नवीन उनियाल की रिपोर्ट
देहरादून: मॉनसून ने इस बार पहाड़ों को न केवल गहरे जख्म दिए हैं, बल्कि पुराने जख्मों को भी हरा कर दिया है. दरअसल अगस्त महीने में जिस तरह बादल फटने और अतिवृष्टि की घटनाओ ने जोर पकड़ा, उससे पूरे पहाड़ पर कई नए लैंडस्लाइड जोन तैयार हो गए. यही नहीं इसका असर उन क्षेत्रों में भी हुआ जहां पूर्व में लैंडस्लाइड जोन तो थे, लेकिन ट्रीटमेंट के चलते इन्हें निष्क्रिय कर दिया गया था. उधर आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से ऐसे खास लैंडस्लाइड जोन का अध्ययन कराने की तैयारी की जा रही है, जो अतिवृष्टि या बदल फटने के कारण बने हैं. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
आपदा ने पहाड़ों के जख्म किए हरे: उत्तराखंड में अगस्त का महीना बारिश के लिहाज से बेहद संवेदनशील रहा है. इस महीने सामान्य तौर पर 300 मिलीमीटर बारिश की उम्मीद लगाई जाती है लेकिन इस एक महीने में ही करीब 500 मिलीमीटर तक बारिश हुई है. जाहिर है कि यह आंकड़ा राज्य में भारी बारिश की तरफ इशारा कर रहा है, जिसने खास तौर पर पहाड़ों को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है.
मानसून में पुराने लैंडस्लाइड जोन हुए सक्रिय तो नए भी बने (Video- ETV Bharat)
उत्तराखंड में नए लैंडस्लाइड जोन बने: वैसे तो पूरे प्रदेश में ही इस बार तेज बारिश हुई है, लेकिन पहाड़ों पर तेज बौछारों ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. धराली, थराली और पौड़ी गढ़वाल समेत कई क्षेत्रों में तो अतिवृष्टि तबाही लेकर आई और भारी जनहानि का भी राज्य को सामना करना पड़ा. इस दौरान पहाड़ों की सेहत भी इससे बिगड़ गई. राज्य में 63 जगहों पर नए भूस्खलन क्षेत्र बन गए, जो पहले कभी नहीं थे. इससे भी बड़ी बात यह है कि उन पुराने भूस्खलन जोन पर भी इसका असर पड़ा, जो कभी इंसानी इलाज के बाद नियंत्रित कर लिए गए थे. यानी ऐसे लैंडस्लाइड क्षेत्र जिनका ट्रीटमेंट किया गया और पिछले कई सालों से यहां बड़े भूस्खलन को रोकने में कामयाबी भी मिल गई थी.
लैंडस्लाइड के कराहता उत्तराखंड (ETV Bharat Graphics)
पुराने लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट भी हुए फेल: जिन जिलों में सबसे ज्यादा भूस्खलन हुए और पुराने लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट फेल हो गए, उनमें उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग शामिल रहे. राज्य में करीब 20 भूस्खलन क्षेत्र ऐसे थे, जो अगस्त महीने की बारिश के कारण फिर से सक्रिय हो गए. इस तरह अगस्त महीने की बारिश ने पहाड़ों पर इन पुराने जख्मों को हरा कर दिया.
पीडब्ल्यूडी लेगा विशेषज्ञों की मदद: लोक निर्माण विभाग के सचिव पंकज कुमार पांडे कहते हैं कि-
राज्य सरकार ने हिमवंत नाम से स्कीम लॉन्च की है. इसमें स्टेट हाईवे और बड़ी सड़कों पर होने वाले लैंडस्लाइड का ट्रीटमेंट किया जाता है. लेकिन इस काम में राज्य सरकार को बहुत ज्यादा खर्चा वहन करना पड़ता है. इसलिए यह भी निर्धारित किया जाता है कि किस लैंडस्लाइड पर कितना काम होना है और कौन से लैंडस्लाइड का ट्रीटमेंट कितना जरूरी है. इसके लिए तमाम विशेषज्ञों से भी राय ली जाती है और उसके बाद ही इस पर फैसला किया जाता है.
-पंकज कुमार पांडे, सचिव, पीडब्ल्यूडी-
लैंडस्लाइड जोन बने सिरदर्द: पंकज कुमार पांडे बताते हैं कि इस बार कई नई लैंडस्लाइड साइट्स तैयार हुई हैं और कुछ ऐसी भी हैं, जो काफी समय से ट्रीटमेंट के बाद बेहतर स्थिति में थी, लेकिन इस मौसम में फेल हो गईं. ऐसे में यह विचार किया जा रहा है कि इन लैंडस्लाइड जोन को कैसे दोबारा ठीक किया जाए.

पीडब्ल्यूडी लैंडस्लाइड जोन का ट्रीटमेंट कराएगी (ETV Bharat Graphics)
नए भूस्खलन जोन ने बढ़ाई कसरत: जीएसआई की रिपोर्ट में पहले ही उत्तराखंड में 14,000 से ज्यादा लैंडस्लाइड चिन्हित किए गए हैं. हालांकि यह छोटे और बड़े दोनों ही तरह के लैंडस्लाइड जोन हैं. उधर बड़े लैंडस्लाइड जोन को देखें, तो प्रदेश में इनकी संख्या 336 है. इस बार के नए भूस्खलन क्षेत्र जोड़ने के बाद इनका आंकड़ा करीब 400 तक पहुंच गया है.
15 सितंबर के बाद होगा अध्ययन: प्रदेश में इस बार सबसे बड़ी समस्या बादल फटने या अतिवृष्टि से तैयार हुए भूस्खलन जोन बने हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कई जगह पर इनका स्वरूप बेहद बड़ा है जिसका ट्रीटमेंट होना मुश्किल और ज्यादा खर्चीला है. हालांकि ऐसे भूस्खलन जोन बेहद ख़तरनाक होने के चलते आपदा प्रबंधन विभाग ने इनका अध्ययन करवाने का फैसला लिया है. दरअसल विशेषज्ञ बताएंगे कि इतने बड़े लैंडस्लाइड क्षेत्र में किस फॉर्मूले के तहत काम करना है और यहां पर भूस्खलन के बाद पहाड़ की संवेदनशीलता कितनी ज्यादा है. हालांकि विशेषज्ञ ऐसे क्षेत्र का अध्ययन 15 सितंबर के बाद करेंगे, जहां बादल फटने के बाद लैंडस्लाइड जोन बने हैं.

लैंडस्लाइड जोन का अध्ययन होगा (ETV Bharat Graphics)
कैसे हो ट्रीटमेंट विशेषज्ञ देंगे रिपोर्ट: अध्ययन के दौरान विशेषज्ञ न केवल पहाड़ों की संवेदनशीलता को भांपेंगे, बल्कि यहां ट्रीटमेंट के लिए किस तरह के उपाय होने चाहिए, इस पर अपनी रिपोर्ट भी देंगे. आपदा प्रबंधन विभाग के अपर सचिव आनंद स्वरूप बताते हैं कि-
बारिश बंद होने के बाद ही ऐसे क्षेत्रों में विशेषज्ञों को अध्ययन के लिए भेजा जाएगा, जहां नए बड़े भूस्खलन हुए हैं. इस मामले में विशेषज्ञों की राय के अनुसार ही निर्माण एजेंसी को सुझाव दिया जाएगा, ताकि उसी के अनुरूप लैंडस्लाइड क्षेत्र में काम हो सके.
-आनंद स्वरूप, अपर सचिव, आपदा प्रबंधन विभाग-
इस मॉनसून बरसी ज्यादा आफत: उत्तराखंड में वैसे तो हर साल नए लैंडस्लाइड जोन तैयार होते हैं, लेकिन ऐसे कम मॉनसून सीजन ही होते हैं, जब पहाड़ों के पुराने घाव भी हरे हो जाएं. राज्य में अगस्त का महीना ऐसी ही बारिश वाला रहा, जब कम समय में हुई ज्यादा बारिश ने पहाड़ों को पहले से भी ज्यादा कमजोर कर दिया है.
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