकास के लिए कम अनुभवी विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं.

इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो जैसी आईटी कंपनियों पर पड़ेगा प्रभाव
लूटनिक ने कहा, ‘अब आप ट्रेनी को एच-1बी वीजा पर नहीं रखेंगे – यह अब आर्थिक रूप से लाभदायक नहीं रहा. अगर आप लोगों को प्रशिक्षित करने जा रहे हैं, तो आप अमेरिकियों को प्रशिक्षित करने जा रहे हैं.’ यह परिवर्तन इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी भारतीय आईटी सेवा कंपनियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है. ये ऐतिहासिक रूप से एच-1बी वीजा का उपयोग जूनियर और मध्य-स्तर के इंजीनियरों को ग्राहक परियोजनाओं और कौशल विकास के लिए अमेरिका लाने के लिए करती रही हैं.

भारतीय नागरिकों को लगातार अधिकतर एच-1बी मंजूरियाँ मिलती हैं और भारतीय आईटी कंपनियाँ सबसे बड़ी प्रायोजकों में से हैं. शुल्क वृद्धि से इस परिदृश्य में नाटकीय बदलाव आने का खतरा है. ल्यूटनिक ने कहा, ‘यदि आपके पास बहुत ही परिष्कृत इंजीनियर है और आप उन्हें लाना चाहते हैं, क्योंकि उनके पास विशेषज्ञता है, तो आप अपने एच-1बी वीजा के लिए प्रति वर्ष 100,000 डॉलर का भुगतान कर सकते हैं.’ उन्होंने सुझाव दिया कि यह कार्यक्रम अब केवल वरिष्ठ स्तर के पदों को टारगेट करेगा.

सचिव लूटनिक ने दावा किया कि तकनीकी कंपनियाँ इन बदलावों का समर्थन करती हैं क्योंकि ये आवेदनों के प्रोसेसिंग में निश्चितता और गति प्रदान करते हैं. उन्होंने कहा कि सैकड़ों कंपनियों के साथ चर्चा के बाद 1,00,000 डॉलर (करीब 89 लाख रुपए) फीस तय की गई. उन्होंने कंपनी की प्रतिक्रिया के बारे में कहा, कि वे इससे बहुत खुश हैं, क्योंकि वे एक ऐसी प्रक्रिया चाहते हैं जो ज्ञात हो, स्पष्ट हो और तीव्र हो.’

वर्तमान में सलाना 65,000 एच-1बी वीजा सीमा
हालांकि, लागत में पर्याप्त वृद्धि के कारण कम्पनियां इस बात को लेकर अधिक चयनात्मक हो जाएंगी कि कौन से पद एच-1बी प्रायोजन के लिए उपयुक्त हैं, जिससे वीजा सीमा बरकरार रखने के बावजूद कुल आवेदनों में कमी आ सकती है. प्रशासन ने जोर देकर कहा कि एच-1बी वीजा कोटा अपरिवर्तित रहेगा. कार्यक्रम उतनी ही संख्या में वीजा जारी करेगा, लेकिन लागत संबंधी बाधाओं के कारण कम आवेदन आने की उम्मीद है. वर्तमान वार्षिक सीमा 65,000 नियमित एच-1बी वीजा और अमेरिकी विश्वविद्यालयों से उन्नत डिग्री धारकों के लिए 20000 वीजा है.

लूटनिक ने बताया, ‘याद रखें, ये वही सीमा है, ये वही वीजा है. बस अब कम वीजा जारी किए जाएंगे, क्योंकि पहले ये मुफ्त हुआ करते थे और अब इनकी कीमत 100,000 अमेरिकी डॉलर है.’ नए शुल्क होमलैंड सुरक्षा विभाग द्वारा उन्नत जाँच प्रक्रियाओं के साथ लागू किए जाएँगे. हालाँकि अभी तक कोई विशिष्ट आरंभ तिथि घोषित नहीं की गई है, लेकिन प्रशासन ने संकेत दिया है कि वर्तमान घोषणा के कुछ हफ्तों के भीतर ही बदलाव लागू हो जाएँगे.

मौजूदा एच-1बी कर्मचारियों वाली कंपनियों को नवीनीकरण अवधि आने पर तत्काल प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि नई शुल्क संरचना कार्यान्वयन के बाद संसाधित सभी आवेदनों पर लागू होगी. प्रशासन ने इन बदलावों को अमेरिकी कामगारों की सुरक्षा और अमेरिकी राजकोष के लिए राजस्व सृजन के उद्देश्य से तैयार किया. अधिकारियों का तर्क है कि मुफ्त या कम लागत वाले एच-1बी वीजा ने कंपनियों को अमेरिकियों को प्रशिक्षण देने के बजाय विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया.

लूटनिक ने कहा, ‘विचार उच्च आय वाले धनवान लोगों को लाने का है.’ उन्होंने इसकी तुलना पिछली नीतियों से की, जिनमें कम आय वाले लोगों को लाया गया था, जो अमेरिकियों से नौकरियां छीन लेते थे.’ एच-1बी में परिवर्तन मानवीय या पारिवारिक-आधारित विचारों के बजाय आर्थिक योगदान के आधार पर अमेरिकी इमिग्रेशन नीति को नया रूप देने के ट्रंप प्रशासन के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है.

हालांकि प्रशासन का यह मानना ​​है कि अत्यधिक कुशल श्रमिकों का स्वागत है, लेकिन स्पष्ट रूप से वह बाधाओं को काफी बढ़ाने का इरादा रखता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल पर्याप्त आर्थिक मूल्य वाले पद ही विदेशी भर्ती की लागत को उचित ठहरा सकें. भारतीय पेशेवरों और कंपनियों के लिए ये परिवर्तन अमेरिकी बाजार में भागीदारी के लिए रणनीतियों को अनुकूलित करने की आवश्यकता का संकेत देते हैं. इससे संभावित रूप से उच्च-मूल्य सेवाओं की ओर रुझान में तेजी आएगी और अस्थायी कर्मचारी स्थानांतरण पर निर्भरता कम होगी.

एक नजर