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478 मीटर पीछे खिसका लद्दाख का चांगमोलुंग ग्लेशियर, वाडिया की स्टडी में चौंकाने वाली वजह का खुलासा


रोहित कुमार सोनी

देहरादून: उत्तराखंड समेत देश के हिमालयी क्षेत्रों में हजारों की संख्या में ग्लेशियर मौजूद हैं, जो काफी तेजी से पिघल रहे हैं. ग्लेशियर तेजी से पिघलने का कारण ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज बताया जाता है, लेकिन केवल ये ही वजह नहीं है. ग्लेशियर के पिघलने का कारण केवल ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज ही नहीं, बल्कि जियोथर्मल स्प्रिंग्स (भूतापीय झरना या गर्म पानी का झरना) भी हैं. देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी का ये दावा है. उन्होंने ऐसे ही जियोथर्मल स्प्रिंग्स को खोजा भी है, जिसकी वजह से लद्दाख रीजन में मौजूद चांगमोलुंग ग्लेशियर 478 मीटर पीछे खिसक चुका है.

दरअसल, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी ने अपनी टीम के साथ लद्दाख रीजन में मौजूद चांगमोलुंग ग्लेशियर का अध्ययन किया है. अध्ययन में चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं. इस अध्ययन में पता चला है कि चांगमोलुंग ग्लेशियर सिर्फ क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से नहीं पिघल रहा, बल्कि इसके पीछे पिघलने की एक बड़ी वजह जियोथर्मल स्प्रिंग्स भी है.

पीछे खिसका चांगमोलुंग ग्लेशियर (Video- ETV Bharat)

भारत में करीब 9,575 ग्लेशियर मौजूद: जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार भारत में करीब 9,575 ग्लेशियर मौजूद हैं. ये सभी ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. हालांकि, इनमें से कुछ ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार काफी तेज तो कुछ के पिघलने की स्पीड काफी स्लो है. इन सभी ग्लेशियर में से मात्र 267 ग्लेशियर ऐसे हैं, जिसका साइज 10 वर्ग किलोमीटर से अधिक है.

चांगमोलुंग ग्लेशियर के बारे में जानिए. (ETV Bharat)

लद्दाख रीजन में सबसे ज्यादा ग्लेशियर मौजूद: देश में सबसे अधिक 5,262 ग्लेशियर लद्दाख रीजन में हैं. यही वजह है कि वैज्ञानिक लद्दाख में मौजूद ग्लेशियर के साथ ही अन्य राज्यों के हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर पर निगरानी करते रहते हैं, ताकि लगातार पिघल रहे ग्लेशियर की मॉनिटरिंग की जा सके. इसी क्रम में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ समीर के तिवारी ने लद्दाख रीजन में मौजूद चांगमोलुंग ग्लेशियर का अध्ययन किया.

CHANGMOLUNG GLACIER SLIPPED BACK

चांगमोलुंग ग्लेशियर पर वाडिया की स्टडी. (ETV Bharat)

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया के वैज्ञानिक डॉ समीर कुमार तिवारी ने बताया कि काराकोरम रीजन में मौजूद चांगमोलुंग ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है. इसी वजह से वो साल 2021-22 में अपनी टीम के साथ कराकोरम रीजन में चांगमोलुंग ग्लेशियर का अध्ययन करने गए थे.

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देश का पहला मामला है, जहां ग्लेशियर नीचे निकला जियोथर्मल स्प्रिंग निकला है. (फोटो- डॉ समीर तिवारी)

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478 मीटर पीछे खिसका चांगमोलुंग ग्लेशियर (फोटो- डॉ समीर तिवारी)

कराकोरम को हिमालय का थर्ड पोल कहा जाता है: ऐसा माना जाता है कि काराकोरम, हिमालय और तिब्बत टेक्निक रीजन है. साथ ही काराकोरम एक ऐसा रीजन है, जिसको हिमालय का थर्ड पोल कहा जाता है. इसलिए साइंटिस्ट डॉ समीर कुमार काराकोरम रीजन में ग्लेशियरों का अध्ययन कर रहे थे. इसी अध्ययन के दौरान साइंटिस्ट डॉ समीर कुमार के सामने बड़ी चौंकाने वाली चीज सामने आई.

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चांगमोलुंग ग्लेशियर के नीचे झील बनी रही है. (फोटो- डॉ समीर तिवारी)

अपने आपको सर्ज कर रहे काराकोरम के ग्लेशियर: साइंटिस्ट डॉ समीर कुमार की स्टडी कहती है कि एक तरफ जहां क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं. वहीं काराकोरम में मौजूद ग्लेशियर अपने आपको सर्ज कर रहे हैं, यानी ये ग्लेशियर अपने एरिया को एक्सपैंड कर रहे हैं, जबकि देश में मौजूद अन्य ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं.

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वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने की स्टडी. (फोटो- डॉ समीर तिवारी)

चांगमोलुंग ग्लेशियर स्नाउट पूरी तरह से पिघल गया: काराकोरम रीजन में अध्ययन के दौरान यह भी सामने आया है कि कुछ ऐसे ग्लेशियर भी हैं, जो अनएक्सपैक्टेड (अप्रत्याशित) तरीके से पिघल रहे हैं. लेकिन इसके कारणों का सही पता नहीं चल पा रहा था. इसलिए उन्होंने इस इलाके में अपनी स्टडी की तो पता चला कि चांगमोलुंग ग्लेशियर का स्नाउट (किसी ग्लेशियर का निचला, अंतिम छोर या सिरा होता है, जहां बर्फ पिघलती है और आसपास के इलाके से मिलती है) पूरी तरह से पिघल गया है और नीचे लेक (झील) बनी हुई है.

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वाडिया इंस्टीट्यूट के सीनियर साइंटिस्ट डॉ समीर तिवारी ने किया अध्ययन. (फोटो- डॉ समीर तिवारी)

उन्होंने चांगमोलुंग ग्लेशियर के समीप कुछ ऐसा दृश्य देखा, जहां पानी उबाल की तरह ऊपर और नीचे जा रहा था. ऐसे में जब वो अपनी टीम के साथ लेक के करीब पहुंचे तो पता चला कि वो कोई ग्लेशियर लेक नहीं है, बल्कि जियोथर्मल स्प्रिंग है.

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उत्तराखंड में ग्लेशियरों की स्थिति. (ETV Bharat)

देश का पहला ऐसा मामला: इसके बाद अध्ययन में यह पता चला कि चांगमोलुंग ग्लेशियर के पिघलने की वजह सिर्फ क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग नहीं है, बल्कि जियोथर्मल स्प्रिंग्स की वजह से भी ये ग्लेशियर अनएक्सपेक्टेड तरीके से पिघल रहे हैं. साथ ही बताया कि ये देश का पहला ऐसा मामला उनके सामने आया कि किसी ग्लेशियर के नीचे अनएक्सपेक्टेड जियोथर्मल स्प्रिंग है, जो ग्लेशियर को पिघला रहा है.

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जानिए कहां कितने ग्लेशियर (ETV Bharat)

साथ ही कहा कि भारत देश की यह पहली ऐसी डिस्कवरी है, जो वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक ने की है. ऐसे में इस डिस्कवरी के तहत न सिर्फ समुद्र तल से 4,980 मीटर ऊंचाई पर एक अननोन जियोथर्मल स्प्रिंग को खोजा गया, बल्कि इस अध्ययन से ये भी पता चला कि इस जियोथर्मल स्प्रिंग्स की वजह से चांगमोलुंग ग्लेशियर पिघल रहा है.

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चांगमोलुंग ग्लेशियर काराकोरम पर्वतमाला में स्थित है. (फोटो- डॉ समीर तिवारी)

सैटेलाइट के जरिए साल 1969 से 2022 तक अध्ययन किया, जिससे ये पता चला कि इन 53 सालों में चांगमोलुंग ग्लेशियर 478 मीटर पीछे खिसक गया है. इन 53 सालों के दौरान जब ग्लेशियर पिघल रहा था, उस दौरान जियोथर्मल स्प्रिंग्स ग्लेशियर के नीचे ही था.

लगातार तेजी से पिघल रहे चांगमोलुंग ग्लेशियर का जब सैटेलाइट के जरिए साल 2004 में अध्ययन किया गया था, तो उस समय ये पता चला कि ग्लेशियर के पिघलने से ग्लेशियर के पास एक झील बनी हुई है. लिहाजा जब साल 2022 में वैज्ञानिक वहां पहुंचे और पानी का अध्ययन किया तो पता चला कि इस पानी का कंपाउंड ग्लेशियर के पानी के कंपाउंड से बिल्कुल अलग था.

– समीर तिवारी, ग्लेशियर साइंटिस्ट, वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी –

माइनस 20 डिग्री सेल्सियस में पानी का तापमान +8 से 10 डिग्री: यही नहीं, मौके पर अध्ययन के दौरान पाया गया कि आसपास के क्षेत्र का टेंपरेचर माइनस 20 डिग्री सेल्सियस था. वहीं ग्लेशियर के समीप मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग से निकलने वाले पानी का तापमान +8 से 10 डिग्री सेल्सियस था.

चांगमोलुंग ग्लेशियर का तापमान अलग-अलग महीने में अलग-अलग रहा है, लेकिन सालाना एवरेज तापमान की बात करें -9.21 डिग्री सेल्सियस मापा गया है. चांगमोलुंग ग्लेशियर के समीप मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग का तापमान +8 से 10 डिग्री सेल्सियस पाया गया है. यही वजह है कि चांगमोलुंग ग्लेशियर लगातार पिघल रहा है.

– समीर तिवारी, ग्लेशियर साइंटिस्ट, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी –

जियोथर्मल स्प्रिंग के कारण सालाना 3.9 मीटर पीछे खिसक रहे ग्लेशियर: ग्लेशियर के पिघलने की दरों पर बात करें तो ग्लेशियर के किनारों पर पिघलने की सालाना रफ्तार 1.9 मीटर जबकि, जियोथर्मल स्प्रिंग के समीप ग्लेशियर पिघलने की दर सालाना 3.9 मीटर देखी गई है. चांगमोलुंग ग्लेशियर का क्षेत्रफल 9.96 वर्ग किलोमीटर है, जो 4980 से 6070 मीटर ऊंचाई पर स्थित है. हालांकि, ये ग्लेशियर पिछले 53 सालों में 478 मीटर पिछे खिसक गया है.

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भारत में ग्लेशियर (ETV Bharat)

वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी ने बताया कि काराकोरम रीजन में एक नया जियोथर्मल स्प्रिंग्स ग्लेशियर के समीप मिला है. ऐसे में देश के अन्य हिमालय क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर के नीचे या फिर आसपास जियोथर्मल स्प्रिंग्स हो सकते हैं, जिनका अभी तक पता नहीं चल पाया है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि जियोथर्मल स्प्रिंग्स भी ग्लेशियर मेल्टिंग के लिए रिस्पांसिबल हो सकते हैं. क्योंकि इस अध्ययन से ये स्पष्ट हो गया है कि कराकोरम रीजन में मौजूद चांगमोलुंग ग्लेशियर के पिघलने में जियोथर्मल स्प्रिंग की एक महत्वपूर्ण भूमिका है.

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जियोथर्मल स्प्रिंग के कारण चांगमोलुंग ग्लेशियर का तापमान और और पानी की मात्रा बढ़ रही है (फोटो- डॉ समीर तिवारी)

साथ ही बताया कि उनका “इंपैक्ट ऑफ जियोथर्मल एक्टिविटी ऑन द एनोमेलस रिट्रीट ऑफ चांगमोलुंग ग्लेशियर इन द कराकोरम” (Impact of geothermal activity on the anomalous retreat of Changmolung Glacier in the Karakoram) ये अध्ययन रिपोर्ट साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में 27 अगस्त 2025 को पब्लिश हुई है.

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