Homeदेशविवेक राजदान : क्रिकेट की आत्मा को शब्द देने वाला 'कमेंट्री का...

विवेक राजदान : क्रिकेट की आत्मा को शब्द देने वाला 'कमेंट्री का कवि'


नई दिल्ली, 24 अगस्त (आईएएनएस) भारतीय क्रिकेट इतिहास में कई ऐसे नाम दर्ज हैं जो मैदान पर अपने खेल से चमके, मगर कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने क्रिकेट से संन्यास के बाद शब्दों की ताकत से करोड़ों दिलों को जीत लिया। विवेक राजदान ऐसी ही शख्सियत हैं। 25 अगस्त, 1969 में पैदा हुए राजदान भारतीय टीम के लिए एक तेज गेंदबाज के तौर पर खेले। उनका अंतरराष्ट्रीय करियर लंबा न खिंच पाया, लेकिन घरेलू क्रिकेट में उन्होंने दिल्ली की ओर से अपनी छाप छोड़ी। इसके बाद भी, असली जादू तो तब शुरू हुआ जब उन्होंने माइक्रोफोन हाथ में लिया।

विवेक राजदान की आवाज और शब्दों ने क्रिकेट को नया रूप दिया है। हिंदी कमेंट्री में उनका अंदाज कुछ ऐसा है कि दर्शक खुद को सीधे मैदान से जुड़ा महसूस करते हैं। उनके शब्दों में जो साहित्यिक रंग है, वही उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। उनकी कमेंट्री सिर्फ खेल को बयां नहीं कर रही होती, बल्कि एक कविता, एक कथा और कभी-कभी जीवन-संदेश भी लगती है।

दिल्ली से उभरकर भारतीय क्रिकेट टीम तक पहुंचने वाले विवेक ने संन्यास के बाद शब्दों से चौके-छक्के लगाए और अपने संवाद से खेल की भावनाओं को चरम का अहसास कराया। हाल ही में सम्पन्न हुई भारत और इंग्लैंड की टेस्ट सीरीज का उदाहरण लें तो विवेक राजदान की आइकोनिक कमेंट्री ने दिलचस्प मुकाबलों को और भी शानदार बना दिया। नाजुक पलों में उन्होंने श्रोताओं को बांधकर रखा और जोशीले मोमेंट्स को ऐसे बयां किया कि सुनने वालों को रोंगटे खड़े हो गए।

बात चाहे जसप्रीत बुमराह की हो या मोहम्मद सिराज और प्रसिद्ध कृष्णा की, राजदान की कमेंट्री में भारत की पेस बैटरी के जबरदस्त प्रदर्शन को शब्द देने के लिए पैशन भी मौजूद था और काव्यात्मक अंदाज भी।

इस सीरीज में बुमराह के पांच विकेट की उपलब्धि पर उन्होंने यह पंक्तियां कही थीं, “लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल। लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल। हर चीज को अपने रंग में रंग देते हैं बुमराह।”

इन शब्दों में बुमराह की गेंदबाजी की ऐसी तस्वीर उभर जाती है मानो उनकी हर गेंद विपक्षी बल्लेबाज के रंग-ढंग को बदल देती हो।

भारतीय गेंदबाजों मोहम्मद सिराज और प्रसिद्ध कृष्णा के मैच विनिंग प्रदर्शन पर भी विवेक राजदान का उत्साह सुनने लायक था। उनके कुछ शब्द – “जब भी छाई हो मुश्किल की घड़ी, तो टीम आकर सिराज और कृष्णा के सामने हो जाती है खड़ी।” ये पंक्तियां सिर्फ कमेंट्री नहीं बल्कि खिलाड़ियों के संघर्ष और जज्बे का सार हैं।

भारत ने यह सीरीज 2-2 से बराबर की थी, जिसमें ऋषभ पंत की बल्लेबाजी, जीवटता, जुनून और साहस का जबरदस्त योगदान था। सीरीज में जब एक टेस्ट में पंत चोटिल हो गए और कीपिंग नहीं कर सके, तो भी टीम की जरूरत के समय बैटिंग करने आए थे। यह देखने में आसान था, लेकिन महसूस करने में कितना मुश्किल था, उसको राजदान ने बयां किया। भारत का यह जांबाज बल्लेबाज कई बार चोटिल होकर भी मैदान पर डटा रहा। उस पर राजदान की पंक्तियां सुनकर दर्शक झूम उठे –

“तेरी सोच पर मैं चल नहीं सकता,

तेवर मैं अपना बदल नहीं सकता।।

अरे मोम का पुतला समझ रखा है क्या,

मैं वो लोहा हूं, जो किसी भी लौ से पिघल नहीं सकता।।

यह है ऋषभ पंत…।”

और यह है विवेक राजदान का अंदाज, जिनकी कमेंट्री केवल क्रिकेट नहीं, बल्कि इंसानी हौसले और जज्बे को शब्द देती है। इसी अंदाज ने उन्हें दर्शकों के बीच खास बनाया।

ऐसे ही जब सीरीज में प्रचंड फॉर्म में चल रहे ऋषभ पंत ने शानदार शतक पूरा किया, विवेक राजदान की आवाज फिर गूंजी – “चलते रहो जब तक मंजिल आए, कदम ऐसे उठे कि धूल भी आसमान तक जाए।”

इन शब्दों ने पूरे माहौल में जोश भर दिया। राजदान मानो क्रिकेट कमेंट्री को कविता की भाषाओं से सजाते हैं। आज जब भी हिंदी कमेंट्री की बात होती है, विवेक राजदान का नाम जरूर आता है। उनका अंदाज खिलाड़ियों की जज्बाती कहानी और दर्शकों के दिल से जुड़ाव का पुल भी बनाता है। वे हर पल को इतना जीवंत कर देते हैं कि दर्शक केवल खेल ही नहीं, बल्कि उस खेल की आत्मा भी महसूस करें।

राजदान ने टीम इंडिया के लिए दो टेस्ट और तीन वनडे मैच ही खेले। उन्होंने 29 फर्स्ट क्लास मैच भी खेले। यह एक सीमित करियर जैसा ही रहा। यह सफर क्रिकेट से शुरू होकर जब कमेंट्री तक पहुंचा, तो उन्होंने साबित कर दिया कि मैदान चाहे बल्ले और गेंद का हो या शब्दों और आवाज का, एक सच्चा खिलाड़ी हर जगह अपनी छाप छोड़ता है।

–आईएएनएस

एएस/

एक नजर