नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश में बिना पंजीकरण के चल रहे अवैध मदरसों को जिला प्रशासन द्वारा 14 अप्रैल 2025 को नोटिस देकर सील किए जाने के मामले में मदरसों की तरफ से दायर करीब 3 दर्जन से अधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की. मामले की सुनवाई के बाद वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने निर्देश दिए कि बिना मदरसे बोर्ड की अनुमति के चल रहे मदरसे अपने नाम के ऊपर मदरसा न लिखें. क्योंकि वे मदरसा बोर्ड में रजिस्टर्ड नहीं हैं. इसके बाद भी बिना रजिस्टर्ड के कोई मदरसा अपने नाम के ऊपर मदरसा लिखता है, तो जिला प्रशासन कार्रवाई कर सकता है.
खोले जाएंगे सील मदरसे: कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि जो मदरसे सील कर दिए गए थे, वे खोले जाएं. लेकिन वे अपना एक शपथपत्र सील करने वाली अथॉरिटी को इस आशय से देंगे कि वे इसमें कोई शिक्षण संबंधित कार्य नहीं करेंगे. इनमें क्या खोला जाएगा? उस पर निर्णय राज्य सरकार लेगी.
मकतब से जुड़े धार्मिक कार्य करने की इजाजत: हुई सुनवाई पर मदरसों की तरफ से कहा गया कि उनके द्वारा मदरसों को चलाने के लिए मदरसा बोर्ड में रजिस्ट्रेशन करने के लिए आवेदन किया गया है. जिसकी अनुमति अभी तक उन्हें नहीं मिली. इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि प्रदेश में अभी तक 416 मदरसें, मदरसे बोर्ड में पंजीकृत हैं. बाकी जो सील किए गए वे बिना अनुमति के चल रहे हैं. उनमें कई तरह की अनियमितताएं देखी गई. जिसका संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि इनको अनसील किया जाए. अगर ये अपने नाम के ऊपर मदरसा लिखते हैं तो उसके खिलाफ सील करने वाले अधिकारी नियमों के तहत कार्रवाई करें. हालांकि, ये उनमें मकतब से जुड़े धार्मिक कार्य कर सकते हैं.
मामले के अनुसार, मदरसा अब्बू बकर सिद्धकी, मदरसा जिनन्त उल कुरान, मदरसा दारुल उल इस्लामिया समेत 33 से अधिक सील मदरसों ने उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर कर कहा है कि जिला प्रशासन ने बिना नियमों का पालन करते हुए प्रदेश में करीब तीन दर्जन से अधिक मदरसों को 14 अप्रैल 2025 को सील कर दिया. जबकि मदरसों में शिक्षण संस्थान चल रहे थे.
इसका विरोध करते हुए सरकार की तरफ से कहा गया कि ये मदरसे अवैध रूप से चल रहे थे. इनका पंजीकरण मदरसे बोर्ड में नहीं हुआ है. इनमें शिक्षण, धार्मिक अनुष्ठान और नमाज भी हो रही है. ये सभी किसी व्यक्ति विशेष या अन्य के द्वारा संचालित हो रहे हैं. इसलिए इन्हें सील किया गया. जो मदरसे पंजीकृत थे, उनको प्रशासन ने सील नहीं किया. उनको सरकार की तरफ से मिलने वाला अनुदान मिल रहा है.
DM-SSP की रिपोर्ट पर याचिका निरस्त: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नगर पंचायत पिरान कलियर की भूमि को नगर पंचायत को वापस किए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट की खंडपीठ ने जिला अधिकारी और एसएसपी की रिपोर्ट के आधार पर जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है. जिला अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जिस भूमि को नगर पंचायत अपने कार्यालय खोलने के लिए मांग रही है, उस भूमि को थाना बनाने के लिए दे दिया. नगर पंचायत के कार्यालय के लिए दूसरी भूमि दे दी है.
एसएसपी ने कहा कि उनका क्षेत्र ज्यादा है. उनके पास 27 गांव हैं. उनमें कानून व्यवस्था बनाने के लिए उन्हें यह भूमि दी जाए. नगर पंचायत के पास 4 गांव हैं. इसलिए उनको दूसरी जगह दी जाए. रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित कर दी. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में हुई.
मामले के अनुसार, पिरान कलियर निवासी यासीन ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 2014-15 पिरान कलियर की नगर पंचायत का गठन हुआ था. जिसके बाद उस वक्त आबादी के बीच सरकारी भूमि को सरकार के द्वारा 2018 में पुलिस प्रशासन को उक्त भूमि आवंटित करते हुए 3 साल में थाना बनाने को कहा, लेकिन समयावधि बीत जाने के बाद भी वहां आज तक थाना नहीं बनाया गया.
याचिका में कहा गया है कि नगर पंचायत पिरान कलियर स्थित सरकारी भूमि नगर पंचायत को दे दी जाए, ताकि नगर पंचायत इस भूमि का उपयोग जनता के हितों के लिए कर सके. क्योंकि अभी तक नगर पंचायत के पास अपना कोई कार्यालय खोलने के लिए सरकारी जमीन उपलब्ध नहीं है.
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